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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 23/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    को अ॑स्य वी॒रः स॑ध॒माद॑माप॒ समा॑नंश सुम॒तिभिः॒ को अ॑स्य। कद॑स्य चि॒त्रं चि॑किते॒ कदू॒ती वृ॒धे भु॑वच्छशमा॒नस्य॒ यज्योः॑ ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः । अ॒स्य॒ । वी॒रः । स॒ध॒ऽमाद॑म् । आ॒प॒ । सम् । आ॒नं॒श॒ । सु॒म॒तिऽभिः॑ । कः । अ॒स्य॒ । कत् । अ॒स्य॒ । चि॒त्रम् । चि॒कि॒ते॒ । कत् । ऊ॒ती । वृ॒धे । भु॒व॒त् । श॒श॒मा॒नस्य॑ । यज्योः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को अस्य वीरः सधमादमाप समानंश सुमतिभिः को अस्य। कदस्य चित्रं चिकिते कदूती वृधे भुवच्छशमानस्य यज्योः ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कः। अस्य। वीरः। सधऽमादम्। आप। सम्। आनंश। सुमतिऽभिः। कः। अस्य। कत्। अस्य। चित्रम्। चिकिते। कत्। ऊती। वृधे। भुवत्। शशमानस्य। यज्योः ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 23; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! को वीरोऽस्य सधमादमाप को वीरोऽस्य सुमतिभिश्चित्रं चिकिते कदस्य विद्यां समानंश को वीर ऊती शशमानस्य यज्योर्वृधे कद्भुवत् ॥२॥

    पदार्थः

    (कः) (अस्य) अध्यापकस्य राज्ञो वा (वीरः) विद्यया प्राप्तशरीरात्मबलः (सधमादम्) सहाऽऽनन्दम् (आप) आप्नुयात् (सम्) (आनंश) प्राप्नोति (सुमतिभिः) श्रेष्ठैर्विद्वद्भिस्सह (कः) (अस्य) (कत्) कदा (अस्य) (चित्रम्) अद्भुतं विज्ञानम् (चिकिते) जानाति (कत्) (ऊती) ऊत्या रक्षणाद्येन (वृधे) वृद्धये (भुवत्) भवेत् (शशमानस्य) प्रशंसितस्य (यज्योः) सङ्गन्तुमर्हस्य सत्यव्यवहारस्य ॥२॥

    भावार्थः

    हे विद्वन् राजन् वा ! कः केन सह पठेत् कः केन सह न्यायं कुर्य्याद् युद्ध्येद्वा क एषां वरिष्ठ इति प्रश्नस्य ये प्रशंसितकर्म्मणामनुष्ठातारो वर्धकाः स्युरित्युत्तरम् ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! (कः) कौन (वीरः) विद्या से प्राप्त शरीर और आत्मबलयुक्त (अस्य) इस अध्यापक वा राजा के (सधमादम्) साथ आनन्द को (आप) प्राप्त होवे (कः) कौन वीर (अस्य) इसके (सुमतिभिः) श्रेष्ठ विद्वानों के साथ (चित्रम्) अद्भुत विज्ञान को (चिकिते) जानता है (कत्) कब (अस्य) इसको विद्या को (सम्, आनंश) प्राप्त होता है और कौन वीर (ऊती) रक्षण आदि से (शशमानस्य) प्रशंसित (यज्योः) संगम करने योग्य सत्य व्यवहार की (वृधे) वृद्धि के लिये (कत्) कब (भुवत्) होवे ॥२॥

    भावार्थ

    हे विद्वन् वा राजन् ! कौन किसके साथ पढ़े? कौन किसके साथ न्याय करे? वा युद्ध करे? कौन इनमें श्रेष्ठ? इस प्रश्न का जो प्रशंसित कर्म्मों के अनुष्ठान और वृद्धि करनेवाले होवें, यह उत्तर है ॥२॥

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    विषय

    सुमति की प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] (कः) = कोई एक (वीर:) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं का विनाशक व्यक्ति ही (अस्य) = इस प्रभु के (सधमादम्) = सम्पर्क के आनन्द को आप प्राप्त होता है। प्रभुप्राप्ति का आनन्द वीरपुरुष ही प्राप्त करता है । [२] (कः) = कोई वीर ही (अस्य) = इस प्रभु की (सुमतिभिः) = कल्याणी मतियों से (समानंश) = [संगच्छते सा०] संगत होता है। उस प्रभु की उपासना करता हुआ उस अन्तः स्थित प्रभु प्रेरणा को सुनता हुआ विरल पुरुष ही सद्बुद्धिवाला बनता है। [३] (कत्) = कभी ही (अस्य) = इस प्रभु का (चित्रम्) = वह अद्भुत ज्ञानैश्वर्य (चिकिते) = जाना जाता है। (कद्) = कभी ही (ऊती) = वे प्रभु रक्षण द्वारा (शशमानस्य) = स्तवन करनेवाले (यज्यो:) = यज्ञशील पुरुष की (वृधे भुवत्) = वृद्धि के लिए होते हैं। प्रभु ज्ञान देकर ही हमारा रक्षण करते हैं। इस को प्राप्त करने के लिए हमें ध्यान द्वारा प्रभु के सम्पर्क को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम वीर बनें। ध्यान द्वारा प्रभु के सम्पर्क के आनन्द का अनुभव करें। हमें प्रभु से कल्याणी मति व ज्ञान प्राप्त होगा। यह ज्ञान हमारा रक्षक होगा।

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    विषय

    राजा और आचार्य के सम्बन्ध में नाना ज्ञातव्य बातें प्रजा वा शिष्य को उपदेश ।

    भावार्थ

    (अस्य) इसके (सधमादम्) साथ आनन्द प्रसन्न होने का अवसर (कः) कौन (आप) प्राप्त करता है। और (अस्य) इसके साथ (सुमतिभिः) उत्तम बुद्धियों, विज्ञान और विज्ञानवान् पुरुषों सहित (कः समानंश) कौन सत्संग करता है, मनुष्य जो उसका सत्संग और सहयोग भी करता है वह (अस्य) इसके (चित्रं) अद्भुत सामर्थ्य को (कत्) कब (चिकिते) जान पाता है, (अस्य) इस (यज्योः) सत्संग-योग्य, दाता, परम मित्र एवं (शशमानस्य) उत्तम गुणों में प्रशंसित और अन्यों को शासन करने वा शस्त्रादि का अभ्यास करने वाले पुरुष की (ऊती) रक्षा, ज्ञान और अन्यों को प्रसन्न करने के सामर्थ्य से (वृधे) वृद्धि प्राप्त करने के लिये (कत्) कब (भुवत्) समर्थ होता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ १–७, ११ इन्द्रः । ८, १० इन्द्र ऋतदेवो वा देवता॥ छन्द:– १, २, ३, ७, ८, ६,२ त्रिष्टुप् । ४, १० निचृत्त्रिष्टुप् । ५, ६ भुरिक् पंक्ति: । ११ निचृत्पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे विद्वाना किंवा राजा ! कुणी कुणाबरोबर शिकावे, कुणी कुणाबरोबर न्याय करावा किंवा युद्ध करावे, कोण यामध्ये श्रेष्ठ आहे या प्रश्नाचे उत्तर असे की; जो प्रशंसित कर्माचे अनुष्ठान व वृद्धी करतो तो श्रेष्ठ आहे. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Who is the brave who reaches the ecstasy of the lord’s company? Who attains to him and shares the manifestations of his vision and intelligence? When does he know and realise the wonder and variety of this lord’s benediction? When does the lord’s grace flow for the protection and advancement of the supplicant in yajna?

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    More questions are put.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! who is the heroic person that can get joy from a teacher or a king? Who is it that can acquire wonderful knowledge in the company of noble scholars? Who can get his (scholar's ) wisdom ? Who (heroic person) can develop, with protective powers, the laudable true and unifying dealings ?

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O learned person or king! who should study with whom? Who should administer justice with whom? And who should fight against evil with whom? Who is the best among them? The answers to these questions are with those who do noble deeds and advance the cause of truth.

    Foot Notes

    (सधमादम् ) सहाऽऽनन्दम् । = Joy with. (शशमानस्य ) प्रशंसितस्य । = Admired. (यज्जो:) सङ्गन्तुमर्हस्य सत्यव्यहारस्य । = Of the unifying true dealings.

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