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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 44/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - लिङ्गोक्ताः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    द॒धि॒क्रामु॒ नम॑सा बो॒धय॑न्त उ॒दीरा॑णा य॒ज्ञमु॑पप्र॒यन्तः॑। इळां॑ दे॒वीं ब॒र्हिषि॑ सा॒दय॑न्तो॒ऽश्विना॒ विप्रा॑ सु॒हवा॑ हुवेम ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द॒धि॒ऽक्राम् । ऊँ॒ इति॑ । नम॑सा । बो॒धय॑न्तः । उ॒त्ऽईरा॑णाः । य॒ज्ञम् । उ॒प॒ऽप्र॒यन्तः॑ । इळा॑म् । दे॒वीम् । ब॒र्हिषि॑ । सा॒दय॑न्तः । अ॒श्विना॑ । विप्राः॑ । सु॒ऽहवा॑ । हु॒वे॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दधिक्रामु नमसा बोधयन्त उदीराणा यज्ञमुपप्रयन्तः। इळां देवीं बर्हिषि सादयन्तोऽश्विना विप्रा सुहवा हुवेम ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दधिऽक्राम्। ऊँ इति। नमसा। बोधयन्तः। उत्ऽईराणाः। यज्ञम्। उपऽप्रयन्तः। इळाम्। देवीम्। बर्हिषि। सादयन्तः। अश्विना। विप्राः। सुऽहवा। हुवेम ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 44; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    पदार्थ- हम लोग (दधिक्राम्) = राज्य भार को उठानेवालों को सन्मार्ग पर चलानेवाले राजा को (नमसा बोधयन्तः) = विनय से निवेदन करते हुए (उद्-ईराणा:) = उत्तम ज्ञान देते हुए, (यज्ञम् उप प्रयन्तः) = यज्ञ वा पूज्य पुरुष के पास जाते हुए, (बर्हिषी) = वृद्धिकारी व्यवहार वा राष्ट्र में बसे प्रजाजन में (देवीं) = गुण युक्त (इळां) = वाणी की (सादयन्तः) = व्यवस्था करते हुए (सु-हवा) = उत्तम वचन बोलनेवाले (विप्रा) = बुद्धिमान् (अश्विना) = रथी-सारथिवत् सहयोगी स्त्री-पुरुषों को (हुवेम) = प्राप्त करें।

    भावार्थ - भावार्थ - राष्ट्र के उत्तम विद्वान् राज्य के समस्त कार्यभार को चलानेवाले राजा को ज्ञान पूर्वक विनयभाव से उत्तम परामर्श देते हुए सत्संग, यज्ञ तथा पूज्य पुरुषों के समीप जाने की प्रेरणा करते रहें। दिव्य वाणी से युक्त उत्तम व्यवस्थापक राजा के साथ इन रथि - सारथिवत् सहयोगी बुद्धिमान् स्त्री-पुरुषों की सभी प्रजाजन प्रशंसा करें। -

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