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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 24
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    वा॒मंवा॑मं त आदुरे दे॒वो द॑दात्वर्य॒मा। वा॒मं पू॒षा वा॒मं भगो॑ वा॒मं दे॒वः करू॑ळती ॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒मम्ऽवा॑मम् । ते॒ । आ॒ऽदु॒रे॒ । दे॒वः । द॒दा॒तु॒ । अ॒र्य॒मा । वा॒मम् । पू॒षा । वा॒मम् । भगः॑ । वा॒मम् । दे॒वः । करू॑ळती ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वामंवामं त आदुरे देवो ददात्वर्यमा। वामं पूषा वामं भगो वामं देवः करूळती ॥२४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वामम्ऽवामम्। ते। आऽदुरे। देवः। ददातु। अर्यमा। वामम्। पूषा। वामम्। भगः। वामम्। देवः। करूळती ॥२४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 24
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    [१] हे (आदुरे) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं का विदारण करनेवाले जितेन्द्रिय पुरुष ! (ते) = तेरे लिए (अर्यमा) = शत्रुओं का नियमन करनेवाला [अरीणां नियमयिता] (देव:) = शत्रुओं का विजेता [दिव् - विजिगीषा] प्रभु (वामं वामं ददातु) = सब सुन्दर-सुन्दर वस्तुओं को दे । काम-क्रोध आदि के संहार द्वारा यह अर्यमा देव हमें सुन्दर दिव्य गुणों को प्राप्त कराएँ । [२] (पूषा) = सब का पोषण करनेवाला देव (वामम्) = सुन्दर स्वस्थ शरीर को प्राप्त करानेवाला हो । (भगः) = सेवनीय धन का अधिष्टातृदेव हमारे लिए (वाम्) = सुन्दर सुपथार्जित धन को दे । (करूडती) = [कृत्तदन्तः] जिसने दान्तों को काट दिया है, अर्थात् जो खान-पान में ही फँसा हुआ नहीं है, वह (देव:) = प्रकाशमय प्रभु (वामम्) = हमारे लिए भोगों में अनासक्त सुन्दर जीवन को प्राप्त कराए। [३] 'अर्यमा' नाम से प्रभु का स्मरण करता हुआ स्तोता काम-क्रोध आदि अरियों का नियमन करता है और अपने जीवन को सुन्दर दिव्य गुणों से युक्त करता है। 'पूषा' नाम से प्रभु का स्मरण उसे उचित पोषण के लिए युक्ताहार-विहार बनाता है, इससे वह स्वस्थ सुन्दर शरीरवाला होता है। 'भग' नाम से प्रभु का स्मरण उसे सेवनीय धन के ही अर्जन के लिए प्रेरित करता है। प्रभु बिलकुल नहीं खाते, सो वे 'कृत्तदन्त' हैं। हम भी भोगों में अनासक्त बने हुए कृत्तदन्त ही होते हैं। उस समय हम अनासक्तिवाला सुन्दर जीवन प्राप्त करते हैं ।

    भावार्थ - भावार्थ- हम शत्रुओं का नियमन करें। शरीर के पोषण के लिए युक्ताहार-विहार करें। सुपथ से धनार्जन करें। भोगों में अनासक्त जीवनवाले हों। सूक्त का सार यही है कि हम उस अनुपम प्रभु का स्मरण करते हुए अधिक से अधिक सुन्दर जीवनवाले बनने का यत्न करें। प्रभु की तरह ही 'अर्यमा, पूषा, भग व कृत्तदन्त देव' बनें। इस प्रभु से रक्षण के लिए प्रार्थना के साथ अगले सूक्त का प्रारम्भ होता है -

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