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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 48

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 48/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - राका छन्दः - जगती सूक्तम् - राका सूक्त

    रा॒काम॒हं सु॒हवा॑ सुष्टु॒ती हु॑वे शृ॒णोतु॑ नः सु॒भगा॒ बोध॑तु॒ त्मना॑। सीव्य॒त्वपः॑ सू॒च्याच्छि॑द्यमानया॒ ददा॑तु वी॒रं श॒तदा॑यमु॒क्थ्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रा॒काम् । अ॒हम् । सु॒ऽहवा॑ । सु॒ऽस्तु॒ती । हु॒वे॒ । शृ॒णोतु॑ । न॒: । सु॒ऽभगा॑ । बोध॑तु । त्मना॑ । सीव्य॑तु । अप॑: । सू॒च्या । अच्छि॑द्यमानया । ददा॑तु । वी॒रम् । श॒तऽदा॑यम् । उ॒क्थ्य᳡म् ॥५०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    राकामहं सुहवा सुष्टुती हुवे शृणोतु नः सुभगा बोधतु त्मना। सीव्यत्वपः सूच्याच्छिद्यमानया ददातु वीरं शतदायमुक्थ्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    राकाम् । अहम् । सुऽहवा । सुऽस्तुती । हुवे । शृणोतु । न: । सुऽभगा । बोधतु । त्मना । सीव्यतु । अप: । सूच्या । अच्छिद्यमानया । ददातु । वीरम् । शतऽदायम् । उक्थ्यम् ॥५०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 48; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (अहं) मैं पुरुष (राकाम्) पूर्ण चन्द्रवाली पूर्णिमा के समान शोभना, षोडश कलायुक्त गुणवती स्त्री का (सु-हवा) उत्तम ज्ञान और (सुस्तुती) उत्तम गुण वर्णन युक्त वाणी से (हुवे) वर्णन करता हूं। वह (सुभगा) शुभ, सौभाग्य सम्पन्न स्त्री (नः) हमारे उपदेशों का (शृणोतु) श्रवण करे। और (त्मना बोधतु) अपने भीतरी अन्तःकरण से उसको समझे, विचार करे कि वह (अच्छिद्यमानया) कभी न टूटने वाली (सूच्या) सूची से (अपः) सन्तति कर्म को (सीव्यतु) सीये। अर्थात् न टूटते हुए प्रजाजन्तु को बनाये रखे। और (शत-दायम्) सैकड़ों दाय धन को प्राप्त करने वाले (उक्थ्यम्) प्रशंसनीय (वीरम्) पुत्र को (ददातु) उत्पन्न करे। अर्थात् सर्वांग गुणसम्पन्ना महिलाएं वीर, उत्तम राजा होने योग्य यशस्वी पुत्रों को उत्पन्न करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। राका देवता। जगती छन्दः। द्वयृचं सुक्तम्॥

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