ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 52/ मन्त्र 10
विश्वे॑ दे॒वा ऋ॑ता॒वृध॑ ऋ॒तुभि॑र्हवन॒श्रुतः॑। जु॒षन्तां॒ युज्यं॒ पयः॑ ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठविश्वे॑ । दे॒वाः । ऋ॒त॒ऽवृधः॑ । ऋ॒तुऽभिः॑ । ह॒व॒न॒ऽश्रुतः॑ । जु॒षन्ता॑म् । युज्य॑म् । पयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वे देवा ऋतावृध ऋतुभिर्हवनश्रुतः। जुषन्तां युज्यं पयः ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठविश्वे। देवाः। ऋतऽवृधः। ऋतुऽभिः। हवनऽश्रुतः। जुषन्ताम्। युज्यम्। पयः ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 52; मन्त्र » 10
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः किमुशित्वा विद्याः प्राप्नुयुरित्याह ॥
अन्वयः
हे ऋतावृधो हवनश्रुतो विश्वे देवा ! भवन्त ऋतुभिर्युज्यं पयो जुषन्ताम् ॥१०॥
पदार्थः
(विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (ऋतावृधः) सत्यविद्यावर्धकाः (ऋतुभिः) वसन्तादिभिः (हवनश्रुतः) ये हवनमध्ययनं शृण्वन्ति ते (जुषन्ताम्) (युज्यम्) समाधातुमर्हम् (पयः) दुग्धमुदकमन्नं वा। पय इत्युदकनाम ॥ (निघं०१.१२) अन्ननाम च (निघं०२.७) ॥१०॥
भावार्थः
येऽध्येतुं परीक्षयितुं चेच्छेयुस्ते मादककुत्सितबुद्धिनाशकानि द्रव्याणि त्यक्त्वा पय आदीनि बुद्धिवर्द्धकानि सेवेरन् ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य क्या कामना कर विद्याओं को प्राप्त होवें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (ऋतावृधः) सत्य विद्या के बढ़ानेवालो (हवनश्रुतः) जो अध्ययन को सुनते हैं, वे (विश्वे, देवाः) सब विद्वान् ! आप लोग (ऋतुभिः) वसन्तादिकों के साथ (युज्यम्) समाधान करने योग्य (पयः) दूध, जल वा अन्न को (जुषन्ताम्) सेवें ॥१०॥
भावार्थ
जो अध्ययन करने और परीक्षा कराने को चाहें वे मद करने, कुत्सित बुद्धि वा नाश करनेवाले पदार्थों को छोड़ के दुग्ध आदि बुद्धि के बढ़ानेवाले उत्तम पदार्थों को सेवें ॥१०॥
विषय
missing
भावार्थ
( विश्वे देवाः ) समस्त विद्या की कामना करने वाले मनुष्य ( ऋता-वृधः ) सत्य ज्ञान की वृद्धि करने वाले हों । और वे ( ऋतुभिः ) वसन्त आदि ऋतुओं के अनुसार अथवा ऋत, सत्य ज्ञान के स्वामी विद्वान् पुरुषों द्वारा ( हवन-श्रुतः ) दान करने और स्वयं ग्रहण करने योग्य ज्ञान का श्रवण करने वाले होकर ( युज्यम् ) परस्पर योग एवं सावधान, एकाग्रचित्त वा चित्तवृत्तिनिरोध शक्ति के बढ़ाने वाले, मधुर ज्ञान रस का ( जुषन्ताम् ) सेवन करें । इति पञ्चदशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋजिश्वा ऋषिः ।। विश्वेदेवा देवताः ।। छन्दः – १, ४, १५, १६ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ३, ६, १३, १७ त्रिष्टुप् । ५ भुरिक् पंक्ति: । ७, ८, ११ गायत्री । ९ , १०, १२ निचृद्गायत्री । १४ विराड् जगती ॥
विषय
युज्यं पयः
पदार्थ
[१] (विश्वे देवा:) = सब देव वृत्ति के पुरुष (ऋतावृधः) = ऋत का वर्धन करनेवाले होते हैं, ये यज्ञिय जीवनवाले बनते हैं। (ऋतुभिः) = समयानुसार (हवनश्रुतः) = गुरुओं के आह्वान को सुननेवाले होते हैं [उपहूतो वाचस्पतिरुपास्मान् वाचस्पतिर्हृयताम् अ०] । [२] ये देववृत्ति के पुरुष (युज्यं पयः) = प्रभु के साथ सम्पर्क करानेवाले ज्ञानदुग्ध का (जुषन्ताम्) = प्रीतिपूर्वक सेवन करें।
भावार्थ
भावार्थ- हम यज्ञशील बनें। आचार्यों के समीप बैठकर उस ज्ञान को प्राप्त करें जो प्रभु को प्राप्त करानेवाला होता है ।
मराठी (1)
भावार्थ
जे अध्ययनाची व परीक्षा देण्याची इच्छा बाळगतात त्यांनी मादक द्रव्याचे, कुत्सित बुद्धी उत्पन्न करणाऱ्या पदार्थाचे ग्रहण करू नये. दूध वगैरे बुद्धी वाढविणारे पदार्थ घ्यावेत. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May the leading lights of the world, sages and scholars, generous and brilliant, expanding the bounds of knowledge and universal law in truth and development, listen to our invitation, love, honour and bless the liquid and milky investments in the yajnic programmes of research and progress according to the seasons of time and social requirements.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Desiring what should men attain knowledge is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O all enlightened persons! who are disseminators and supporters of truth and knowledge, are hearers of what has been taught by you, should take water, milk and suitable good food according to the spring and other seasons.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those, who desire to study and examine, should give up the use of all intoxicants which spoil intellect and should take milk and other articles which increase the intellectual power.
Foot Notes
(ऋतावृधः) सत्यविद्यावर्धका: । ऋतमिति सत्यनाम (NG 3, 10) ॠत इति पदनाम (NG 5, 4) पद-गतौ गते स्त्रिष्वर्थेष्वत्र ज्ञानार्थं ग्रहणम् । = Increasers or supporters of true knowledge. (हवनश्रुतः) ये हवन-मध्ययनं शृण्वन्ति ते। = Those who hear what has been read by the students.
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