ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 58/ मन्त्र 5
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ति॒रः पु॒रू चि॑दश्विना॒ रजां॑स्याङ्गू॒षो वां॑ मघवाना॒ जने॑षु। एह या॑तं प॒थिभि॑र्देव॒यानै॒र्दस्रा॑वि॒मे वां॑ नि॒धयो॒ मधू॑नाम्॥
स्वर सहित पद पाठति॒रः । पु॒रु । चि॒त् । अ॒श्वि॒ना॒ । रजां॑सि । आ॒ङ्गू॒षः । वा॒म् । म॒घ॒ऽवा॒ना॒ । जने॑षु । आ । इ॒ह । या॒त॒म् । प॒थिऽभिः॑ । दे॒व॒ऽयानैः॑ । दस्रौ॑ । इ॒मे । वा॒म् । नि॒ऽधयः॑ । मधू॑नाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तिरः पुरू चिदश्विना रजांस्याङ्गूषो वां मघवाना जनेषु। एह यातं पथिभिर्देवयानैर्दस्राविमे वां निधयो मधूनाम्॥
स्वर रहित पद पाठतिरः। पुरु। चित्। अश्विना। रजांसि। आङ्गूषः। वाम्। मघऽवाना। जनेषु। आ। इह। यातम्। पथिऽभिः। देवऽयानैः। दस्रौ। इमे। वाम्। निऽधयः। मधूनाम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 58; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे दस्रौ मघवाना अश्विना यदि वां देवयानैः पथिभिः पुरू रजांसि तिर आयातं तर्हीह वां जनेष्विमे मधूनां निधयः प्राप्नुयुः। आङ्गूषश्चिदपि प्राप्नुयात् ॥५॥
पदार्थः
(तिरः) तिर्यक् (पुरू) बहूनि (चित्) अपि (अश्विना) शिल्पविद्याविदावध्यापकोपदेशकौ (रजांसि) लोकान् (आङ्गूषः) विद्वान् (वाम्) युवाम् (मघवाना) परमोत्तमधनयुक्तौ (जनेषु) मनुष्येषु (आ) (इह) (यातम्) (पथिभिः) मार्गैः (देवयानैः) देवा विद्वांसो यान्ति यैस्तैः (दस्रौ) क्लेशविनाशकौ (इमे) (वाम्) (निधयः) धनसमूहाः (मधूनाम्) माधुर्य्यगुणयुक्तानां पदार्थानाम् ॥५॥
भावार्थः
ये विद्वद्गतैर्मार्गैः पदार्थविद्या अन्विच्छेयुस्ते सकलविद्याः प्राप्य जलस्थलान्तरिक्षेषु गत्वागत्य श्रीमन्तो भूत्वा दारिद्र्यं तिरस्कृत्य निधिमन्तः सन्तोऽन्यानप्येवं कुर्य्युः ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे (दस्रौ) क्लेश के नाशकर्त्ता (मघवाना) अत्यन्त उत्तम धनयुक्त (अश्विना) शिल्पविद्या के जाननेवाले अध्यापक और उपदेशको ! जो (वाम्) आप दोनों (देवयानैः) विद्वान् लोग जिनसे चलते उन (पथिभिः) मार्गों से (पुरू) बहुत (रजांसि) लोकों को (तिरः) तिर्छे मार्ग से (आ, यातम्) प्राप्त होवें तो (इह) यहाँ (वाम्) तुम दोनों को (जनेषु) मनुष्यों में (इमे) ये (मधूनाम्) माधुर्य गुणों से युक्त पदार्थसम्बन्धी (निधयः) धनों के समूह प्राप्त होवैं। और (आङ्गूषः) विद्वान् (चित्) भी प्राप्त होवे ॥५॥
भावार्थ
जो लोग विद्वानों के मार्गों से पदार्थविद्याओं का खोज करैं, वे सम्पूर्ण विद्याओं को प्राप्त हों तथा जल स्थल और अन्तरिक्षों में जा आ और लक्ष्मीवान् हो दारिद्र्य का तिरस्कार करके धनवान् होते हुए अन्य जनों को भी ऐसे ही करैं ॥५॥
विषय
रजोगुण से ऊपर उठना
पदार्थ
[१] हे (अश्विना) = प्राणापाणो ! (पुरूचित्) = बहुत भी रजांसि राजसभावों को (तिरः) = तिरस्कृत करके (इह) = इस जीवन में (देवयानैः पथिभिः) = देवयानमार्गों से (आयातम्) = प्राप्त होओ। प्राणापान की साधना करते हुए हम रजोगुण से ऊपर उठकर सत्त्वगुण में स्थित हों और सदा देवयान मार्गों से गतिवाले हों। [२] हे (मघवाना:) = ज्ञानैश्वर्यवाले प्राणापानो! (जनेषु) = लोगों में (वाम्) = आपका (आंगूषः) = स्तोत्र हो । लोग प्राणापान का स्तवन करते हुए प्राणसाधना में प्रवृत्त हों। [३] हे (दस्त्रौ) = सब दोषों का उपक्षय करनेवाले प्राणापानो ! इमे ये (मधूनाम्) = सोमों के (निधयः) = कोश (वाम्) = आपके ही हैं, अर्थात् प्राणापान की साधना से ही इनकी शरीर में ऊर्ध्वगति होती है और ये शरीर में सुरक्षित होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ– प्राणसाधना से [क] रजोगुण से ऊपर उठकर सत्वगुण में हमारी स्थिति होती है, [ख] सोमकणों की ऊर्ध्वगति होकर शरीर में उनका रक्षण होकर बुद्धि विकास में सहायक होते हैं ।
विषय
अश्वी, नासत्य, सोमपान आदि पदों की व्याख्या।
भावार्थ
हे (अश्विना) अश्वयुक्त सैन्य बल के स्वामी, राजा रानी के समान विद्या में व्यापक सामर्थ्यवान् स्त्री पुरुषो ! हे (मघवाना) ऐश्वर्य के स्वामियो ! (जनेषु) मनुष्यों के बीच में (वां) तुम दोनों का (आङ्गूषः) घोष या उपदेश (रजांसि तिरः) सब लोकों को प्राप्त हो और (वां आंगूषः रजांसि तिरः) तुम दोनों का उपदेश राजस विकारों को दूर करे। अथवा (आङ्गूषः वां रजांसि तिरः) वेद वाणी तुम दोनों के राजसी रजोविकार काम क्रोधादि दोषों को दूर करे और आप दोनों (देवयानैः पथिभिः) देव, विद्वान् पुरुषों से जाने योग्य मार्गों से (इह आ यातम्) इस पृथिवी पर आओ। हे (दस्रौ) अज्ञानादि के नाशको ! (वां) तुम्हारे लिये ही (इमे) ये (मधूनां) मधुर ज्ञान व अन्नादि पदार्थों के (निधयः) सब खजाने हैं। इति तृतीयो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः– १, ८, ९ त्रिष्टुप्। २, ३, ४, ५, ७ निचृत्त्रिष्टुप्। ६ भुरिक् पंक्तिः॥ नवर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे विद्वानाच्या मार्गाने पदार्थ विद्येचा शोध घेतात, ती संपूर्ण विद्या प्राप्त करतात. जल व अंतरिक्षात जा-ये करून श्रीमंत बनून दारिद्र्याचा नाश करतात व इतर लोकांना श्रीमंत करतात. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, scholars of science and energy of light and winds, cross over many many regions of earth and skies and come here. O lords of power and prosperity, let your songs of praise ring among the people. Reach here by paths of brilliant sun-rays. O destroyers of suffering and poverty, all the treasures of sweets and pleasure are for you.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The functions of automobile vehicles are elaborated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Ashvinau teachers and preachers ! you know technology. O destroyers of miseries! endowed with the great wealth of knowledge and wisdom, in case you come higher by the paths traversed by the highly educated persons, you can obtain the treasures of sweet (edibles. Ed.) substances. You may also get assist once from the learned men, in your work.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who traversing by the paths of the highly educated persons, desire to acquire scientific knowledge, can acquire it soul. And then may travel on earth, water and in the sky. In this manner, they can become rich, may eradicate poverty and may make others also prosperous being full of treasures.
Translator's Notes
अश्विनोः कृते विद्वांसौ इति प्रयोगो वेदेष्वनेकत्र दृश्यते, यथा- विद्वांसाविद् पुरः पुच्छेदविद्वान् इत्यापो अचेताः । ( ऋ० 1, 12, 2) तां विद्वांसा हवामहे वांता नो विद्वांसमनावोचेतमद्य। अश्विनौः शिल्पविद्यया सह सम्बन्धो वेदमन्त्रेषु स्पष्टतया दृश्यते विविविधधानविमानषोतादिनिर्माणदिभिः सह ।
Foot Notes
(अश्विनौ) शिल्पविद्याविदावध्यापकोदेशकौ । = The teachers and preachers, knowers of the technology. (आङ्गुषः) विद्वान् = The learned.
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