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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 167/ मन्त्र 2
ऋषिः - विश्वामित्रजमदग्नी
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराड्जगती
स्वरः - निषादः
स्व॒र्जितं॒ महि॑ मन्दा॒नमन्ध॑सो॒ हवा॑महे॒ परि॑ श॒क्रं सु॒ताँ उप॑ । इ॒मं नो॑ य॒ज्ञमि॒ह बो॒ध्या ग॑हि॒ स्पृधो॒ जय॑न्तं म॒घवा॑नमीमहे ॥
स्वर सहित पद पाठस्वः॒ऽजित॑म् । महि॑ । म॒न्दा॒नम् । अन्ध॑सः । हवा॑महे । परि॑ । श॒क्रम् । सु॒तान् । उप॑ । इ॒मम् । नः॒ । य॒ज्ञम् । इ॒ह । बो॒धि॒ । आ । ग॒हि॒ । स्पृधः॑ । जय॑न्तम् । म॒घऽवा॑नम् । ई॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वर्जितं महि मन्दानमन्धसो हवामहे परि शक्रं सुताँ उप । इमं नो यज्ञमिह बोध्या गहि स्पृधो जयन्तं मघवानमीमहे ॥
स्वर रहित पद पाठस्वःऽजितम् । महि । मन्दानम् । अन्धसः । हवामहे । परि । शक्रम् । सुतान् । उप । इमम् । नः । यज्ञम् । इह । बोधि । आ । गहि । स्पृधः । जयन्तम् । मघऽवानम् । ईमहे ॥ १०.१६७.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 167; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(महि) महान् (स्वर्जितम्) सुख के जेता (मन्दसानम्) आनन्द देनेवाले (शक्रम्) शक्तिमान् राजा को (परि हवामहे) हम सब प्रकार से आमन्त्रित करते हैं (सुतान्-अन्धसः) निष्पादित अन्नभोगों को (उप) उपयुक्त करे (इह) इस अवसर पर (नः) हमारे (इमं यज्ञम्) इस सत्कारयज्ञ को (बोधि) जान-स्वीकार कर (आ गहि) आजा (स्पृधः) संग्रामों को (जयन्तम्) जीतते हुए (मघवानम्) ऐश्वर्यवान् राजा को (ईमहे) चाहते हैं अपनी शरण देने को ॥२॥
भावार्थ
राजा गुणों बलों में महान् संग्राम जीतनेवाला प्रजाजनों द्वारा सत्करणीय होता है, प्रजा का महान् शरण है, शरणीय है ॥२॥
विषय
प्रकाश द्वारा आसुर-वृत्तियों का विनाश
पदार्थ
[१] हम (स्वर्जितम्) = हमारे लिये प्रकाश का विजय करनेवाले, (महि) = महान्, (मन्दानमन्) = आनन्दस्वरूप (शक्रम्) = शक्तिशाली परमात्मा को (अन्धसः सुतान् परि) = सोम के सवनों का लक्ष्य करके (उपहवामहे) = समीपता से पुकारते हैं। प्रभु के स्मरण से शरीर में सोम का सम्यक् रक्षण होता है। इस सोम के रक्षण से हम भी प्रकाश का विजय करनेवाले, महान्, आनन्दमय व शक्तिशाली बन पाते हैं । [२] हे प्रभो ! आप (नः) = जो (इमं यज्ञम्) = इस जीवनयज्ञ को (इह) = यहाँ (बोधि) = जानिये, इसका ध्यान करिये। (आगहि) = आप हमें प्राप्त होइये । हम (स्पृधः जयन्तम्) = हमारे सब शत्रुओं का पराभव करनेवाले, (मघवानम्) = ऐश्वर्यशाली प्रभु को (ईमहे) = याचना करते हैं। प्रभु से हम यही याचना करते हैं कि प्रभु हमारे काम-क्रोध आदि सब शत्रुओं का पराभव करें।
भावार्थ
भावार्थ - हम प्रभु से यही याचना करते हैं कि वे हमें प्रकाश प्राप्त करायें। इस प्रकाश से हमारे आसुरभाव विनष्ट हों । आसुरभावों के विनाश से हम सोम का रक्षण करें। सोमरक्षण से हम वास्तविक आनन्द को प्राप्त करें ।
विषय
विजयी आत्मा से समस्त कामनाओं की पूर्ति की अभिलाषा।
भावार्थ
हम (स्वः-जितं) सुखों पर या सब पर विजय पाने वाले, (अन्धसः महि मन्दानम्) अन्न के द्वारा बहुत अधिक प्रसन्नता, हर्ष करने वाले और (सुतान् उप) उत्पन्न हुए इन देहों को प्राप्त कर (शक्रम्) शक्तिशाली, उस आत्मा को (परि हवामहे) सर्वत्र ही वर्णन करते हैं। हे आत्मन् ! तू (नः इमं यज्ञम् इह बोधि) हमारे इस यज्ञ को यहां जान, (आगहि) तू हमें प्राप्त हो। (स्पृधः जयन्तम् मघवानम्) संग्रामकारिणी स्पर्धालु सेनाओं के तुल्य बाधक शक्तियों पर विजय पाते हुए उस ऐश्वर्यवान् आत्मा से हम समस्त अभिलाषाओं की याचना करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः विश्वामित्रजमदग्नी॥ देवता—१, २, ४ इन्द्रः। ३ लिङ्गोक्ताः॥ छन्दः—१ आर्चीस्वराड् जगती। २, ४ विराड् जगती। ३ जगती॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(महि स्वर्जितं मन्दसानम्) महान्तं सुखस्य जेतारमानन्दयन्तम् (शक्रं परि हवामहे) शक्तं शक्तिमन्तं राजानं सर्वत्र आमन्त्रयामहे (सुतान्-अन्धसः-उप) निष्पादितान्-अन्नादिभोगान् “अन्धः अन्ननाम” [निघ० २।७] अस्मदर्थमुपयुक्तान् कुर्यात् (इह) अस्मिन्नवसरे (नः इमं यज्ञं बोधि आगहि) अस्माकमेतत्सत्कारयज्ञं बुध्यस्व “कर्तरि कर्मप्रत्ययो व्यत्ययेन” आगच्छ (स्पृधः-जयन्तम्-मघवानम् ईमहे) संग्रामान् “स्पृधः संग्रामनाम” [निघ० २।१७] जयन्तमैश्वर्यवन्तं त्वां राजानं याचामहे स्वशरणं दातुम् ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Mighty winner of high renown, creator of a high state of freedom and happiness, lover and giver of the joy of achievement, we invite and adore you. Pray acknowledge this yajnic success of our corporate creative struggle for social development, come and take it over. We invoke, exhort and exalt the mighty victor over rivals, adversaries and fighting forces of the enemies of life and humanity.
मराठी (1)
भावार्थ
राजा गुण व बल यात महायुद्ध जिंकणारा असल्यामुळे प्रजेद्वारे सत्कार करण्यायोग्य असतो. प्रजेचा महान शरणीय असतो. ॥२॥
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