ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 188/ मन्त्र 3
ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः
देवता - आप्रियः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
आ॒जुह्वा॑नो न॒ ईड्यो॑ दे॒वाँ आ व॑क्षि य॒ज्ञिया॑न्। अग्ने॑ सहस्र॒सा अ॑सि ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒ऽजुह्वा॑नः । नः॒ । ईड्यः॑ । दे॒वान् । आ । व॒क्षि॒ । य॒ज्ञिया॑न् । अग्ने॑ । स॒ह॒स्र॒ऽसाः । अ॒सि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आजुह्वानो न ईड्यो देवाँ आ वक्षि यज्ञियान्। अग्ने सहस्रसा असि ॥
स्वर रहित पद पाठआऽजुह्वानः। नः। ईड्यः। देवान्। आ। वक्षि। यज्ञियान्। अग्ने। सहस्रऽसाः। असि ॥ १.१८८.३
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 188; मन्त्र » 3
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
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अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे अग्नेऽग्निरिव वर्त्तमान यतोऽस्माभिराजुह्वान ईड्यः सहस्रसास्त्वमसि तस्मान्नो यज्ञियान् देवानावक्षि ॥ ३ ॥
पदार्थः
(आजुह्वानः) कृतहोमः कृताऽऽमन्त्रणो वा (नः) अस्मान् (ईड्यः) स्तोतुमध्येषितुं योग्यः (देवान्) विदुषो दिव्यान् गुणान् वा (आ) (वक्षि) वहसि प्रापयसि (यज्ञियान्) यज्ञसाधकान् (अग्ने) वह्निरिव वर्त्तमान (सहस्रसाः) यः सहस्राणि पदार्थान् सनोति विभजति सः (असि) ॥ ३ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा गुणकर्मस्वभावतः संसेवितोऽग्निर्बहूनि कार्याणि साध्नोति तथा सेवित आप्तो विद्वान् सर्वान् शुभान् गुणान् कार्यसिद्धीश्च प्रापयति ॥ ३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान विद्वान् ! जिस कारण हम लोगों से जिस प्रकार (आजुह्वानः) होम को प्राप्त (ईड्यः) ढूंढने योग्य (सहस्रसाः) सहस्रों पदार्थों का विभाग करनेवाला अग्नि हो वैसे आमन्त्रण बुलाये को प्राप्त स्तुति प्रशंसा के योग्य सहस्रों पदार्थों को देनेवाले आप (असि) हैं इससे (नः) हमलोगों के (यज्ञियान्) यज्ञ सिद्ध करानेवाले (देवान्) विद्वान् वा दिव्य गुणों को (आ, वक्षि) अच्छे प्रकार प्राप्त कराते हैं ॥ ३ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे गुण, कर्म, स्वभाव से अच्छे प्रकार सेवन किया हुआ अग्नि बहुत कार्यों को सिद्ध करता है, वैसे सेवा किया हुआ आप्त विद्वान् समस्त शुभ गुणों और कार्यसिद्धियों को प्राप्त कराता है ॥ ३ ॥
विषय
देवों का सम्पर्क व आवश्यक धनों का लाभ
पदार्थ
१. हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (आजुह्वानः) = आप ही हमसे सदा आहूयमान होते हो, हम सदा आपका ही द्वार खटखटाते हैं। (नः ईड्यः) = आप ही हमारे स्तुत्य हो । २. आप हमें (यज्ञियान् देवान्) = संगतिकरण योग्य देवों को (आवक्षि) = [आ वह] प्राप्त कराइए । इन देवों के सम्पर्क में आकर हम भी देववृत्ति के बन पाएँ । हे प्रभो! आप (सहस्त्रसा:) = अपरिमित धनों के दाता असि हैं। सब आवश्यक धनों का हमारे लिए प्रभु ही विजय करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु की प्रार्थना व स्तवन करें। प्रभु हमें देवों का सम्पर्क प्राप्त कराते हैं और अपरिमित धनों को देते हैं ।
विषय
तेजस्वी नायक।
भावार्थ
हे (अग्ने) अग्ने ! तेजस्विन् ! अग्रणीनायक ! तू (आजुह्वानः) यज्ञाहुति करता हुआ, या आमन्त्रण पाकर, ( ईडयः ) स्तुति पात्र होकर ( यज्ञियान् ) यज्ञ अर्थात् राष्ट्र पालन करने वाले (देवान्) विद्वान् पुरुषों को ( नः आवक्षि ) हमें प्राप्त करा । तू ( सहस्रसाः असि ) सहस्रों का देने और विभाग करने वाला है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः । आप्रियो देवता ॥ छन्दः–१, ३, ५, ६, ७, १० निचृद्गायत्री। २, ४, ८, ९, ११ गायत्री ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. गुण, कर्म, स्वभावाने चांगल्या प्रकारे स्वीकारलेला अग्नी जसे पुष्कळ कार्य करतो, तसे ज्याची सेवा केलेली आहे असा आप्त विद्वान संपूर्ण शुभ गुणांना व कार्यसिद्धीला प्राप्त करवितो. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, adorable lord of light and knowledge, ruler of the world, invoked and invited to our creative endeavours, bring and proclaim the arrival of the brilliancies of humanity and gems of nature worthy of celebration and advancement by yajnic research and development. You are the creator, harbinger and giver of a thousand gifts of wealth and knowledge.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
We should subserve noble persons.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Agni (noble teachers like the fire) ! invited by us and performing HOMA (YAJNA), you are praiseworthy and are giver of thousands of articles. Bring to us adorable divine and enlightened persons, because they may accomplish our Yajna (non-violent sacrifice).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
NA
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The fire (energy) utilized properly after acquiring the knowledge of its attributes, functions and nature, accomplishes various works. In the same manner, an absolutely truthful you learned persons can accomplish many objects.
Foot Notes
(सहस्त्रसा:) य: सहस्त्राणि पदार्थान् सनोति विभजति स:=-) = Distributor of thousands of articles. (यज्ञियान्) यज्ञसाधकान् = Accomplishers of the Yajna (noble deeds or sacrificial acts),
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