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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 35/ मन्त्र 2
    ऋषिः - नरः देवता - इन्द्र: छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    कर्हि॑ स्वि॒त्तदि॑न्द्र॒ यन्नृभि॒र्नॄन्वी॒रैर्वी॒रान्नी॒ळया॑से॒ जया॒जीन्। त्रि॒धातु॒ गा अधि॑ जयासि॒ गोष्विन्द्र॑ द्यु॒म्नं स्व॑र्वद्धेह्य॒स्मे ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कर्हि॑ । स्वि॒त् । तत् । इ॒न्द्र॒ । यत् । नृऽभिः॑ । नॄन् । वी॒रैः । वी॒रान् । नी॒ळया॑से । जय॑ । आ॒जीन् । त्रि॒ऽधातु॑ । गाः । अधि॑ । ज॒या॒सि॒ । गोषु॑ । इन्द्र॑ । द्यु॒म्नम् । स्वः॒ऽवत् । धे॒हि॒ । अ॒स्मे इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कर्हि स्वित्तदिन्द्र यन्नृभिर्नॄन्वीरैर्वीरान्नीळयासे जयाजीन्। त्रिधातु गा अधि जयासि गोष्विन्द्र द्युम्नं स्वर्वद्धेह्यस्मे ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कर्हि। स्वित्। तत्। इन्द्र। यत्। नृऽभिः। नॄन्। वीरैः। वीरान्। नीळयासे। जय। आजीन्। त्रिऽधातु। गाः। अधि। जयासि। गोषु। इन्द्र। द्युम्नम्। स्वःऽवत्। धेहि। अस्मे इति ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 35; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा किं कुर्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! त्वं कर्हि स्विद्वीरैर्नृभिर्वीरान्नॄन् नीळयासे गाः कर्ह्यधि जयसि। हे इन्द्र ! त्वं गोष्वस्मे यत्स्वर्वत् त्रिधातु द्युम्नमस्ति तदस्मे धेहि एवं विधाऽऽजीन् जय ॥२॥

    पदार्थः

    (कर्हि) कस्मिन् समये (स्वित्) प्रश्ने (तत्) (इन्द्र) सेनाधारक (यत्) (नृभिः) उत्तमैर्नरैः (नॄन्) प्रशस्तान्नरान् (वीरैः) शौर्यबलादियुक्तैः (वीरान्) धृष्टत्वादिगुणयुक्तान् (नीळयासे) प्रशंसय (जय) (आजीन्) सङ्ग्रामान् (त्रिधातु) सुवर्णरजतताम्राणि त्रयो धातवो विद्यन्ते यस्मिंस्तत् (गाः) पृथिवीः (अधि) (जयासि) जय (गोषु) पृथिवीषु (इन्द्र) प्रतापिन् सेनेश (द्युम्नम्) धनं यशो वा (स्वर्वत्) बहुसुखयुक्तम् (धेहि) (अस्मे) अस्मासु ॥२॥

    भावार्थः

    हे राजँस्त्वं विद्वद्भिः सह विदुषः शूरैः सह शूरान् सङ्गृह्य सङ्ग्रामान् जित्वा पृथिवीराज्यं प्राप्य न्यायाचरणेन प्रजाः पालयित्वा महद्यशो धनं च वर्धय ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) सेना के धारण करनेवाले ! आप (कर्हि) किस समय में (स्वित्) कहिये (वीरैः) शूरता और बलआदि से युक्त (नृभिः) उत्तम मनुष्यों से (वीरान्) धृष्टता आदि गुणों से युक्त (नॄन्) श्रेष्ठ मनुष्यों को (नीळयासे) प्रशंसा कीजिये और (गाः) पृथिवियों को कब (अधि) (जयासि) जीतिये और हे (इन्द्र) प्रतापी तथा सेना के धारण करनेवाले ! आप (गोषु) पृथिवियों में और (अस्मे) हम लोगों में (यत्) जो (स्वर्वत्) बहुत सुख से युक्त (त्रिधातु) सोना, चाँदी और ताँबा ये तीन धातु जिसमें ऐसा (द्युम्नम्) धन वा यश है (तत्) उसको हम लोगों में (धेहि) धारण करिये सो ऐसा करके (आजीन्) सङ्ग्रामों को (जय) जीतिये ॥२॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! आप विद्वानों के साथ विद्वानों का तथा शूरवीर जनों के साथ शूरवीरों का अच्छे प्रकार ग्रहण करके तथा सङ्ग्रामों को जीत कर और पृथिवी के राज्य को प्राप्त कर न्यायाचरण से प्रजाओं का पालन करके बड़े यश वा धन को बढ़ाइये ॥२॥

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    विषय

    राजा के जानने और करने योग्य कर्त्तव्यों का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( कर्हि स्वित् तत् ) कब ऐसा हो ( यत् ) कि तू ( वीरैः नृभिः ) वीर पुरुषों से ( वीरान् नीडयासे ) वीर को मिलावे और ( कर्हि स्वित् आजीन् जय) कब संग्रामों को विजय करे । और कब ( त्रिधातु ) स्वर्ण, रजत और लोह से युक्त (गाः ) भूमियों पर ( अरध जयसि ) जीत कर अधिकार करे । हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! तू ( अस्मे ) हम प्रजाजन के उपकार करने के लिये ( गोषु ) उत्तम भूमियों में ( स्वर्वत् द्युम्नं ) सुख से युक्त, सुखप्रद धन ( घेहि ) अन्न उत्पन्न करावे । इत्यादि सब बातों का ठीक २ काल जान ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नर ऋषिः ।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः - १ विराट् त्रिष्टुप् । ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २ पंक्तिः ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    वीरता व ज्ञान

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (तत् कर्हि स्वित्) = वह कब होगा कि (यत्) = जब (नृभिः नृन्) = उन्नति-पथ पर चलनेवालों के साथ उन्नति-पथ पर चलनेवालों को तथा (वीरैः वीरान्) = शत्रु कम्पकों के साथ शत्रु कम्पकों को (नीडयासे) = आप हमारे घरों में स्थापित करते हो, आश्रय देते हो । अर्थात् वह समय कब होगा जब कि हमारे घरों में निरन्तर 'नर व वीर' ही पुरुषों का निवास होगा। और इन 'नर व वीर' पुरुषों के द्वारा आप हमारे लिये (आजीन् जय) = युद्धों को जीतिये । हम आपकी कृपा से संग्रामों में सदा विजयी बनें। [२] त्(रिधातु गाः अधिजयासि) = हमारे लिये आप 'ज्ञान, कर्म, उपासना' इन तीनों का धारण करनेवाली ज्ञान की वाणियों का विजय करें । हे (इन्द्र) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो! आप (अस्मे) = हमारे लिये (गोषु) = इन ज्ञान की वाणियों में (स्वर्वत्) = सुखों के देनेवाले (द्युम्नम्) = ज्ञान धन को धेहि धारण करिये ।

    भावार्थ

    भावार्थ– हे प्रभो! हमारे घरों में वीर पुरुष हों, वे सब ज्ञान की वाणियों का धारण करनेवाले हों। काम, क्रोध, लोभ के साथ होनेवाले संग्राम में विजयी हों ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा ! तू विद्वानांबरोबर विद्वानांचा, शूरवीरांबरोबर शूरवीरांचा संग करून युद्ध जिंकून पृथ्वीचे राज्य प्राप्त कर. न्यायाचरणाने प्रजेचे पालन करून मोठे यश व धन वाढव. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When is it, Indra, brilliant ruler, that you bring people to meet with people, the brave to meet with the brave, vying in contest to win the battles of progress, conquer threefold wealth of knowledge and minerals over the lands and create and bring us celestial and blissful wealth, honour and excellence?

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should a king do—is told again.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O you Upholder or controller of the armies Indra! When will you unite men and heroes to prevail in battle, conquering your foes? Conquer the lands containing three main metals i.e. gold, silver and copper. O hero ! give up wealth or glory endowed with much happiness on earth.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O king! gather many enlightened persons with scholars, and with many heroes and having achieved victory in battle, and attaining kingdom of the land protect and nourish your subjects with justice and get great glory or wealth.

    Foot Notes

    (इन्द्र) प्रतापिन् सेनेश । सेना वा इन्द्राणी (यंत्रा- याणी सं• 2,2,5 काष्ठक संहिता 1, 10) तस्मात् सेनानीः इन्द्ररितिस्पष्टम् । = O heroic commander of the army. (त्रिधातु) सुवर्णरजतताम्राणि त्रयो धातयो विद्यन्ते यास्मिस्तत्। = Where there are three main metals i. e. gold, silver and copper. (नीलयासे) प्रशंसय । = Admirer or get admiration.

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