Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 128

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 128/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वाङ्गिरा देवता - सोमः, शकधूमः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - राजा सूक्त

    श॑क॒धूमं॒ नक्ष॑त्राणि॒ यद्राजा॑न॒मकु॑र्वत। भ॑द्रा॒हम॑स्मै॒ प्राय॑च्छन्नि॒दं रा॒ष्ट्रमसा॒दिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒क॒ऽधूम॑म् । नक्ष॑त्राणि । यत् । राजा॑नम् । अकु॑र्वत । भ॒द्र॒ऽअ॒हम् । अ॒स्मै॒ । प्र । अ॒य॒च्छ॒न् । इ॒दम् ।रा॒ष्ट्रम् । असा॑त् । इति॑ ॥१२८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शकधूमं नक्षत्राणि यद्राजानमकुर्वत। भद्राहमस्मै प्रायच्छन्निदं राष्ट्रमसादिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शकऽधूमम् । नक्षत्राणि । यत् । राजानम् । अकुर्वत । भद्रऽअहम् । अस्मै । प्र । अयच्छन् । इदम् ।राष्ट्रम् । असात् । इति ॥१२८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 128; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (नक्षत्राणि) नक्षत्र जिस प्रकार (राजानम्) चन्द्र को अपने में मुख्य बना लेते हैं उसी प्रकार (नक्षत्राणि) नक्षत्र, निर्वीर्य निर्बल प्रजाएं (शकधूमम्) अपनी शक्ति से सब को कंपाने वाले पुरुष को (राजानं) राजा (अकुर्वत) बना लेते हैं, और (अस्मै) उसको (भद्राहम्) ऐसा कल्याणकारी वह शुभ दिवस (प्रायच्छन्) प्रदान करते हैं जिसमें कि (इदम्) यह (राष्ट्रम्) राष्ट्र उसका ही (असात्) हो जाय (इति) ऐसा घोषित करते हैं। अथवा—(इदम् राष्ट्रम् अस्मै प्रायच्छन् इति भद्राहम् असात्) वे इस राष्ट्र को उसको सौप देते हैं इस कारण वह दिन प्रजा के लिये मंगलकारी हो जाता है। अर्थात् प्रजा अपने में शक्तिशाली को राजा बनावे और शुभ दिन में उसका राज्याभिषेक करें। अथवा उसके राज्यारोहण के दिवस को पुण्य मानें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। नक्षत्राणि राजा चन्द्रः सोमः शकधूमश्च देवताः। १-३ अनुष्टुभः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top