Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 186 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 186/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उप॑ व॒ एषे॒ नम॑सा जिगी॒षोषासा॒नक्ता॑ सु॒दुघे॑व धे॒नुः। स॒मा॒ने अह॑न्वि॒मिमा॑नो अ॒र्कं विषु॑रूपे॒ पय॑सि॒ सस्मि॒न्नूध॑न् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । वः॒ । आ । इ॒षे॒ । नम॑सा । जि॒गी॒षा । उ॒षसा॒नक्ता॑ । सु॒दुघा॑ऽइव । धे॒नुः । स॒मा॒ने । अह॑न् । वि॒ऽमिमा॑नः । अ॒र्कम् । विषु॑ऽरूपे । पय॑सि । सस्मि॑न् । ऊध॑न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप व एषे नमसा जिगीषोषासानक्ता सुदुघेव धेनुः। समाने अहन्विमिमानो अर्कं विषुरूपे पयसि सस्मिन्नूधन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप। वः। आ। इषे। नमसा। जिगीषा। उषसानक्ता। सुदुघाऽइव। धेनुः। समाने। अहन्। विऽमिमानः। अर्कम्। विषुऽरूपे। पयसि। सस्मिन्। ऊधन् ॥ १.१८६.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 186; मन्त्र » 4
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्यां प्राप्योद्योगकरणविषयमाह ।

    अन्वयः

    समानेऽहन्नर्कं विमिमानोऽहं उषासानक्तेव धेनुस्सुदुघेव नमसा जिगीषा यथा स्यात्तथा वो युष्मान् विषुरूपे पयसि सस्मिन्नूधन् व उपेषे ॥ ४ ॥

    पदार्थः

    (उप) (वः) युष्मान् (आ) समन्तात् (ईषे) (नमसा) अन्नादिना (जिगीषा) जेतुमिच्छा (उषासानक्ता) अहर्निशम् (सुदुघेव) यथा सुष्ठु कामधुक् (धेनुः) वाक् (समाने) एकस्मिन् (अहन्) अहनि दिने (विमिमानः) विशेषेण निर्माता सन् (अर्कम्) सत्कर्त्तव्यमन्नम् (विषुरूपे) विरुद्धस्वरूपे (पयसि) उदके (सस्मिन्) सर्वस्मिन्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति रेफवकारलोपः। (ऊधन्) ऊधनि ॥ ४ ॥

    भावार्थः

    अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये रात्रिदिवसवद्वर्त्तमाने विद्याऽविद्ये विदित्वा सर्वस्मिन् समय उद्योगं कृत्वा धेनुवत् प्राणिन उपकृत्य दुष्टान् विजयन्ते ते दुग्धे घृतमिव संसारे सारभूता भवन्ति ॥ ४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्या को पाकर उद्योग करने के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    (समाने) एकसे (अहन्) दिन में (अर्कम्) सत्कार करने योग्य अन्न को (विमिमानः) विशेषता से बनानेवाला मैं (उषासानक्ता) दिन-रात्रि के समान वा (धेनुः) वाणी जो (सुदुघेव) सुन्दर कामना पूरण करनेवाली उसके समान (नमसा) अन्नादि पदार्थ से (जिगीषा) जीतने की इच्छा जैसे हो वैसे (विषुरूपे) नाना प्रकार के रूपवाले (पयसि) जल और (सस्मिन्) समान (ऊधन्) दूध के निमित्त (वः) तुम लोगों के (उप, आ, ईषे) समीप सब ओर से प्राप्त होता हूँ ॥ ४ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो रात्रि-दिवस के समान वर्त्तमान विद्या-अविद्या को जानकर, सब समय में उद्योग कर, धेनु के समान प्राणियों का उपकार कर, दुष्टों को जीतते, वे दूध में घी के तुल्य संसार में सारभूत होते हैं ॥ ४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रातः - सायं प्रभु-स्तवन

    पदार्थ

    १. हे देवो! मैं (उषासानक्ता) = उषाकाल में व रात्रि के प्रारम्भ में अर्थात् प्रातः-सायं (वः) = आपके (उप) = समीप (नमसा) = नम्रता के साथ (आ इषे) = सर्वथा प्राप्त होता हूँ। आपके समीप मैं (जिगीषा) = अन्तः शत्रुओं को जीतने की कामना से प्राप्त होता हूँ। देवों के उपासन से हमारे जीवनों में दैवी सम्पत्ति का वर्धन होता है। इस उपासन से (धेनुः) = ज्ञानदुग्ध देनेवाली यह वेदवाणीरूप गौ (सुदुघा इव) = सुगमता से दोहने के योग्य होती । इसे दोहने से हमारे ज्ञान की वृद्धि होती है। २. मैं इस (विषरूपे पयसि) = विविध, उत्तम रूपोंवाले ज्ञानदुग्ध के निमित्त ही समाने (अहन्) = [सम आनयति] सम्यक् प्राणित करनेवाले दिन और (सस्मिन् ऊधन्) = [ऊधस् रात्रिनाम - नि० १।७] सब रात्रियों में (अर्कम्) = प्रभु के स्तोत्रों का (विमिमान:) = निर्माण [उच्चारण] करनेवाला होता हूँ। वेदवाणीरूप गौ का ज्ञानदुग्ध विविध रूपोंवाला है, अर्थात् यह वेदवाणी सब आवश्यक ज्ञानों को देनेवाली है। इसके दोहन की क्षमता प्राप्त करने के लिए दिन व रात्रि के प्रारम्भ में प्रभु-स्मरण आवश्यक है। प्रभु-स्तवन से जीवन पवित्र बना रहता है तथा बुद्धि पर वासनाओं का परदा नहीं पड़ जाता। तीव्र बुद्धि ज्ञान का प्रकाश प्राप्त कराती है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रातः - सायं देवों व परमात्मा का आराधन हमारी बुद्धि को पवित्र करता है और उस बुद्धि से हमारा ज्ञान बढ़ता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उत्तम विद्वान् अधिकारियों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार (उषासा नक्ता) प्रातः और सायं दोनों काल (सस्मिन् ऊधनि) उस ही अन्तरिक्ष में (विषुरूपे) नाना रूप के जलों के वर्षण के निमित्त (समाने अहन्) एक जैसे दिन में भी (अर्कं विमिमाना उ) सूर्य को विशेष विशेष रूपों का बना देते हैं और कालपर्यय विशेष से (नमसा उपेतः) अन्न सस्यादि सहित प्राप्त होते हैं और जिस प्रकार ( सुदुधा इव धेनुः ) उत्तम दोहने योग्य गौ ( सस्मिन् ऊधनि ) अपने एकही स्तन मण्डल में (विषुरूपे पयसि) नाना रूप में बदलने वाला दूध प्रदान करने के लिये (समाने अहन्) एकही दिन में (अर्क विमिमाना उ) सूर्य से युक्त दिन को व्यतीत करके (नमसा उप एति) विनय भाव से घर को आजाती है उसी प्रकार हे विद्वान् पुरुषो ! मैं (सस्मिन् ऊधनि) एक समान अन्तरिक्ष के नीचे (विषुरूपे पयसि) नानारूप के पुष्टिकारक अन्न के निमित्त (समाने अहनि) एक समान दिन में ही (अर्कं विमिमानः) अर्चना करने योग्य पूज्य विधान्, वाणी, या तेजस्वी पद, उत्तम अन्नादि ऐश्वर्य, या उत्तम उपदेश प्रकट करता हुआ (नमसा) सब शत्रु और मित्र प्रजाओं को नमाने वाले शस्त्र बल और विद्याबल या विनय से और (जिगीषा) विजय करने की इच्छा से (वः उप एषे ) आप प्रजाजन और विद्वान् लोगों के समीप राजा वा शिष्य के समान प्राप्त होता हूं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः– १, ८, ९ त्रिष्टुप्। २, ४ निचृत त्रिष्टुप्। ११ भुरिक त्रिष्टुप्। ३, ५, ७ भुरिक् पङ्क्तिः। ६ पङ्क्तिः। १० स्वराट् पङ्क्तिः। एकादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे रात्र व दिवसाप्रमाणे वर्तमान असतात. विद्या-अविद्या जाणून सर्व काळी उद्योगी असतात. धेनुप्रमाणे प्राण्यांवर उपकार करून दुष्टांना जिंकतात ते दुधात तुपाप्रमाणे जगात सारभूत असतात. ॥ ४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O divinities of earth and humanity, generous powers of nature, I come to you with homage and offerings of food and with the desire for victory day and night as the generous earth does homage to the sun every day constantly, praying for light and seeing in the multiform and multicolour waters of the sky various kinds of wealth like all kinds of wealth and nourishment in the milk contained in the cow’s udders.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Importance of being industrious is underlined.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons, I approach you with reverence and with the offerings of good food etc., day and night. In return, I hope to get power to overcome easily my adversaries, like a gentle cow coming every day to be milked. I see the milk of the cow being taken from all udders with the same splendor.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    NA

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The Vidya (knowledge) and Avidya (ignorance) are like the day and night. They persons knowing the real nature of both are always industrious. They benefit all people like the cow and conquer the wicked, become like the gem of the society or like the cream in the milk.

    Foot Notes

    ( अर्कम् ) सत्कर्तव्यम् अन्नम् । अर्कमन्नं भवति अर्चति भूतानि (N.T. 5.1.4 ) = Good food. ( नमसा ) अन्नादिना । नम इत्यन्ननाम (N.G. 2.7) = With food and reverence.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top