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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 86 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 86/ मन्त्र 22
    ऋषिः - वृषाकपिरैन्द्र इन्द्राणीन्द्रश्च देवता - वरुणः छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    यदुद॑ञ्चो वृषाकपे गृ॒हमि॒न्द्राज॑गन्तन । क्व१॒॑ स्य पु॑ल्व॒घो मृ॒गः कम॑गञ्जन॒योप॑नो॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । उद॑ञ्चः । वृ॒षा॒क॒पे॒ । गृ॒हम् । इ॒न्द्र॒ । अज॑गन्तन । क्व॑ । स्यः । पु॒ल्व॒घः । मृ॒गः । कम् । अ॒ग॒न् । ज॒न॒ऽयोप॑नः । विश्व॑स्मात् । इन्द्रः॑ । उत्ऽत॑रः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदुदञ्चो वृषाकपे गृहमिन्द्राजगन्तन । क्व१ स्य पुल्वघो मृगः कमगञ्जनयोपनो विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । उदञ्चः । वृषाकपे । गृहम् । इन्द्र । अजगन्तन । क्व । स्यः । पुल्वघः । मृगः । कम् । अगन् । जनऽयोपनः । विश्वस्मात् । इन्द्रः । उत्ऽतरः ॥ १०.८६.२२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 86; मन्त्र » 22
    अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 7

    भावार्थ -
    हे (वृषाकपे इन्द्र) सुखवर्षी, परम रस के पान करने वाले ! वा अंधकारनाशक तेजस्विन् ! आत्मन् ! प्रभो ! (यत्-उदञ्चः) जब उर्ध्व, उत्तम मार्ग से जाने वाले पुरुष (गृहम्) सर्वशरण्य प्रभु को (अजगन्तन) प्राप्त हो जाते हैं तब उनका (स्यः) वह (पुलु-अधः) बहुत पापों वाला (जन-योपनः) प्राणियों को मोहने वाला (मृगः) शुद्ध, वा विषयों को खोजने वाला, पापभागी आत्मा, वा बहुतों को मारने वाला वा बहुत से जनों को त्रास देने वाला मृत्यु (क्व अगन् कम्) कहां चला जाता है, कहां नष्ट हो जाता है ? उसका नाश होना यही प्रभु की दया है। अतः (विश्वस्मात् इन्द्रः उत्तरः) वह परमेश्वर ही सब से उत्कृष्ट है। अर्थात् मृग, सिंह जिस प्रकार (पुलु-अधः) बहुतों को मारने वाला और (जन-योपनः) अनेक जनों, जन्तुओं का नाश करने वाला सिंह गृह में आने पर न जाने कहां जाता है। अर्थात् गृह में रहते हुए सिंह का त्रास नहीं रहता। इसी प्रकार परम शरण्य प्रभु रूप गृह में आने पर त्रासकारी पाप वा मृत्यु का भी भय छूट जाता है। ‘न तत्र मृत्युर्न जरा वि-पाप्मा।’ उप०। केवल ‘कम्’ सुख रूप होता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वृषाकपिरैन्द्र इन्द्राणीन्द्रश्च ऋषयः॥ वरुणो देवता॥ छन्दः- १, ७, ११, १३, १४ १८, २३ पंक्तिः। २, ५ पादनिचृत् पंक्तिः। ३, ६, ९, १०, १२,१५, २०–२२ निचृत् पंक्तिः। ४, ८, १६, १७, १९ विराट् पंक्तिः॥

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