यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 87
ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः
देवता - इन्द्रो देवता
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
1
इन्द्राया॑हि चित्रभानो सु॒ताऽइ॒मे त्वा॒यवः॑। अण्वी॑भि॒स्तना॑ पू॒तासः॑॥८७॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑। आ। या॒हि॒। चि॒त्र॒भा॒नो॒ इति॑ चित्रऽभानो। सु॒ताः। इ॒मे। त्वा॒यव॒ इति॑ त्वा॒ऽयवः॑। अण्वी॑भिः। तना॑। पू॒तासः॑ ॥८७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रायाहि चित्रभानो सुता इमे त्वायवः । अण्वीभिस्तना पूतासः ॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्र। आ। याहि। चित्रभानो इति चित्रऽभानो। सुताः। इमे। त्वायव इति त्वाऽयवः। अण्वीभिः। तना। पूतासः॥८७॥
विषय - इन्द्र सुत्रामा का आदर कर ।
भावार्थ -
हे (चत्रभानो) अद्भुत् -अद्भुत ज्ञानों के प्रकाश करनेवाले ! सूर्य के समान तेजस्विन् ! (इन्द्र) ज्ञानों के द्रष्टा ! सभापते ! राजन् ! (इमे) ये (सुताः) राष्ट्रगत ऐश्वर्य, एवं अभिषिक्त राजगण (त्वायवः) तुझे प्राप्त होते हैं और वे (अण्वीभिः) अल्पबल की प्रजाओं के द्वारा (तना) विस्तृत गुण, कीर्त्ति द्वारा (पूतासः) अभिषेक द्वारा पवित्र हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - [ ८७-८८ ] मधुच्छन्दा ऋषिः । इन्द्रो देवता । निचृद् गायत्री । षड्जः ॥
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