अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 44/ मन्त्र 1
आयु॑षोऽसि प्र॒तर॑णं॒ विप्रं॑ भेष॒जमु॑च्यसे। तदा॑ञ्जन॒ त्वं श॑न्ताते॒ शमापो॒ अभ॑यं कृतम् ॥
स्वर सहित पद पाठआयु॑षः। अ॒सि॒। प्र॒ऽतर॑णम्। विप्र॑म्। भे॒ष॒जम्। उ॒च्य॒से॒। तत्। आ॒ऽअ॒ञ्ज॒न॒। त्वम्। श॒म्ऽता॒ते॒। शम्। आपः॑। अभ॑यम्। कृ॒त॒म् ॥४४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
आयुषोऽसि प्रतरणं विप्रं भेषजमुच्यसे। तदाञ्जन त्वं शन्ताते शमापो अभयं कृतम् ॥
स्वर रहित पद पाठआयुषः। असि। प्रऽतरणम्। विप्रम्। भेषजम्। उच्यसे। तत्। आऽअञ्जन। त्वम्। शम्ऽताते। शम्। आपः। अभयम्। कृतम् ॥४४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 44; मन्त्र » 1
Subject - Anjanam : ointment against disease
Translation -
You are the lengthener of life-span: you are said to be an allcure medicine. So, O ointment, augmenter of happiness, may you and the waters give us relief and freedom from fear.