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ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 47/ मन्त्र 3
वाय॒विन्द्र॑श्च शु॒ष्मिणा॑ स॒रथं॑ शवसस्पती। नि॒युत्व॑न्ता न ऊ॒तय॒ आ या॑तं॒ सोम॑पीतये ॥३॥
स्वर सहित पद पाठवायो॒ इति॑ । इन्द्रः॑ । च॒ । शु॒ष्मिणा॑ । स॒ऽरथ॑म् । श॒व॒सः॒ । प॒ती॒ इति॑ । नि॒युत्व॑न्ता । नः॒ । ऊ॒तये॑ । आ । या॒त॒म् सोम॑ऽपीतये ॥
स्वर रहित मन्त्र
वायविन्द्रश्च शुष्मिणा सरथं शवसस्पती। नियुत्वन्ता न ऊतय आ यातं सोमपीतये ॥३॥
स्वर रहित पद पाठवायो इति। इन्द्रः। च। शुष्मिणा। सऽरथम्। शवसः। पती इति। नियुत्वन्ता। नः। ऊतये। आ। यातम्। सोमऽपीतये ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 47; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजामात्यगुणानाह ॥
अन्वयः
हे शुष्मिणा शवसस्पती नियुत्वन्ता वायविन्द्रश्च न ऊतये सोमपीतये सरथमायातम् ॥३॥
पदार्थः
(वायो) महाबल (इन्द्रः) राजा (च) (शुष्मिणा) बलिष्ठौ (सरथम्) समानं यानम् (शवसः) बलस्य (पती) पालकौ (नियुत्वन्ता) प्रभुसमर्थौ (नः) अस्माकम् (ऊतये) रक्षणाय (आ) (यातम्) (सोमपीतये) ऐश्वर्य्यपालनाय ॥३॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! ये राज्ञोऽमात्याश्च बलवर्द्धिनः समर्था न्यायकारिणः स्युस्ते युष्माकं पालकाः सन्तु ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राजा और अमात्य के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (शुष्मिणा) बलयुक्त और (शवसः) बल के (पती) पालन करनेवाले (नियुत्वन्ता) स्वामी और समर्थ (वायो) बड़े बल से युक्त (इन्द्रः, च) और राजा (नः) हम लोगों के (ऊतये) रक्षण आदि के और (सोमपीतये) ऐश्वर्य्य के पालन के लिये (सरथम्) समान वाहन को (आ, यातम्) प्राप्त होओ ॥३॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो राजा के मन्त्री जन बल के बढ़ानेवाले सामर्थ्य युक्त और न्यायकारी होवें, वे आप लोगों के पालन करनेवाले हों ॥३॥
विषय
शुष्म व शवस्
पदार्थ
[१] (वायो) = हे क्रियाशीलता रूप देव! तू (च) = और (इन्द्रः) = यह जितेन्द्रियता रूप देवसम्राट् (सुष्मिणा) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं के शोषण के बलवाले हो । (शवस: पती) = शक्ति के स्वामी हो । मानस बल 'शुष्म' है, शरीर बल 'शवस्' है। [२] आप दोनों (सरथम्) = इस समान रथ में (नियुत्वन्ता) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाले होकर (ऊतये) = रक्षा के लिए (यः) = हमें (आयातम्) = प्राप्त होइये और (सोमपीतये) = सोम [वीर्य] - रक्षण के लिये होइये। सोम को शरीर में व्याप्त करते हुए आप हमें 'शुष्म व शवस्' को प्राप्त कराते हैं । इन्द्र का बल 'शुष्म' है। इससे यह काम क्रोध आदि शत्रुओं का शोषण करता है। वायु का बल 'शवस्' है। इससे यह सदा क्रियाशील बना रहता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम जितेन्द्रिय व क्रियाशील बनकर 'शुष्मी' व 'शवसस्पति' बनें ।
विषय
इनके कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे (वायो इन्द्रः च) हे महाबल सेनापते और हे राजन् ! तुम दोनों (शुष्मिणा) बलवान् और (शवसः) सैन्य बल के पालक और (नियुत्वन्तः) नियुक्त हज़ारों लाखों सैन्य जनों सहित (सरथं) रथ सहित (नः ऊतये) हमारी रक्षा और (सोमपीतये) राष्ट्र-ऐश्वर्य के पालन और उपभोग के लिये (आ यातम्) आदरपूर्वक आओ ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १ वायुः । २-४ इन्द्रवायू देवते ॥ छन्दः- १, ३ अनुष्टुप् । ४ निचृदनुष्टुप् । २ भुरिगुष्णिक् ॥ चतुर्ऋचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जे राजाचे मंत्री बल वाढविणारे, सामर्थ्ययुक्त व न्यायी असतील त्यांनी तुमचे पालन करावे. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Vayu and Indra, most powerful, commander and ruler of the power and force of existence, controllers of the dynamics of energy, come hither together by the same chariot as two in one for the protection and promotion of our yajna of production, honour and excellence.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of the kings and ministers are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O mighty vigorous and very powerful king and prime minister ! you are protectors (conserver) of great energy and masters of your senses and subjects. Come to guard or maintain our prosperity and protect us while riding in your car together.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
May those kings and their ministers who intensify strength, and are efficient and dispensers of justice, let them protect you.
Foot Notes
(शुष्मिणा) बलिष्ठौ । शुष्मम् इति बलनाम (NG 2, 9) = Very powerful. (सोमपीतये) ऐश्वय्र्यस्य पालनाय । सोमः -षु-प्रसवैश्वर्ययोः (स्वा० ) अत्रैश्वर्यार्थग्रहणम् । = For the protection of your prosperity.
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