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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 24/ मन्त्र 11
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    नू ष्टु॒त इ॑न्द्र॒ नू गृ॑णा॒न इषं॑ जरि॒त्रे न॒द्यो॒३॒॑ न पी॑पेः। अका॑रि ते हरिवो॒ ब्रह्म॒ नव्यं॑ धि॒या स्या॑म र॒थ्यः॑ सदा॒साः ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नु । स्तु॒तः । इ॒न्द्र॒ । नु । गृ॒णा॒नः । इष॑म् । ज॒रि॒त्रे । न॒द्यः॑ । न । पी॒पे॒रिति॑ पीपेः । अका॑रि । ते॒ । ह॒रि॒ऽवः॒ । ब्रह्म॑ । नव्य॑म् । धि॒या । स्या॒म॒ । र॒थ्यः॑ । सदा॒ऽसाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो३ न पीपेः। अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नु। स्तुतः। इन्द्र। नु। गृणानः। इषम्। जरित्रे। नद्यः। पीपेरिति पीपेः। अकारि। ते। हरिऽवः। ब्रह्म। नव्यम्। धिया। स्याम। रथ्यः। सदाऽसाः ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 24; मन्त्र » 11
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे हरिव इन्द्र ! स्तुतो गृणानस्त्वं जरित्रे नद्यो नेषं नु पीपेस्तस्मात्तेऽस्माभिर्धिया नव्यं ब्रह्माकारि त्वया सह रथ्यः सदासा वयमैश्वर्य्यन्तो नु स्याम ॥११॥

    पदार्थः

    (नु) अत्रोभयत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (स्तुतः) शुद्धव्यवहारेण प्रशंसितः (इन्द्र) ऐश्वर्यमिच्छुक (नु) (गृणानः) पुरुषार्थं स्तुवन् (इषम्) अन्नम् (जरित्रे) याचमानाऽयाचिताय वा (नद्यः) सरितः (न) इव (पीपेः) वर्द्धय (अकारि) क्रियते (ते) तव (हरिवः) प्रशंसितभृत्ययुक्त (ब्रह्म) महद्धनम् (नव्यम्) देशदेशान्तराद् द्वीपद्वीपान्तराद्वा (धिया) व्यवहारज्ञया प्रज्ञया सुष्ठु कृतेन कर्म्मणा वा (स्याम) भवेम (रथ्यः) बहुरथादियुक्ताः (सदासाः) भृत्यैः सहिताः ॥११॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यदि यूयं धनमिच्छत तर्हि धर्म्येण पुरुषार्थेन योग्यां क्रियां सततं कुरुतेति ॥११॥ अत्र ब्रह्मचर्यवतः पुत्रप्रशंसाऽधर्मत्यागेन सुकर्मणा प्रज्ञैश्वर्यधनं युक्ताऽहारविहारः शत्रुविजयो ज्येष्ठकनिष्ठव्यवहारश्चोक्तोऽत एतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥११॥ इति चतुर्विंशं सूक्तं द्वादशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (हरिवः) प्रशंसा करने योग्य भृत्यों से युक्त (इन्द्र) ऐश्वर्य्य की इच्छा करनेवाले ! (स्तुतः) शुद्ध व्यवहार से प्रशंसित (गृणानः) पुरुषार्थ की स्तुति करते हुए आप (जरित्रे) याचना करनेवाले वा जिसकी याचना नहीं की गई उसके लिये (नद्यः) नदियों के (न) सदृश (इषम्) अन्न को (नु) निश्चय (पीपेः) बढ़ाओ तिससे =उससे (ते) आपका हम लोगों से (धिया) व्यवहार को जाननेवाली बुद्धि वा उत्तम किये हुए कर्म्म से (नव्यम्) देश-देशान्तर वा द्वीप-द्वीपान्तर से नवीन (ब्रह्म) बहुत धन (अकारि) किया जाता है और आपके साथ (रथ्यः) बहुत रथ आदि से युक्त (सदासाः) भृत्यों के सहित हम लोग ऐश्वर्य्यवाले (नु) शीघ्र (स्याम) होवें ॥११॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! यदि आप लोग धन की इच्छा करो तो धर्म्मयुक्त पुरुषार्थ से योग्य क्रिया को निरन्तर करो ॥११॥ इस सूक्त में ब्रह्मचर्यवाले के पुत्र की प्रशंसा, अधर्म के त्याग से और उत्तम कर्म से बुद्धि और ऐश्वर्य की वृद्धि, नियमित आहार विहार, शत्रु का विजय और ज्येष्ठ कनिष्ठ का व्यवहार खा गया, इस से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥११॥ यह चौबीसवाँ सूक्त और बारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    स्तोता के लिए प्रेरणा

    पदार्थ

    मन्त्र की व्याख्या २३.११ पर द्रष्टव्य है । सूक्त का विषय यही है कि प्रभु ही हमारी इन्द्रियों का रक्षण करते हैं। इसलिए प्रभु की मित्रता ही चाहने योग्य है -

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    विषय

    राष्ट्र का क्रम-प्रति क्रम ।

    भावार्थ

    व्याख्या देखो १९ वा सूक्त मं० ११ ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्द:– १, ५, ७ त्रिष्टुप् । ३, ९ निचृत् त्रिष्टुप् । ४ विराट् त्रिष्टुप । २, ८ भुरिक् पंक्तिः । ६ स्वराट् पंक्तिः । ११ निचृत् पंक्तिः । १० निचृदनुष्टुप् ॥ इत्येकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! जर तुम्हाला धनाची इच्छा असेल तर धर्मयुक्त पुरुषार्थाने सतत योग्य क्रिया करा. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, lord of glory, thus praised and celebrated, bless the supplicant with food, energy and enlightenment just as overflowing streams bring living waters for humanity. O lord of power and progress at high speed, thus is the song of celebration and yajnic homage offered to you, the newest presentation, so that with your blessings of intelligence and action we may be master warriors of the chariot and great servants of Divinity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Significance of good etiquette is underlined.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! you deserve to acquire wealth are endowed with admired attendants, and are praised on account of honest and pure dealings. Always admiring industriousness, fill like rivers a needy man with food materials. It is for this (charity) that we give you great wealth, produced from the different lands with practical wisdom and good actions. May we be also with you (cooperate with you) along with our servants and chariots, as we are prosperous ?

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men ! if you want to acquire wealth, do it with righteous industriousness and constant endeavor on your part.

    Foot Notes

    (इन्द्र) ऐश्वर्य्यमिच्छुक | = Desirous of acquiring wealth. (धिया) व्यवहारज्ञया प्रज्ञया सुष्ठु कृतेन कर्मणा वा । धीरिति प्रज्ञानाम (NG 3, 9) धीरिति कर्मनाम (NG 2, 1)। = With practical wisdom or good actions. (इषम् ) अन्नम् । = Food.

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