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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 52

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 52/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - कामः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काम सूक्त

    काम॒स्तदग्रे॒ सम॑वर्तत॒ मन॑सो॒ रेतः॑ प्रथ॒मं यदासी॑त्। स का॑म॒ कामे॑न बृह॒ता सयो॑नी रा॒यस्पोषं॒ यज॑मानाय धेहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कामः॑। तत्। अग्रे॑। सम्। अ॒व॒र्त॒त॒। मन॑सः। रेतः॑। प्र॒थ॒मम्। यत्। आसी॑त् ॥ सः। का॒म॒। कामे॑न। बृ॒ह॒ता। सऽयो॑निः। रा॒यः। पोष॑म्। यज॑मानाय। धे॒हि॒ ॥५२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कामस्तदग्रे समवर्तत मनसो रेतः प्रथमं यदासीत्। स काम कामेन बृहता सयोनी रायस्पोषं यजमानाय धेहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कामः। तत्। अग्रे। सम्। अवर्तत। मनसः। रेतः। प्रथमम्। यत्। आसीत् ॥ सः। काम। कामेन। बृहता। सऽयोनिः। रायः। पोषम्। यजमानाय। धेहि ॥५२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 52; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    १. (तत् अग्रे) = इस सृष्टि के प्रारम्भ में [प्रलय की समाप्ति पर] (काम: समवर्तत) = काम सिसक्षा हुआ। प्रभु ने सृष्टि को उत्पन्न करने की कामना की [सोऽकामयत बहु स्यां प्रजायेय] (यत्) = जो काम (मनसः) = मन का (प्रथमं रेतः) = सर्वमुख्य तेज (आसीत्) = था। काम से ही सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण होता है, मानो यह काम ही सृष्टि का बीज [रेतः] हो। २. हे (काम) = काम! तू (बृहता कामेन) = उस महान् काम-कान्त प्रभु के साथ (सयोनिः) = समान निवासवाला होता हुआ (यजमानाय) = यज्ञशील पुरुष के लिए (रायस्पोषं धेहि) = धन की पुष्टि को स्थापित कर । हृदय में प्रभु के साथ निवासवाला काम पवित्र ही होता है [धर्माविरुद्ध: कामोऽस्मि भूतेषु भरतर्षभ] यह धर्माविरुद्ध काम हम यज्ञशीलों को धन का पोषण प्राप्त कराए।

    भावार्थ - 'काम' मन की सर्वमुख्य शक्ति है।'धर्माविरुद्ध काम' प्रभु का ही रूप है। यह हम यज्ञशील पुरुषों को आवश्यक समृद्धि से युक्त करे।

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