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ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 41/ मन्त्र 11
इन्द्र॑श्च मृ॒ळ्या॑ति नो॒ न नः॑ प॒श्चाद॒घं न॑शत्। भ॒द्रं भ॑वाति नः पु॒रः॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रः॑ । च॒ । मृ॒ळया॑ति । नः॒ । न । नः॒ । प॒श्चात् । अ॒घम् । न॒श॒त् । भ॒द्रम् । भ॒वा॒ति॒ । नः॒ । पु॒रः ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रश्च मृळ्याति नो न नः पश्चादघं नशत्। भद्रं भवाति नः पुरः॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रः। च। मृळयाति। नः। न। नः। पश्चात्। अघम्। नशत्। भद्रम्। भवाति। नः। पुरः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 41; मन्त्र » 11
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
पदार्थ -
पदार्थ = ( इन्द्रः च ) = परमात्मा ही ( न:) हम पर ( मृडयाति ) = दया करे ( न: पश्चात् ) = हमारे पीछे से ( अघम् ) = पाप ( न नशत् ) = प्राप्त न हो, किन्तु ( नः पुरः ) = हमारे सम्मुख ( भद्रम् भवाति ) = अच्छा कर्म और उसका फल भद्र हो ।
भावार्थ -
भावार्थ = पूर्ण ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर, अपनी अपार दया से हमें सुखी करे। हमारे आगे, पीछे कहीं दुःख का नाम न हो, जिधर भी देखें सुख-ही-सुख हो, कल्याण की वर्षा होती हुई दिखाई देवे।