ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 56/ मन्त्र 3
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - पूषा
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
उ॒तादः प॑रु॒षे गवि॒ सूर॑श्च॒क्रं हि॑र॒ण्यय॑म्। न्यै॑रयद्र॒थीत॑मः ॥३॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । अ॒दः । प॒रु॒षे । गवि॑ । सूरः॑ । च॒क्रम् । हि॒र॒ण्यय॑म् । नि । ऐ॒र॒य॒त् । र॒थिऽत॑मः ॥
स्वर रहित मन्त्र
उतादः परुषे गवि सूरश्चक्रं हिरण्ययम्। न्यैरयद्रथीतमः ॥३॥
स्वर रहित पद पाठउत। अदः। परुषे। गवि। सूरः। चक्रम्। हिरण्ययम्। नि। ऐरयत्। रथिऽतमः ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 56; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः कीदृशं भाषणं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यो रथीतमः सूरोऽदो हिरण्ययं चक्रं न्यैरयदुत स परुषे गवि न प्रवर्त्तेत ॥३॥
पदार्थः
(उत) अपि (अदः) तत् (परुषे) कठोरे व्यवहारे (गवि) वाचि (सूरः) वीरः (चक्रम्) (हिरण्ययम्) सुवर्णादियुक्तं तेजोमयं वा (नि) (ऐरयत्) प्रेरयेत् (रथीतमः) अतिशयेन रथादियुक्तः। अत्र संहितायामिति दीर्घः ॥३॥
भावार्थः
यो मनुष्यः कठोरभाषणं विहाय कोमलभाषणं करोति स सदाऽऽनन्दी भवति ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को कैसा भाषण करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (रथीतमः) अतीव रथादि पदार्थों से युक्त (सूरः) वीर पुरुष (अदः) उस (हिरण्ययम्) सुवर्णादि युक्त वा तेजोमय (चक्रम्) चक्र को (नि, ऐरयत्) निरन्तर प्रेरित करे वह (उत) निश्चय से (परुषे) कठोर व्यवहार में और (गवि) वाणी में नहीं प्रवृत्त हो ॥३॥
भावार्थ
जो मनुष्य कठोर भाषण को छोड़ कोमल भाषण करता है, वह सदा आनन्दी होता है ॥३॥
विषय
रथीतम ।
भावार्थ
जिस प्रकार ( रथीतमः सूरः गवि चक्रं नि एरयत्) उत्तम महारथि भूमि पर या प्रबल अश्व या बैल के बलपर, अपने रथ चक्र को अच्छी प्रकार चला देता है वा ( सूरः परुषे ) शूरवीर पुरुष, कठोर भाषण करने वाले शत्रु पर (हिरण्ययम् चक्रं नि ऐरयत्) चमकते, दीप्तियुक्त हिंसा साधन, शस्त्र को चलाता है, वा जैसे ( सूरः ) सूर्य (परुषे) पर्वयुक्त या तर्पक मेघ और (गवि) भूमि पर (हिरण्ययम् ) तेजोमय ‘चक्र’ वा विम्ब को प्रेरित करता है उसी प्रकार ( रथीतमः ) उत्तम रथों का स्वामी, ( सूर: ) शूरवीर आज्ञापक पुरुष (परुषे ) कठोर शत्रु पर वा कठोर संग्राम काल में वा ( [ अ ] प-रुषे) रोषरहित प्रजा के हितार्थ ( गवि ) इस भूमि पर ( हिरण्ययं ) हित और रमणीय ( अदः ) उस स्थित ( चक्रम् ) राज्य चक्र, वा सैन्य चक्र को ( नि ऐरयत्) अच्छी प्रकार संचालित करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः – १, ४, ५ गायत्री । २, ३ निचृद्गायत्री । ६ स्वराडुष्णिक् ।।
विषय
हिरण्यय चक्र
पदार्थ
[१] (उत) = और यह (रथीतमः सूरः) = प्रशस्त रथी, रथ को प्रेरित करनेवाला होता हुआ [षू प्रेरणे] (परुषे) = इस [पर्ववति भास्वति वा] पूरण करनेवाली अथवा ज्ञानदीप्तिवाली (गवि) = ज्ञान दुग्ध दात्री वेद धेनु के होने पर (अदः) = उस (हिरण्ययम्) = ज्योतिर्मय (चक्रम्) = 'इन्द्रिय, मन, बुद्धि' रूप आयुध को (न्यैरयत्) = अपने में प्रेरित करता है। [२] ज्ञान की वाणियों के द्वारा यह शरीरथ ज्योतिर्मय बनता है। इसमें 'इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि' रूप आयुध चमकते हुए होते हैं। ऐसा होने पर ही यह व्यक्ति 'रथीतम' कहलाता है, प्रशस्त रथवाला।
भावार्थ
भावार्थ - हम ज्ञान दीप्ति को प्राप्त करानेवाली इन ज्ञान वाणी रूप गौवें के ज्ञानदुग्ध से 'इन्द्रियों, मन व बुद्धि' को दीप्त कर लेते हैं। हम रथीतम होते हैं, हिरण्यय चक्र को अपने में प्रेरित करते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
जो माणूस कठोर भाषणाचा त्याग करून कोमल वाणी बोलतो तो सदैव आनंदी असतो. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And that mighty hero, solar energy in combination with electric energy, at the fastest chariot like velocity, sets in motion the golden circuit of developmental evolution in the fierce rays of the sun, in the battles of life and in the fiery communication of powerful speech.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What sort of speech should be used by men-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! let not even that hero, who is possessor of many vehicles and who drives a splendid car decked with gold ; engage in a harsh speech.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
That man who uses mild language, giving up all harsh words, enjoys bliss.
Foot Notes
(परुषे) कठोरे व्यवहारे | = In a harsh dealing. (गवि) वाचि । गोरिति वाङ्नाम (NG 1, 11 )। = In a speech. (हिरणययम्) सुवर्णादियुक्त तेजोमयं वा । तेजो वै हिरणयम् (T. U. 1, 8, 9, 1 )। = Decked with gold or splendid.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal