यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 55
ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः
देवता - इन्द्रादयो देवताः
छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
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इन्द्र॑श्च म॒रुत॑श्च क्र॒यायो॒पोत्थि॒तोऽसु॑रः प॒ण्यमा॑नो मि॒त्रः क्री॒तो विष्णुः॑ शिपिवि॒ष्टऽऊ॒रावास॑न्नो॒ विष्णु॑र्न॒रन्धि॑षः॥५५॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रः॑। च॒। म॒रुतः॑। च॒। क्र॒पाय॑। उ॒पोत्थि॑त॒ इत्यु॑प॒ऽउत्थि॑तः। असु॑रः। प॒ण्यमा॑नः। मि॒त्रः। क्री॒तः। विष्णुः॑। शि॒पि॒वि॒ष्ट इति॑ शिपिऽवि॒ष्टः। ऊ॒रौ। आस॑न्न॒ इत्याऽस॑न्नः। विष्णुः॑। न॒रन्धि॑षः ॥५५॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रश्च मरुतश्च क्रयायोपोत्थितोसुरः पण्यमानः मित्रः क्रीतः विष्णुः शिपिविष्टऽऊरावासन्नो विष्णुर्नरन्धिषः प्रोह्यमाणः सोम॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रः। च। मरुतः। च। क्रयाय। उपोत्थित इत्युपऽउत्थितः। असुरः। पण्यमानः। मित्रः। क्रीतः। विष्णुः। शिपिविष्ट इति शिपिऽविष्टः। ऊरौ। आसन्न इत्याऽसन्नः। विष्णुः। नरन्धिषः॥५५॥
विषय - गृहस्थ-विषय का फिर उपदेश किया है ।।
भाषार्थ -
हे मनुष्यो ! तुम लोग विद्वानों ने जो (क्रपाय) व्यवहारसिद्धि के लिये (इन्द्रः) विद्युत्, [च] और पृथिवी आदि, (मरुतः) वायु, [च] और जल आदि, (असुरः) बादल, (पण्यमानः) स्तुति के योग्य (मित्रः) मित्र, (शिपिविष्टः) पदार्थों में प्रविष्ट=व्याप्त (विष्णुः), धनञ्जय, (नरन्धिषः) नरों को शाब्दित करने वाले (विष्णुः) हिरण्यगर्भ को ही (ऊरौ) आच्छादन रूप में (आसन्नः) सबके निकट एवं (उपोत्थितः) समीप में प्रकाशित वस्तु के समान (क्रीतः) व्यवहार में स्वीकर किया है उसे जानो ॥ ८ । ५५ ॥
भावार्थ - सब मनुष्य परब्रह्म से प्रकाशित अग्नि आदि पदार्थों से क्रिया-कौशल के द्वारा उपयोग लेकर गृहस्थ के व्यवहारों को सिद्ध करें ।। ८ । ५५ ।।
प्रमाणार्थ -
(असुरः) यह शब्द निघं० (१ । १०) में मेघ-नामों में पढ़ा है। इस मन्त्र की व्याख्या शत० (१२ । ३ । १ । ९-१३ ) में की गई है ।। ८ । ५५ ।।
भाष्यसार - गृहस्थ विषयक उपदेश--परब्रह्म ने गृहस्थों से व्यवहार की सिद्धि के लिये विद्युत्, पृथिवी, वायु, जल, मेघ, स्तुति के योग्य मित्र, सब पदार्थों में प्रविष्ट व्यापक धनञ्जय (वायु), नरों में शब्द को उत्पन्न करने वाला हिरण्यगर्भ (आकाश) प्रकाशित किया है, जो सबको आच्छादित करनेवाला एवं सबके निकट है। विद्वान् गृहस्थ लोग क्रिया-कौशल से इन पदार्थों से उपयोग ग्रहण किया करें ।। ८ । ५५ ।।
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