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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 2

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
    सूक्त - वाक् देवता - आसुरी अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    निर्दु॑रर्म॒ण्यऊ॒र्जा मधु॑मती॒ वाक् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि: । दु॒:ऽअ॒र्म॒ण्य᳡: । ऊ॒र्जा । मधु॑ऽमती । वाक् ॥२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    निर्दुरर्मण्यऊर्जा मधुमती वाक् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नि: । दु:ऽअर्मण्य: । ऊर्जा । मधुऽमती । वाक् ॥२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 2; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (दुरर्मण्यः निः) दुष्ट भोजन और दुष्ट प्रवृत्ति दूर हो। क्योंकि (ऊर्जा) उर्ग् उत्तम रसवान् अन्न से (वाक्) वाणी भी (मधुमती) मधु से सिक्त, ज्ञान से युक्त, मधुर होती है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वाग्देवता। १ आसुरी अनुष्टुप्, २ आसुरी उष्णिक्, ३ साम्नी उष्णिक्, ४ त्रिपदा साम्नी बृहती, ५ आर्ची अनुष्टुप्, ६ निचृद् विराड् गायत्री द्वितीयं पर्यायसूक्तम्॥

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