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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 80

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 80/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - पौर्णमासी छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - पूर्णिमा सूक्त

    पू॒र्णा प॒श्चादु॒त पू॒र्णा पु॒रस्ता॒दुन्म॑ध्यतः पौ॑र्णमा॒सी जि॑गाय। तस्यां॑ दे॒वैः सं॒वस॑न्तो महि॒त्वा नाक॑स्य पृ॒ष्ठे समि॒षा म॑देम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पू॒र्णा । प॒श्चात् । उ॒त । पू॒र्णा । पु॒रस्ता॑त् । उत् । म॒ध्य॒त: । पौ॒र्ण॒ऽमा॒सी । जि॒गा॒य॒ । तस्या॑म् । दे॒वै: । स॒म्ऽवस॑न्त: । म॒हि॒ऽत्वा । नाक॑स्य । पृ॒ष्ठे । सम् । इ॒षा । म॒दे॒म॒ ॥८५.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूर्णा पश्चादुत पूर्णा पुरस्तादुन्मध्यतः पौर्णमासी जिगाय। तस्यां देवैः संवसन्तो महित्वा नाकस्य पृष्ठे समिषा मदेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पूर्णा । पश्चात् । उत । पूर्णा । पुरस्तात् । उत् । मध्यत: । पौर्णऽमासी । जिगाय । तस्याम् । देवै: । सम्ऽवसन्त: । महिऽत्वा । नाकस्य । पृष्ठे । सम् । इषा । मदेम ॥८५.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 80; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    वह ब्रह्मशक्ति (पश्चात्) इस संसार के प्रलय के अनन्तर भी (पूर्णा) पूर्ण ही थी, और (मध्यतः) इन दोनों कालों के बीच के संसार के रचना काल में भी वह (पौर्णमासी) पूर्णरूप से समस्त जगत् को अपने भीतर मापने या बनाने वाली, महती शक्ति (उत् जिगाय) सब से अधिक उच्चता पर विराजमान है। (तस्यां) उसमें (देवैः) विद्वान् मुक्तात्माओं सहित (सं-वसन्तः) निवास करते हुए (महित्वा) हम लोग अपनी शक्ति और उसकी महिमा से (नाकस्य) सर्वथा दुःखरहित, परम सुखमय मोक्ष के (पृष्ठे) धाम में (इषा) अपनी इच्छा के अनुसार (सं मदेम) आनन्द का उपभोग करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। पौर्णमासी प्रजापतिर्देवता। १, ३, ४ त्रिष्टुप्। ४ अनुष्टुप्।चतुर्ऋचं सूक्तम्।

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