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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 163 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 163/ मन्त्र 3
    ऋषिः - विवृहा काश्यपः देवता - यक्ष्मघ्नम् छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    आ॒न्त्रेभ्य॑स्ते॒ गुदा॑भ्यो वनि॒ष्ठोर्हृद॑या॒दधि॑ । यक्ष्मं॒ मत॑स्नाभ्यां य॒क्नः प्ला॒शिभ्यो॒ वि वृ॑हामि ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒न्त्रेभ्यः॑ । ते॒ । गुदा॑भ्यः । व॒नि॒ष्ठोः । हृद॑यात् । अधि॑ । यक्ष्म॑म् । मत॑स्नाभ्याम् । य॒क्नः । प्ला॒शिऽभ्यः॑ । वि । वृ॒हा॒मि॒ । ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आन्त्रेभ्यस्ते गुदाभ्यो वनिष्ठोर्हृदयादधि । यक्ष्मं मतस्नाभ्यां यक्नः प्लाशिभ्यो वि वृहामि ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आन्त्रेभ्यः । ते । गुदाभ्यः । वनिष्ठोः । हृदयात् । अधि । यक्ष्मम् । मतस्नाभ्याम् । यक्नः । प्लाशिऽभ्यः । वि । वृहामि । ते ॥ १०.१६३.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 163; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ते) तेरे (आन्त्रेभ्यः) आँतों से (गुदाभ्यः) मलस्थानों से (वनिष्ठोः) स्थूल आँत से (हृदयात्-अधि) हृदय के अन्दर से (मतस्नाभ्याम्) दोनों गुर्दों से (यक्नः) यकृत् से-जिगर से (प्लाशिभ्यः) प्लीह स्थानों से-तिल्ली के भागों से (यक्ष्मं वि वृहामि) रोग को पृथक् करता हूँ ॥३॥

    भावार्थ

    रोगी के आँतों, गुदा, मूल आँत, हृदय, गुर्दों, यकृत्, प्लीहा में होनेवाले रोग को दूर करना चाहिये ॥३॥

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    विषय

    उदर से रोग का निराकरण

    पदार्थ

    [१] (ते) = तेरी (आन्त्रेभ्यः) = आँतों से, (गुदाभ्यः) = गुदा की नाड़ियों से, (वनिष्ठोः) = स्थूल आँतों से, (हृदयात् अधि) = हृदय से (यक्ष्मम्) = रोग को (विवृहामि) = उन्मूलित करता हूँ। [२] (ते मतस्नाभ्याम्) = तेरे दोनों गुर्दों से, (यक्नः) = यकृत् [जिगर] से (प्लाशिभ्यः) = क्लोम प्लीहा आदि अन्य उदरस्थ मांस पिण्डों से (यक्ष्मम्) = रोग को (विवृहामि) उखाड़ फेंकता हूँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ- मैं तेरे उदर को बिलकुल नीरोग करता हूँ ।

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    विषय

    रोगी के आंख, नाक, कान, ठुड्डी, मस्तिष्क, बाहु, धमनियों, और अस्थियों गुदा, आंतों, आदि पेट के भीतरी अंगों से और जांघों, पैरों, टांगों, एड़ियों, पंजों, नितम्बों से, मूत्र, मलादि द्वारों और अन्य अनेक जोड़ों से राजयक्ष्मादि नाश करने का उपदेश।

    भावार्थ

    (ते आन्त्रेभ्यः) तेरी आंतों से, (गुदाभ्यः) गुदा की नाड़ियों से और (वनिष्ठोः) स्थूल आंत से, (हृदयात् अधि) हृदय से (ते मतस्नाभ्यां) तेरे दोनों गुर्दों में से, (यक्नः) यकृत् से, (प्लाशिभ्यः) पेट में स्थित अन्य भोजन-पाचक तिल्ली आदि यन्त्रों से (यक्ष्मं वि वृहामि) रोग को दूर करूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिविंवृहा काश्यपः॥ देवता यक्ष्मध्नम्॥ छन्द:- १, ६ अनुष्टुप्। २-५ निचृदनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ते) तव (आन्त्रेभ्यः) पाचनस्थानेभ्यः (गुदाभ्यः) गुदस्थानेभ्यो मलस्थानेभ्यः (वनिष्ठोः) स्थूलान्त्रात् (हृदयात्-अधि) हृदयान्तर्गतात् (मतस्नाभ्याम्) वृक्काभ्याम् (यक्नः) यकृतः (प्लाशिभ्यः) प्लीहस्थानेभ्यः (यक्ष्मं विवृहामि) रोगं पृथक् करोमि ॥३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    I banish consumptive cancer from your intestines, rectum, colon, heart, kidneys, liver, and the lower and other parts of the digestive system.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    रोग्याच्या आतडे, गुदा, मूळ आतडे, हृदय, गुर्दे, यकृत प्लीहा यांच्यामध्ये होणाऱ्या रोगांना दूर केले पाहिजे. ॥३॥

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