ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
उ॒त स्म॒ यं शिशुं॑ यथा॒ नवं॒ जनि॑ष्टा॒रणी॑। ध॒र्तारं॒ मानु॑षीणां वि॒शाम॒ग्निं स्व॑ध्व॒रम् ॥३॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । स्म॒ । यम् । शिशु॑म् । यथा॑ । नव॑म् । जनि॑ष्ट । अ॒रणी॒ इति॑ । ध॒र्तार॑म् । मानु॑षीणाम् । वि॒शाम् । अ॒ग्निम् । सु॒ऽअ॒ध्व॒रम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत स्म यं शिशुं यथा नवं जनिष्टारणी। धर्तारं मानुषीणां विशामग्निं स्वध्वरम् ॥३॥
स्वर रहित पद पाठउत। स्म। यम्। शिशुम्। यथा। नवम्। जनिष्ट। अरणी इति। धर्तारम्। मानुषीणाम्। विशाम्। अग्निम्। सुऽअध्वरम् ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरग्निविषयमाह ॥
अन्वयः
यथा मातापितरौ नवं शिशुं जनिष्ट तथा स्म यमरणी मानुषीणां विशां धर्त्तारमुत स्वध्वरमग्निं विद्वांसो जनयन्तु ॥३॥
पदार्थः
(उत) अपि (स्म) (यम्) (शिशुम्) बालकम् (यथा) (नवम्) नवीनम् (जनिष्ट) जनयतः (अरणी) काष्ठविशेषाविव (धर्त्तारम्) (मानुषीणाम्) मनुष्यादीनाम् (विशाम्) प्रजानाम् (अग्निम्) (स्वधरम्) सुष्ठ्वहिंसाधर्मं प्राप्तम् ॥३॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यथा मातापितरौ श्रेष्ठं सन्तानं जनयित्वा सुखमाप्नुतस्तथा विद्वांसो विद्युतमग्निमुत्पाद्यैश्वर्य्यमाप्नुवन्ति ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर अग्निविषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
(यथा) जैसे माता और पिता (नवम्) नवीन (शिशुम्) बालक को (जनिष्ट) उत्पन्न करते हैं, वैसे (स्म) ही (यम्) जिसको (अरणी) काष्ठविशेषों के सदृश (मानुषीणाम्) मनुष्य आदि (विशाम्) प्रजाओं के (धर्त्तारम्) धारण करनेवाले (उत) भी (स्वध्वरम्) उत्तम प्रकार अहिंसारूप धर्म को प्राप्त (अग्निम्) अग्नि को विद्वान् जन उत्पन्न करें ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे माता-पिता श्रेष्ठ सन्तान को उत्पन्न करके सुख को प्राप्त होते हैं, वैसे विद्वान् जन बिजुलीरूप अग्नि को उत्पन्न करके ऐश्वर्य्य को प्राप्त होते हैं ॥३॥
विषय
यज्ञाग्निवत् विद्वान् और तेजस्वी राजा के कर्त्तव्य । वनाग्निवत् तेजस्वी नायक ।
भावार्थ
भा०- ( यथा ) जिस प्रकार ( अरणी ) दो अरणी नाम की लकड़ियां (सु-अध्वरं नवं अग्निं जनिष्ट) उत्तम यज्ञयोग्य स्तुत्य अग्नि को उत्पन्न करती हैं ( उत ) और जिस प्रकार (अरणी) परस्पर सुसंगत माता पिता ( नवं शिशुं जनिष्ट ) नये बालक को उत्पन्न करती हैं उसी प्रकार ( मानुषीणां ) मननशील मनुष्य (विशां ) प्रजाओं के ( धर्त्तारं ) धारण करने वाले, ( नवं ) स्तुत्य (यं ) जिस ( अग्निं ) अग्रणी ( सु-अ-ध्वरम् ) उत्तम रीति से प्रजा को नाश न होने देने वाले, अहिंसक पालक राजा को भी (अरणी) परस्पर संगत राज-परिषद् और प्रजा परिषद् मिलकर (ज-निष्ट स्म ) उत्पन्न करे, प्रकट करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
missing
विषय
दो अरणियों द्वारा प्रभु रूप अग्नि का प्रकाश
पदार्थ
[१] (उत) = और उपर्युक्त मन्त्र में वर्णित घरों में रहकर, हम उस परमात्मा की उपासना करें, (यम्) = जिसको (अरणी) = देह व प्रणवरूप अरणियाँ [स्वदेहमरणिं कृत्वा प्रणवं प्रोक्तारणिं ध्याननिर्मथनाभ्यासात् पश्येद्वेवं निगूढवत्] उसी प्रकार (जनिष्ट) = उत्पन्न करती हैं (यथा) = जैसे माता-पिता रूप अरणियाँ (नवं शिशुम्) = एक नव शिशु को। अथवा जैसे दो काष्ठरूप अरणियाँ इस स्तुत्य शिशु रूप अग्नि को [नु स्तुतौ] । प्रभु के प्रकाश को प्राप्त करने के लिये शरीर में स्वास्थ्य की सबलता आवश्यक है तथा हृदय में प्रभु के ध्यान की आवश्यकता है। [२] हम उस प्रभु का ध्यान करें जो कि (मानुषीणां विशाम्) = मानव प्रजाओं के (धर्तारम्) = धारण करनेवाले हैं। (अग्निम्) = आगे ले चलनेवाले हैं तथा (स्वध्वरम्) = हमारे जीवन से उत्तम यज्ञात्मक कर्मों को करानेवाले हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- शक्ति व ध्यान के द्वारा हम प्रभु के प्रकाश को प्राप्त करें। वे प्रभु पोषक अग्रणी व उत्तम यज्ञादि को प्राप्त करानेवाले हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे माता-पिता श्रेष्ठ संतानांना जन्म देऊन सुखी होतात तसे विद्वान लोक विद्युतरूपी अग्नी उत्पन्न करून ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And just as two arani woods produce the fire, and just as mother and father beget and nurse a new bom baby, so do we kindle, raise and serve the holy fire of yajna and worship the lord of life, sustainer of human communities and high-priest of cosmic yajna.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of Agni ( energy/electricity) are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The parents procreate new baby, likewise Agni (energy) is generated by attraction of two substances. Let learned persons generate Agni (energy) which upholds human beings and by which many (Yajnas) non-violent good acts are performed.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
There is a simile in the mantra. As parents enjoy happiness by giving birth to a good progeny, in the same manner, learned scientists become prosperous by tapping the resources of energy.
Foot Notes
(स्वध्वरम् ) सुष्ठुवहिंसाधर्म प्राप्तम् अध्वरः ध्वरति हिन्साकर्मा तत्प्रतिषेधः (NKT 9, 3, 8) = Non-violent.
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