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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 19/ मन्त्र 2
पव॑मानः पुनातु मा॒ क्रत्वे॒ दक्षा॑य जी॒वसे॑। अथो॑ अरि॒ष्टता॑तये ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मान: । पु॒ना॒तु॒ । मा॒ । क्रत्वे॑ । दक्षा॑य । जी॒वसे॑ । अथो॒ इति॑ । अ॒रि॒ष्टऽता॑तये ॥१९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानः पुनातु मा क्रत्वे दक्षाय जीवसे। अथो अरिष्टतातये ॥
स्वर रहित पद पाठपवमान: । पुनातु । मा । क्रत्वे । दक्षाय । जीवसे । अथो इति । अरिष्टऽतातये ॥१९.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
विषय - क्रत्वे, दक्षाय, जीवसे, अरिष्टतातये
पदार्थ -
१. (पवमानः) = पवित्र करनेवाले प्रभु (मा पुनातु) = मुझे पवित्र करें, जिससे मेरा जीवन (क्रत्वे) = उत्तम ज्ञान व कर्मसंकल्पों के लिए हो। मेरा यह जीवन (दक्षाय) = बल के लिए हो। (जीवसे) = मैं पूर्ण जीवन को जीनेवाला होऊँ अथ (उ) = और निश्चय से (अरिष्टतातये) = मैं कल्याण के विस्तार के लिए होऊँ।
भावार्थ -
प्रभु-सम्पर्क मुझे 'कुतुमान, दक्ष, पूर्ण, जीवनवाला व कल्याणमय कार्यों को करनेवाला' बनाए।
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