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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 9
    ऋषिः - आभूतिर्ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - निचृच्छक्वरी स्वरः - धैवतः
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    तेजो॑ऽसि॒ तेजो॒ मयि॑ धेहि वी॒र्यमसि वी॒र्यं मयि॑ धेहि॒ बल॑मसि॒ बलं॒ मयि॑ धे॒ह्योजो॒ऽस्योजो॒ मयि॑ धेहि म॒न्युर॑सि म॒न्युं मयि॑ धेहि॒ सहो॑ऽसि॒ सहो॒ मयि॑ धेहि॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तेजः॑। अ॒सि॒। तेजः॑। मयि॑। धे॒हि॒। वी॒र्य᳖म्। अ॒सि॒। वी॒र्य᳖म्। मयि॑। धे॒हि॒। बल॑म्। अ॒सि॒। बल॑म्। मयि॑। धे॒हि॒। ओजः॑। अ॒सि॒। ओजः॑। मयि॑। धे॒हि॒। म॒न्युः। अ॒सि॒। म॒न्युम्। मयि॑। धे॒हि॒। सहः॑। अ॒सि॒। सहः॑। मयि॑। धे॒हि॒ ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तेजोसि तेजो मयि धेहि । वीर्यमसि वीर्यम्मयि धेहि बलमसि बलम्मयि धेह्योजोस्योजो मयि धेहि मन्युरसि मन्युम्मयि धेहि सहोसि सहो मयि धेहि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तेजः। असि। तेजः। मयि। धेहि। वीर्यम्। असि। वीर्यम्। मयि। धेहि। बलम्। असि। बलम्। मयि। धेहि। ओजः। असि। ओजः। मयि। धेहि। मन्युः। असि। मन्युम्। मयि। धेहि। सहः। असि। सहः। मयि। धेहि॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 9
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    व्याखान -

    हे स्वप्रकाश ! अनन्ततेज! आप (तेजः असि) अविद्यान्धकार से रहित हो, किंच सत्यविज्ञान, तेज:स्वरूप हो, (तेजो मयि धेहि) आप कृपादृष्टि से मुझमें वही तेज धारण करो, जिससे मैं निस्तेज, दीन और भीरु कहीं, कभी न होऊँ। हे अनन्तवीर्य परमात्मन्! आप (वीर्यम् असि) वीर्यस्वरूप हो, (वीर्यम् मयि धेहि)  मुझमें भी शक्ति की स्थापना करो। हे महाबलशालिन् ! (बलम् असि) आप सर्वोत्तम बलयुक्त हो, (बलम् मयि धेहि) आप मुझमें भी सर्वोत्तम बल स्थिर रक्खो। हे अनन्तपराक्रम ! आप (ओजः असि) पराक्रमस्वरूप हो सो (ओजो मयि धेहि)  मुझमें भी उसी पराक्रम को सदैव धारण करो । हे दुष्टानामुपरि क्रोधकृत्! (मन्युः असि) आप दुष्टों पर क्रोध करनेवाले हैं, (मन्युं मयि धेहि)  आप मुझमें भी दुष्टों पर क्रोध धारण कराओ । हे अनन्तसहनस्वरूप! (सहः असि) आप अत्यन्त सहनशील हैं, (सहः मयि धेहि)  मुझमें भी आप सहनसामर्थ्य धारण करो, अर्थात् शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा - इनके तेजादि गुण कभी मुझमें से दूर न हों, जिससे मैं आपकी भक्ति का स्थिर अनुष्ठान करूँ और आपके अनुग्रह से संसार में भी सदा सुखी रहूँ ॥ ९ ॥

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