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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 25/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    को अ॒द्य नर्यो॑ दे॒वका॑म उ॒शन्निन्द्र॑स्य स॒ख्यं जु॑जोष। को वा॑ म॒हेऽव॑से॒ पार्या॑य॒ समि॑द्धे अ॒ग्नौ सु॒तसो॑म ईट्टे ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः । अ॒द्य । नर्यः॑ । दे॒वऽका॑मः । उ॒शन् । इन्द्र॑स्य । स॒ख्यम् । जु॒जो॒ष॒ । कः । वा॒ । म॒हे । अव॑से । पार्या॑य । सम्ऽइ॑द्धे । अ॒ग्नौ । सु॒तऽसो॑मः । ई॒ट्टे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को अद्य नर्यो देवकाम उशन्निन्द्रस्य सख्यं जुजोष। को वा महेऽवसे पार्याय समिद्धे अग्नौ सुतसोम ईट्टे ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कः। अद्य। नर्यः। देवऽकामः। उशन्। इन्द्रस्य। सख्यम्। जुजोष। कः। वा। महे। अवसे। पार्याय। सम्ऽइद्धे। अग्नौ। सुतऽसोमः। ईट्टे ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 25; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ प्रश्नोत्तरविषय आरभ्यते ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन्नद्य को देवकाम इन्द्रस्य सख्यमुशन्नर्य्यो धर्म्मं जुजोष को वा महे पार्य्यायावसे समिद्ध अग्नौ सुतसोमः सन्नैश्वर्य्यमीट्टे इति वयं पृच्छामः ॥१॥

    पदार्थः

    (कः) (अद्य) इदानीम् (नर्य्यः) नृषु साधुः (देवकामः) यो देवान् विदुषः कामयते (उशन्) कामयमानः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्ययुक्तस्य (सख्यम्) मित्रत्वम् (जुजोष) सेवते (कः) (वा) विकल्पे (महे) महते (अवसे) रक्षणाद्याय (पार्य्याय) दुःखपारं गमयते (समिद्धे) प्रसिद्धे (अग्नौ) पावके (सुतसोमः) सुतः सोमो येन (ईट्टे) ऐश्वर्य्यं लभते ॥१॥

    भावार्थः

    यो विद्यामित्रत्वकामस्सर्वजगत्प्रियाचारी सर्वेषां रक्षणं कुर्वन्नग्नौ होमादिना प्रजाहितं कुर्य्यात् स एव जगद्धितैषी वर्त्तत इत्युत्तरम् ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब आठ ऋचावाले पच्चीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रश्नोत्तरविषय का आरम्भ किया जाता है ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! (अद्य) इस समय (कः) कौन (देवकामः) विद्वानों की कामना करनेवाला (इन्द्रस्य) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त के (सख्यम्) मित्रत्व की (उशन्) कामना करता हुआ (नर्य्यः) मनुष्यों में श्रेष्ठ धर्म्म का (जुजोष) सेवन करता है (कः, वा) अथवा कौन (महे) बड़े (पार्य्याय) दुःख के पार उतारनेवाले (अवसे) रक्षण आदि के लिये (समिद्धे) प्रसिद्ध (अग्नौ) अग्नि में (सुतसोमः) सोमरस को उत्पन्न करनेवाला हुआ ऐश्वर्य्य को (ईट्टे) प्राप्त होता है, यह हम लोग पूछते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जो विद्या और मित्रता की कामना करनेवाला, सम्पूर्ण जगत् का प्रिय आचरण करता और सब का रक्षण करता हुआ अग्नि में होम आदि से प्रजा का हित करे, वही जगत् का हित चाहनेवाला है, यह उत्तर है ॥१॥

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    विषय

    नर्यः देवकामः

    पदार्थ

    [१] (कः) = कोई विरल व्यक्ति ही (अद्य) = आज (नर्य:) नरहितकारी कर्मों में लगा हुआ (देवकाम:) = दिव्यगुणों की कामनावाला व देव [प्रभु]-प्राप्ति की कामनावाला (उशन्) = चाहता हुआ, अर्थात् इच्छापूर्वक (इन्द्रस्य) = परमैश्वर्यशाली प्रभु के (सख्यम्) = मित्रता को (जुजोष) = प्रीतिपूर्वक सेवन करता है। कोई विरल व्यक्ति ही प्रभु की ओर झुकता है । [२] (कः वा) = या कौन (सुतसोमः) = सोम का सम्पादन करनेवाला (अग्नौ समिद्धे) = ज्ञानाग्नि के समिद्ध होने पर (महे) = महान् (पार्याय) = भवसागर को पार करने में उत्तम (अवसे) = रक्षण के लिये (ईट्टे) = प्रभु का उपासन करता है। प्रभु के उपासन का प्रकार यही है कि, [क] हम शरीर में सोम का रक्षण करें, [ख] इससे ज्ञानाग्नि समिद्ध होगी, [ग] हम विषयों में न फँसेंगे। इस प्रकार हम प्रभु का वास्तविक पूजन कर रहे होंगे।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु की मित्रता में हम नरहितकारी कर्मों में प्रवृत्त होते हैं। विषयों में न फँसकर भवसागर से पार हो जाते हैं।

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    विषय

    सर्व हितकारी नायक । उसके कर्त्तव्य । उ

    भावार्थ

    (कः) कौन (अद्य) वर्त्तमान में (नर्यः) मनुष्यों वा नायक पुरुषों में सर्वोत्तम, सबका हितकारी है। [उत्तर]—जो (उशन्) उत्तम कामना से युक्त होकर सबको चाहता हुआ (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् प्रभु (सख्यं) प्रेम भाव का (जुजोष) सेवन करता है । [प्रश्न]—(वा) और (कः) कौनसा पुरुष (महे अवसे) बड़ी रक्षा करने में समर्थ है । [उत्तर] जो (पार्याय) पार पहुंचाने में समर्थ पुरुष के लिये (समिद्धे अग्नौ) अग्नि के प्रदीप्त हो जाने पर (सुतसोमः) ‘सोम’ अर्थात् ऐश्वर्य उत्पन्न करके (ईट्टे) ऐश्वर्य प्राप्त करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १ निचृत् पंक्तिः । २,८ स्वराट् पंक्तिः । ४, ६ भुरिक् पंक्तिः । ३, ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात प्रश्नोत्तर, राजा, उत्तम, मध्यम, निकृष्ट माणसांच्या गुणांचे वर्णन, राजाच्या मंत्र्याचे पक्षपातरहित आचरण उपदेश असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    जो (कोणी) विद्या व मैत्रीची कामना करणारा, संपूर्ण जगाला प्रिय वाटेल असे आचरण करणारा, सर्वांचे रक्षण करणारा, अग्नीचा होम इत्यादी करून प्रजेचे हित साधणारा असतो तोच जगाचे हित साधणारा असतो. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Who today among noble humanity, lover of the light of divinity, inspired with holy ambition and enthusiasm, enjoys the favour and friendship of Indra? Or, who, having offered oblations of distilled soma into the lighted fire for the achievement of great redeeming divine protection, enjoys the honour and excellence of life? Answer: The friend and lover of humanity who is dedicated to Indra, the supreme ruler.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The questions and their answers are given.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! who is the best among man? The answer is that the best is he, who desires the en- lightened persons and friendship with God and serves (observes) Dharma (righteousness). Another answer may be the person, who gains wealth protection that leads beyond all misery, by putting the way of oblation of Soma in the kindled fire. This is the question that we have put to you.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The answer to the above question is that the well-wisher of the whole world is the person who is desirous of true knowledge and friendship (nearness) with God, doing good to the whole universe, protects all, and brings about the welfare of people, through the performance of Homa or Yajna in the fire.

    Foot Notes

    (देवकामः) यो देवान् विदुषः कामयते । विद्वाँसो हि देवा: (Stph 3, 7, 3, 10) = He who desires the enlightened persons. (ईहे) ऐश्वर्य्यं * लभते । = Gets wealth or prosperity. (उशन्) कामयमान: । = Desiring..

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