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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 8/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स हि वेदा॒ वसु॑धितिं म॒हाँ आ॒रोध॑नं दि॒वः। स दे॒वाँ एह व॑क्षति ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । हि । वेद॑ । वसु॑ऽधितिम् । म॒हान् । आ॒ऽरोध॑नम् । दि॒वः । सः । दे॒वान् । आ । इ॒ह । व॒क्ष॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स हि वेदा वसुधितिं महाँ आरोधनं दिवः। स देवाँ एह वक्षति ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। हि। वेद। वसुऽधितिम्। महान्। आऽरोधनम्। दिवः। सः। देवान्। आ। इह। वक्षति॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यं दिव आरोधनं वसुधितिं विद्वान् वेद स हि महान् वर्त्तत स इह देवानावक्षतीति विजानीत ॥२॥

    पदार्थः

    (सः) (हि) यतः (वेद) वेत्ति। द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (वसुधितिम्) वसूनां द्रव्याणां धारकम् (महान्) (आरोधनम्) रोधनम् (दिवः) प्रकाशस्य (सः) (देवान्) दिव्यान् गुणान् भोगान् (आ) (इह) (वक्षति) वहति प्रापयति ॥२॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः ! यो विद्युदग्निर्दिव्यभोगगुणप्रदः सूर्यस्याऽपि सूर्यः सर्वधर्त्ता व्याप्तोऽस्ति तं विदित्वा कार्य्याणि साध्नुत ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जिसको (दिवः) प्रकाश के (आरोधनम्) रोकने और (वसुधितिम्) द्रव्यों के धारण करनेवाले को विद्वान् (वेद) जानता है (सः) वह (हि) जिससे (महान्) बड़ा है और (सः) वह (इह) इस संसार में (देवान्) श्रेष्ठ गुण और भोगों को (आ, वक्षति) प्राप्त कराता है, ऐसा जानो ॥२॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो बिजुलीरूप अग्नि श्रेष्ठ भोग और गुणों का दाता सूर्य्य का भी सूर्य्य और सब का धारण करनेवाला व्याप्त है, उसको जानके कार्य्यों को सिद्ध करो ॥२॥

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    विषय

    वसु-ज्ञान- दिव्यगुण

    पदार्थ

    [१] (सः) = वे प्रभु (हि) = ही (वसुधितिम्) = सब धनों के धारण को (वेद) = जानते हैं। वे प्रभु हमें सब आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त कराते हैं। वे (महान्) = पूजनीय प्रभु ही (दिव: आरोधनम्) = [आरोहणं] प्रकाशमय लोक के आरोहण को [सीढ़ी को] प्राप्त कराते हैं, अर्थात् उस मार्ग का ज्ञान देते हैं, जिस पर चलकर हम उत्तरोत्तर अपने ज्ञान को बढ़ानेवाने बनते हैं और अन्ततः प्रकाशमय लोक में हमारा निवास होता है । [२] (सः) = वे प्रभु ही सब वसुओं को प्राप्त कराके तथा प्रकाशमय लोक पहुँचने के मार्ग का ज्ञान देकर इह इस जीवन में (देवान्) = सब दिव्य गुणों को आवक्षति प्राप्त कराते हैं। 'निर्धनता व अज्ञान' ये दोनों ही बातें दिव्यगुणों के विकास की विरोधिनी हैं । दिव्य गुणों के विकास के लिये वसुओं की प्राप्ति व ज्ञान आवश्यक हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हमारे लिये वसुओं को प्राप्त कराते हैं, ज्ञान के मार्ग को दिखाते हैं और इस प्रकार हमें दिव्यगुणों के विकास के लिये तैयार कर देते हैं ।

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    विषय

    ज्ञानमय सर्वज्ञ प्रभु की उपासना ।

    भावार्थ

    (सः हि) वही (महान्) गुणों में महान् है, वह (वसुधितिं वेद) ऐश्वर्य का धारण करना और कराना जानता है, वह (दिवः) ज्ञान और प्रकाश का (आरोधनं) संचय और वृद्धि करना जाने । (सः) वह (देवान्) किरणों के समान (देवान्) नाना उत्तम सुखप्रद गुणों, पदार्थों और विद्वानों को (इह) इस जगत् में (आ वक्षति) धारण करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्द:– १, ४, ५, ६ निचृद्गायत्री। २,३,७ गायत्री । ८ भुरिग्गायत्री ॥ षड्जः स्वरः ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! जो विद्युतरूपी अग्नी श्रेष्ठ भोगांच्या गुणांचा दाता, सूर्याचाही सूर्य, सर्वांना धारण करणारा व सर्वात व्याप्त आहे, त्याला जाणून कार्य सिद्ध करा. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ye men and women of the world, that knower alone knows Agni, treasure hold of heavenly light and divine beneficence of universal wealth. That Agni is great, that alone brings us here the light and graces of nature and divinity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of Agni are elaborated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! you should know that Agni (energy) gives and controls light and upholds various articles. A learned man (scientist) knows well certainly much about it. That (Agni) conveys to us divine qualities and enjoyments.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! you should know the properties of the (Agni). It gives divine enjoyment and virtues. It provides light to the sun, upholds and pervades all, who known it and well accomplish all works.

    Foot Notes

    (दिवः) प्रकाशस्य । = Of the light. (देवान् ) दिव्यान् गुणान् भोगान् वा = Divine qualities or enjoyments. (वक्षति ) वहति प्रापयति । Conveys, leads to.

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