ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
इ॒मां मे॑ अग्ने स॒मिध॑मि॒मामु॑प॒सदं॑ वनेः। इ॒मा ऊ॒ षु श्रु॑धी॒ गिरः॑॥
स्वर सहित पद पाठइ॒माम् । मे॒ । अ॒ग्ने॒ । स॒म्ऽइध॑म् । इ॒माम् । उ॒प॒ऽसद॑म् । व॒ने॒रिति॑ वनेः । इ॒माः । ऊँ॒ इति॑ । सु । श्रु॒धि॒ । गिरः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमां मे अग्ने समिधमिमामुपसदं वनेः। इमा ऊ षु श्रुधी गिरः॥
स्वर रहित पद पाठइमाम्। मे। अग्ने। सम्ऽइधम्। इमाम्। उपऽसदम्। वनेरिति वनेः। इमाः। ऊँ इति। सु। श्रुधि। गिरः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्निगुणानाह।
अन्वयः
हे अग्नेऽध्यापक यथाऽग्निर्मे ममेमां समिधमिमामुपसदं च सेवते तथा त्वं वनेरिमा उ गिरः सु श्रुधि ॥१॥
पदार्थः
(इमाम्) (मे) मम (अग्ने) अग्निरिव विद्वन् (समिधम्) इन्धनम् (इमाम्) (उपसदम्) उपसीदन्ति यस्यां तां वेदीम् (वनेः) (इमाः) (उ) (सु) सुष्ठु (श्रुधि) शृणु। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (गिरः) वाणीः ॥१॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वन् यथा वह्निः समिद्भिर्वर्धते तथाऽस्मान् परीक्षयाऽस्मद्वचांसि च श्रुत्वा वर्द्धय ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब आठ चावाले छठे सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि के गुणों का वर्णन करते हैं।
पदार्थ
हे (अग्ने) अग्नि के समान अध्यापक विद्वान् ! जैसे अग्नि (मे) मेरे (इमाम्) इस (समिधम्) इन्धन को और (इमाम्) इस (उपसदम्) वेदी को कि जिसमें स्थित होते हैं सेवन करता है वैसे आप (वनेः) सेवन करनेवाले विद्यार्थी की (इमाः) इन (उ) (गिरः) वाणियों को (सु,श्रुधि) सुन्दरता से सुनो ॥१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वान् ! जैसे अग्नि समिधाओं में बढ़ता है, वैसे हम लोगों को परीक्षा से और हमारे वचनों को सुनकर बढ़ाइये ॥१॥
विषय
यज्ञ-उपासना-ज्ञान
पदार्थ
१. हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (मे) = मेरी (इमाम्) = इस (समिधम्) = समिधा को–यज्ञों में अग्नि के समिन्धन को (वनेः) = आप स्वीकार करिए। मैं यज्ञों के द्वारा आपको प्रीणित करनेवाला बनूँ । २. (इमाम्) = इस (उपसदम्) = [Sitting at the feet of] आपके चरणों में प्रातः सायं उपस्थित होने को आप स्वीकार करिए। मैं आपकी उपासना करूँ और यह उपासना मुझे आपका प्रिय बनाए । ३. (उ) = और आप (इमाः) = इन (गिरः) = ज्ञान की वाणियों को (सु श्रुधि) = उत्तमता से सुनिए, अर्थात् मैं सदा ज्ञानवाणियों का ही उच्चारण करनेवाला बनूँ। मेरे मुख से व्यर्थ के शब्दों का उच्चारण ही न हो । इन ज्ञानवाणियों से मैं आपका प्रिय बनूँ।
भावार्थ
भावार्थ- मैं यज्ञशील बनूँ, उपासना की वृत्तिवाला बनूँ, सदा ज्ञानवाणियों में विचरूँ इस प्रकार मैं प्रभु का प्रिय बनूँ।
विषय
अग्नि में समिधा-प्रदीप्तिवत् गुरु से शिष्य को ज्ञान प्राप्ति । (
भावार्थ
जिस प्रकार अग्नि ( समिधम् ) प्रदीप्त होने के लिये समिधा, काष्ठ जो उसके अति समीप रख दी जाती है को से लेता है और जला देता है उसी प्रकार हे (अग्ने) ज्ञानवन् ! गुरो ! ईश्वर ! आप भी ( इमाम् ) इस ( समिधम् ) अच्छी प्रकार प्रकाशित होने वाली समिधा को जो ( उपसदं ) शिष्य रूप से आपके समीप प्राप्त है उसे ( वनेः ) स्वीकार करें प्रेम पूर्वक अपनायें उसे ज्ञान अग्नि से प्रज्वलित करें । और हे शिष्य ! ( इमाः गिरः ) इन वेद वाणियों को ( उ ) भी तू ( सु श्रुधि ) उत्तम रीति से श्रवण कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सोमाहुतिभर्गिव ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः– १, ३, ५,८ गायत्री । २,४, ६ निचृद्गायत्री । ७ विराड्गायत्री ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात वह्नी व ईश्वराच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे.
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वाना! जसा अग्नी समिधांमुळे वाढतो तशी आमची परीक्षा करून आमचे वचन ऐकून आम्हाला वाढव. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, lord giver of light and knowledge, pray accept this holy fuel of mine offered with folded hands, accept this homage and allow the supplicants entry to the yajna of enlightenment, and listen graciously to these prayers of mine.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of Agni are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O fire-like scholar (Agni) ! the way you accept the oblations put in the holy pit of the Homa, likewise you listen to the lessons and practical actions of your pupils.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Here is a simile. The way fire in the Yajna grows with the oblations of fire-wood and haven samagri (medical and fragrant dried herbs), same way, O scholar ! you take our test and listen to our lessons and submissions.
Foot Notes
(उपसदम् ) उपसीदन्ति यस्यां तां वेदीम् = The holy pit for oblations. (गिर:) वाणी ( वाप्य:| सं:) = Lessons and submissions.
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