ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 13/ मन्त्र 3
अ॒ग्निर्जु॑षत नो॒ गिरो॒ होता॒ यो मानु॑षे॒ष्वा। स य॑क्ष॒द्दैव्यं॒ जन॑म् ॥३॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निः । जु॒ष॒त॒ । नः॒ । गिरः॑ । होता॑ । यः । मानु॑षेषु । आ । सः । य॒क्ष॒त् । दैव्य॑म् । जन॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निर्जुषत नो गिरो होता यो मानुषेष्वा। स यक्षद्दैव्यं जनम् ॥३॥
स्वर रहित पद पाठअग्निः। जुषत। नः। गिरः। होता। यः। मानुषेषु। आ। सः। यक्षत्। दैव्यम्। जनम् ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे विद्वन् ! यो होता यथाग्निर्नो गिरो जुषत यथा स मानुषेषु दैव्यं जनमा यक्षत्तथा त्वमनुतिष्ठ ॥३॥
पदार्थः
(अग्निः) पावक इव विद्वान् (जुषत) जुषते (नः) अस्माकम् (गिरः) वाचः (होता) दाता (यः) मानुषेषु (आ) (सः) (यक्षत्) सङ्गच्छेत् पूजयेद्वा (दैव्यम्) दिव्येषु गुणेषु भवम् (जनम्) विद्वांसम् ॥३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यद्यग्निर्न स्यात्तर्हि कोऽपि जीवो जिह्वां चालयितुं न शक्नुयात् ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वन् ! (यः) जो (होता) दाता (अग्नि) अग्नि के सदृश तेजस्वी विद्वान् (नः) हम लोगों की (गिरः) वाणियों का (जुषत) सेवन करता है और जैसे (सः) वह (मानुषेषु) मनुष्यों में (दैव्यम्) श्रेष्ठ गुणों में उत्पन्न (जनम्) विद्वान् जन को (आ, यक्षत्) प्राप्त हो वा सत्कार करे, वैसे आप करिये ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो अग्नि न हो तो कोई भी जीव जिह्वा न चला सके ॥३॥
विषय
विद्वान् तेजस्वी पुरुष की सेवा-शुश्रूषा, उसका समर्थन । अपने ऐश्वर्य के निमित्त प्रजा का राजा का आश्रय ग्रहण ।
भावार्थ
भा०- (यः) जो ( अग्निः ) अग्निवत् तेजस्वी, ज्ञान का प्रकाशक, और ( मानुषेषु ) मनुष्यों में (होता) सब ज्ञानों और ऐश्वर्यो का देने वाला है वह ( नः गिरः ) हमारी वाणियों को ( आ जुषत ) आदरपूर्वक प्रेम से स्वीकार करे । ( सः ) वह ( दैव्यं जनम् ) विद्वानों के हितकारी लोगों का भी ( यक्षत् ) आदर करता और उनको सुख, ज्ञान, ऐश्वर्यादि दान करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सुतम्भर आत्रेय ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्द:- १, ४, ५ निचृद् गायत्री । २, ६ गायत्री । ३ विराङ्गायत्री ॥ षडचं सूक्तम् ॥
विषय
स यक्षत् दैव्यं जनम्
पदार्थ
[१] (अग्निः) = वह अग्रणी प्रभु (नः गिरः) = हमारी स्तुति वाणियों को (जुषत) = प्रीतिपूर्वक सेचन करें। हमारी स्तुतिवाणियाँ प्रभु के लिये प्रिय हों। हमें स्तुति वृत्तिवाला देखकर प्रभु को हम प्रिय लगें। [२] वे प्रभु हमारी स्तुतिवाणियों को प्राप्त करें (यः) = जो कि (मानुषेषु) = विचारशील प्रजाओं में (आ होता) = समन्तात् आवश्यक वस्तुओं के देनेवाले हैं। [२] (सः) = वे प्रभु (दैव्यं जनम्) = देव की ओर चलनेवाले, देव को अपनानेवाले, मनुष्य को (यक्षत्) = प्राप्त हों [यज् संगतिकरणे] । हम देववृत्तिवाले बनेंगे तो प्रभु हमें क्यों न प्राप्त होंगे।
भावार्थ
भावार्थ- हम स्तुति द्वारा प्रभु के प्रिय होते हैं। ये प्रभु विचारशील पुरुषों के लिये सब आवश्यक वस्तुओं को देनेवाले हैं। देववृत्तिवाले पुरुषों को ये प्राप्त होते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोमापलंकार आहे. जर अग्नी नसेल तर कोणताही माणूस जीभसुद्धा हलवू शकत नाही. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May Agni, life and light and fire of the world, yajaka, creator and giver of wealth among the people, hear and accept our prayer, come and join the brilliant creative geniuses and bless us with wealth.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of enlightened persons is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned persons! a donor who is purifier like the fire loves and accepts our speeches and he associates with and adores a scholar endowed with divine virtues. So you should also do.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If there is no fire, none can even move his tongue.
Foot Notes
(अग्नि) पावक इव विद्वान् । = A learned person purifier like the fire. (होता) दाता । हु-दानादनयोः आदाने च अत्र दानार्थग्रहणम् । = Donor. (यक्षत्) सङ्गच्छेत्पूजयेद्वा । यज-देवपूजा सङ्गतिकरण दानेषु । अत्र पूजा सङ्गति-करणार्थं ग्रहण | = May associate with or worship? ।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal