Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 138 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 138/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अङ्ग औरवः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    अयु॑द्धसेनो वि॒भ्वा॑ विभिन्द॒ता दाश॑द्वृत्र॒हा तुज्या॑नि तेजते । इन्द्र॑स्य॒ वज्रा॑दबिभेदभि॒श्नथ॒: प्राक्रा॑मच्छु॒न्ध्यूरज॑हादु॒षा अन॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अयु॑द्धऽसेनः । वि॒ऽभ्वा॑ । वि॒ऽभि॒न्द॒ता । दाश॑त् । वृ॒त्र॒ऽहा । तुज्या॑नि । ते॒ज॒ते॒ । इन्द्र॑स्य । वज्रा॑त् । अ॒बि॒भे॒त् । अ॒भि॒ऽश्नथः॑ । प्र । अ॒क्रा॒म॒त् । शु॒न्ध्यूः । अज॑हात् । उ॒षाः । अनः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयुद्धसेनो विभ्वा विभिन्दता दाशद्वृत्रहा तुज्यानि तेजते । इन्द्रस्य वज्रादबिभेदभिश्नथ: प्राक्रामच्छुन्ध्यूरजहादुषा अन: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयुद्धऽसेनः । विऽभ्वा । विऽभिन्दता । दाशत् । वृत्रऽहा । तुज्यानि । तेजते । इन्द्रस्य । वज्रात् । अबिभेत् । अभिऽश्नथः । प्र । अक्रामत् । शुन्ध्यूः । अजहात् । उषाः । अनः ॥ १०.१३८.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 138; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अयुद्धसेनः) युद्ध न किया जा सके जिसके साथ, ऐसी सेनावाला (विभ्वा) सर्वशक्तियों से व्याप्त पूर्ण (विभिन्दता) अपने बलों से शत्रुबलों का विदारण करनेवाला (वृत्रहा) शत्रुनाशक (तुज्यानि-तेजते) हिंसक शस्त्रों को तीक्ष्ण करता है (दाशत्) अपनी प्रजाओं को अभय देता है (इन्द्रस्य-अभिश्नथः-वज्रात्) राजा के हिंसक वज्र से (अबिभेत्) शत्रु भय को प्राप्त होता है (शुन्ध्यूः) संग्रामभूमि का शोधन करनेवाला राजा (प्र अक्रामत्) आगे बढ़े (उषाः) विजय की कामना करती हुई सेना (अनः) रथ को-रथस्थ सैनिकगण को (अजहात्) संग्रामभूमि में युद्ध के लिये छोड़ दे ॥५॥

    भावार्थ

    राजा की सेना सबल, स्वयं शक्तियों से पूर्ण तीक्ष्ण शस्त्रों को चलानेवाला हो, उसके शस्त्रप्रहार से शत्रु भय करे, संग्राम में शत्रुओं का सफाया करनेवाली सेना भी संग्राम में डट जानेवाली होनी चाहिए ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    शुन्ध्यु व उषा बनना

    पदार्थ

    [१] (अयुद्धसेनः) = जिसकी सेना युद्ध नहीं करती, अर्थात् जो स्वयं अकेला ही शत्रुओं पर आक्रमण करता है वह इन्द्र अपने (विश्वा) = व्यापक (विभिन्दता) = शत्रुओं का विदारण करनेवाले बल से (वृत्रहा) = वृत्र का विनाश करनेवाला होता हुआ (दाशत्) = हमें उन्नति के लिये सब आवश्यक साधनों को प्राप्त कराता है। यह इन्द्र (तुज्यानि) = हिंसित करने योग्य शत्रुओं को (तेजते) = हिंसित करता है । [२] वस्तुतः (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष के (अभिश्नथः) = चारों ओर वासनाओं को हिंसित करनेवाले (वज्रात्) = क्रियाशीलतारूप वज्र से (अबिभेत्) = सब शत्रु भयभीत होते हैं । इस प्रकार क्रियाशीलतारूप वज्र से वासनाओं का संहार करके (शुन्ध्युः) = जीवन को शुद्ध बनानेवाला वह व्यक्ति यह (प्राक्रामत्) = प्रकृष्ट गतिवाला होता है, उन्नति के मार्ग पर आगे और आगे बढ़ता है। यह (उषाः) = [उष दाहे] दोषों का दहन करनेवाला बनकर (अन:) = [birth] जन्म को (अजहात्) = छोड़ता है, अर्थात् यह जन्म-मरण-चक्र से ऊपर उठ जाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ-वासनाओं का संहार करके हम शुद्ध जीवनवाले बनकर आगे बढ़ें। दोषों का दहन करके जन्म-मरण-चक्र से ऊपर उठें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    बिना युद्ध के विजय करने का आदेश। कण्टकशोधन करने का उपदेश।

    भावार्थ

    वह (विभ्वा) विविध प्रकार से उत्पन्न होने वाले (विमिन्दता) शत्रु पक्ष को भेदन करने वाले भेद उपाय से (अयुद्ध-सेनः) बिना सेना लड़ाये ही (वृत्र-हा) शत्रु का नाश करके (तुज्यानि तेजते) अपने मारने योग्य शत्रुओं को कम करे। और (इन्द्रस्य वज्रात्) शत्रुहन्ता ऐश्वर्यवान् पुरुष के (अभि श्नथः) सब ओर मार करने वाले ‘वज्र’, शत्रुवर्जक बल, सैन्य, शस्त्र और पराक्रम से (अबिभेद्) सब कोई भय खावें, और (शुन्ध्यू वयः) शत्रु रूप कण्टकों को साफ करने वाली सेना (प्र अक्रामत्) आगे बढ़े। और (उषाः अनः प्र अजहात्) शत्रु संतापक सैन्य अपना रथ आगे बढ़ावे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिरंग औरवः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १, ४, ६ पादनिचृज्जगती। २ निचृज्जगती। ३, ५ विराड् जगती। षडृच सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अयुद्धसेनः) न युद्धं कृतं कर्तुं शक्यं केनचित् तया सेनया सह तथाभूतेऽयोधव्यसेनावान् (विभ्वा) सर्वशक्तिभिर्व्याप्तः पूर्णः (विभिन्दता) स्वबलेन शत्रुबलानां विदारयिता (वृत्रहा) शत्रुनाशकः (तुज्यानि तेजते) हिंसकानि शस्त्राणि तीक्ष्णीकरोति यः सः (दाशत्) स्वप्रजाभ्योऽभयं ददाति (इन्द्रस्य-अभिश्नथः-वज्रात्-अबिभेत्) राज्ञो हिंसकात् “श्नथति वधकर्मा” [निघ० २।१९] वज्रात् खलु शत्रुर्भयं प्राप्नोति (शुन्ध्युः) सङ्ग्रामभूमिः शोधयिता राजा (प्र अक्रामत्) प्रागच्छेदग्रे (उषाः) विजयं कामयमाना सेना (अनः-अजहात्) स्वकीयं रथं रथस्थं सैनिकगणं तत्र सङ्ग्रामभूमौ युद्धाय त्यजेत् ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, heroic commander of irresistible force, omnipresent and boundless, destroyer of evil and darkness by his inviolable potential, is generous, reduces the hurtful and promotes the progressive. The evil and wicked fear the shattering thunderbolt of Indra who is ever moving forward, illuminating and purifying, and every day the morning moves his chariot for a new dawn of light and progress for humanity.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाची सेना सबल असावी. राजा स्वत: शक्तीने पूर्ण तीक्ष्ण शस्त्रे चालविणारा असावा. त्याच्या शस्त्र प्रहाराने शत्रूने भयभीत व्हावे. युद्धात शत्रूचा नाश करणारी सेनाही युद्धात दृढ मुकाबला करणारी असावी. ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top