ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 157/ मन्त्र 2
ऋषिः - भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - द्विपदात्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
य॒ज्ञं च॑ नस्त॒न्वं॑ च प्र॒जां चा॑दि॒त्यैरिन्द्र॑: स॒ह ची॑कॢपाति ॥
स्वर सहित पद पाठय॒ज्ञम् । च॒ । नः॒ । त॒न्व॑म् । च॒ । प्र॒ऽजाम् । च॒ । आ॒दि॒त्यैः । इन्द्रः॑ । स॒ह । ची॒कॢ॒पा॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यज्ञं च नस्तन्वं च प्रजां चादित्यैरिन्द्र: सह चीकॢपाति ॥
स्वर रहित पद पाठयज्ञम् । च । नः । तन्वम् । च । प्रऽजाम् । च । आदित्यैः । इन्द्रः । सह । चीकॢपाति ॥ १०.१५७.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 157; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(नः) हमारे (यज्ञं च) श्रेष्ठ कर्म को भी (तन्वं च) शरीर को भी (प्रजां च) पुत्र आदि को भी (इन्द्रः) राजा (आदित्यैः-सह) अखण्डित न्यायाधीशों के साथ (चीक्लृपाति) समर्थ बनावे, सम्पन्न बनावे ॥२॥
भावार्थ
राजा न्यायाधीश के सहयोग से राष्ट्र की प्रजाओं के श्रेष्ठ धर्मकृत्यों, शरीरों, उनके पुत्रादि को अन्न और शिक्षा आदि द्वारा योग्य बनावें ॥२॥
विषय
यज्ञ-शरीर-प्रजा
पदार्थ
[१] 'अदिति' अविनाशिनी प्रकृति है । इस से उत्पन्न सूर्य आदि सब पिण्ड 'आदित्य' हैं । (इन्द्रः) = वे परमैश्वर्यशाली प्रभु (आदित्यैः सह) = इन अदिति पुत्रों, सूर्य आदियों के साथ (नः) = हमारे (यज्ञम्) = यज्ञ को (च) = और (तन्वम्) = शरीर को (च) = और (प्रजाम्) = प्रजा को (चीक्लृपाति) = समर्थ करते हैं, शक्तिशाली बनाते हैं । [२] जब गत मन्त्र के अनुसार हम शरीर, मन व मस्तिष्क को साधित करते हैं तो प्रभु हमारे अन्दर यज्ञ की प्रवृत्ति को बढ़ाते हैं, हमारे शरीरों को दृढ़ करते हैं तथा हमारी प्रजाओं को भी उत्तम बनाते हैं। मस्तिष्क के वशीकरण से विचारों की उत्तमता होकर यज्ञ प्रवृत्ति बढ़ती है । मन के वशीकरण से वासनाओं के अभाव में शक्ति का रक्षण होकर शरीर उत्तम बनता है। शरीर पर आधिपत्य होने से उत्तम सन्तानों का जन्म होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- हम मस्तिष्क, मन व शरीर पर संयमवाले होकर अपने में 'यज्ञ, शरीर की शक्ति व प्रजा' का वर्धन करें।
विषय
आदित्यों सहित इन्द्र के महान् सामर्थ्य।
भावार्थ
(इन्द्रः) अन्न देने वाला, मेघ, सूर्य, वा प्रभु (नः यज्ञं च) इमारे यज्ञ को, और (तन्वं च) देह को और (प्रजां च) प्रजा को (आदित्यैः सह) इस जल आदान करने वाले किरणों वो मासों सहित (चीक्लृपाति) समर्थ बलवान् करता है, हमें वृष्टि, अन्न जल देता और पालता है। राजा के उत्तम शासकगण आदित्य के तुल्य हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः। विश्वेदेवा देवताः॥ द्विपदा त्रिष्टुप् पञ्चर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(नः यज्ञं च तन्वं च प्रजां च) अस्माकं श्रेष्ठतमं कर्म च शरीरं च पुत्रादिप्रजां च (इन्द्रः-आदित्यैः सह चीक्लृपाति) राजा खल्वखण्डितन्यायाधीशैः सह च “आदित्यानाम्-अखण्डित- न्यायाधीशानाम्” [यजु० २५।६ दयानन्दः] कल्पयतु समर्थयतु संसाधयतु ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, the sun, the wind, electric energy of the firmament with all year’s phases of the sun, supports, strengthens and promotes our yajna, our body’s health and our people and future generations.
मराठी (1)
भावार्थ
राजाने न्यायाधीशांच्या सहयोगाने राष्ट्रातील प्रजेच्या श्रेष्ठ धर्मकृत्यांना, शरीरांना त्यांच्या पुत्र इत्यादींना अन्न व शिक्षण इत्यादीद्वारे योग्य बनवावे. ॥२॥
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