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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 141/ मन्त्र 1
सूक्त - विश्वामित्र
देवता - अश्विनौ
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गोकर्णलक्ष्यकरण सूक्त
वा॒युरे॑नाः स॒माक॑र॒त्त्वष्टा॒ पोषा॑य ध्रियताम्। इन्द्र॑ आभ्यो॒ अधि॑ ब्रवद्रु॒द्रो भू॒म्ने चि॑कित्सतु ॥
स्वर सहित पद पाठवा॒यु: । ए॒ना॒: । स॒म्ऽआक॑रत् । त्वष्टा॑ । पोषा॑य । ध्रि॒य॒ता॒म् । इन्द्र॑: । आ॒भ्य॒: । अधि॑ । ब्र॒व॒त् । रु॒द्र: । भू॒म्ने । चि॒कि॒त्स॒तु॒ ॥१४१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
वायुरेनाः समाकरत्त्वष्टा पोषाय ध्रियताम्। इन्द्र आभ्यो अधि ब्रवद्रुद्रो भूम्ने चिकित्सतु ॥
स्वर रहित पद पाठवायु: । एना: । सम्ऽआकरत् । त्वष्टा । पोषाय । ध्रियताम् । इन्द्र: । आभ्य: । अधि । ब्रवत् । रुद्र: । भूम्ने । चिकित्सतु ॥१४१.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 141; मन्त्र » 1
विषय - गोदुग्ध सेवन
पदार्थ -
१. (वायुः) = वायु (एना:) = इन हमारी गौओं को (समाकरत्) = संघश: अपने में प्राप्त कराए, अर्थात् ये गौएँ खुली वायु में भ्रमण [चारागाहों में चरने] के लिए जाएँ-'वायुर्वेषां सहचारं जुजोष', (त्वष्टा) = पशु के रूप को बनानेवाला यह सूर्य (पोषाय) = अभिवृद्धि के लिए इन गौओं को (धियताम्) = धारण करे। (इन्द्रः) = परमैश्वर्यशाली परमेश्वर (आभ्यः) = इनके रक्षण के लिए (अधिबवत्) = आधिक्येन उपदेश करता है । वेद में गोपालन का स्थान-स्थान पर उपदेश किया गया है। (रुद्रः) = रोगों का चिकित्सक (भूम्ने) = इनके बाहुल्य के लिए (चिकित्सतु) = इनकी व्याधियों का प्रतीकार करे।
भावार्थ -
हमारी गौएँ खुली वायु में चारागाहों में चरने के लिए जाएँ। सूर्य अपनी किरणों द्वारा इनमें प्राणशक्ति का धारण करे। प्रभु [राजा] इनके दुग्ध के सेवन के लिए हमें उपदेश दे। रुद्र [पशुचिकित्सक] इनके रोगों को दूर करनेवाला हो।
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