ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 43/ मन्त्र 5
ए॒वा नो॑ अग्ने वि॒क्ष्वा द॑शस्य॒ त्वया॑ व॒यं स॑हसाव॒न्नास्क्राः॑। रा॒या यु॒जा स॑ध॒मादो॒ अरि॑ष्टा यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥५॥
स्वर सहित पद पाठए॒व । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । वि॒क्षु । आ । द॒श॒स्य॒ । त्वया॑ । व॒यम् । स॒ह॒सा॒ऽव॒न् । आस्क्राः॑ । रा॒या । यु॒जा । स॒ध॒ऽमादः॑ । अरि॑ष्टाः । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एवा नो अग्ने विक्ष्वा दशस्य त्वया वयं सहसावन्नास्क्राः। राया युजा सधमादो अरिष्टा यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥५॥
स्वर रहित पद पाठएव। नः। अग्ने। विक्षु। आ। दशस्य। त्वया। वयम्। सहसाऽवन्। आस्क्राः। राया। युजा। सधऽमादः। अरिष्टाः। यूयम्। पात। स्वस्तिऽभिः। सदा। नः ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 43; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
विषय - लोक सेवक राजा
पदार्थ -
पदार्थ- हे (सहसावन्) = बलवन् ! हे (अग्ने) = ज्ञानवन् ! तू (एव) = अवश्य (विक्षु) = प्रजाओं में (आ दशस्य) = सब ओर दान कर। (त्वया युजा वयं) = तुझ से मिलकर हम (आस्क्रा:) = सब प्रकार से -मानो क्रय किये हुए भृत्यवत् हों, (अरिष्टाः सधमादः) = अहिंसित और (राया) = एक साथ (सधमादः) = प्रसन्न रहें। हे वीर पुरुषो! (यूयं नः सदा स्वस्तिभिः पात) = आप हमें सदा उत्तम साधनों से रक्षित करो।
भावार्थ - भावार्थ - राजा अपनी प्रजाओं को उन्नति के लिए विकास की योजनाएँ चलाकर खूब दान दे तथा उत्तम साधनों से प्रजा की रक्षा करता हुआ उदार तथा लोकसेवक बनकर रहे। इससे प्रजा राष्ट्र भक्त बनी रहेगी। अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ तथा देवता लिंगोक्ता है।
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