ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 56/ मन्त्र 5
इ॒मं च॑ नो ग॒वेष॑णं सा॒तये॑ सीषधो ग॒णम्। आ॒रात्पू॑षन्नसि श्रु॒तः ॥५॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम् । च॒ । नः॒ । गो॒ऽएष॑णम् । सा॒तये॑ । सी॒स॒धः॒ । ग॒णम् । आ॒रात् । पू॒ष॒न् । अ॒सि॒ । श्रु॒तः ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमं च नो गवेषणं सातये सीषधो गणम्। आरात्पूषन्नसि श्रुतः ॥५॥
स्वर रहित पद पाठइमम्। च। नः। गोऽएषणम्। सातये। सीसधः। गणम्। आरात्। पूषन्। असि। श्रुतः ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 56; मन्त्र » 5
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वान् किं कुर्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे पूषन् ! यतस्त्वमाराच्छ्रुतोऽसि तस्मात् सातये न इमं गवेषणं गणं च सीषधः ॥५॥
पदार्थः
(इमम्) (च) (नः) अस्माकम् (गवेषणम्) गवां वाचादीनामीषणं येन तम् (सातये) संविभागाय (सीषधः) साधय (गणम्) समूहम् (आरात्) समीपाद्दूराद्वा (पूषन्) पुष्टिकर्त्तः (असि) (श्रुतः) योऽश्रावि सः ॥५॥
भावार्थः
हे विद्वन् ! यस्माद्भवानाप्तगुणैर्युक्तोऽस्ति तस्मादस्माकं मनुष्याणां सङ्घान् विदुषः करोतु ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वान् क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (पूषन्) पुष्टि करनेवाले ! जिससे आप (आरात्) समीप वा दूर से (श्रुतः) सुने हुए (असि) हो इससे (सातये) संविभाग करने के लिये (नः) हमारे (इमम्) इस (गवेषणम्) वाणी आदि पदार्थों की प्रेरणा करनेवाले को तथा (गणम्) अन्य पदार्थों के समूह को (च) भी (सीषधः) साधो ॥५॥
भावार्थ
हे विद्वन् ! जिससे आप आप्त विद्वानों के गुणों से युक्त हैं, इससे हम मनुष्यों के सङ्घों को विद्वान् करो ॥५॥
विषय
प्रजा के निवेदन ।
भावार्थ
हे (पूषन्) प्रजापोषक ! तू ( आरात्) दूर वा समीप ( श्रुतः असि ) प्रसिद्ध है । तू ( इमं ) इस ( गो-एषणम् ) पशु, भूमि, उत्तम वाणी आदि के इच्छुक (जनं ) जन समूह को ( सातये ) नाना ऐश्वर्यादि विभक्त करने के लिये ( सीषधः ) प्राप्त कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः – १, ४, ५ गायत्री । २, ३ निचृद्गायत्री । ६ स्वराडुष्णिक् ।।
विषय
गवेषण गण
पदार्थ
[१] हे (पूषन्) = पोषक प्रभो ! (इमं च) = और इस (नः) = हमारे (गवेषणम्) = [गवां एषयितारं ] इन्द्रियों के प्रेरक (गणम्) = प्राणसमूह [मरुत् संघ] को सातये शक्ति व ज्ञान की प्राप्ति के लिये (सीषध:) = [साधय] सिद्ध करिये। प्राणसाधना करते हुए हम सोमरक्षण के द्वारा इन्द्रियों को सशक्त व दीप्त बनायें, कर्मेन्द्रियाँ सशक्त हों और ज्ञानेन्द्रियाँ दीप्त। [२] हे पूषन् ! आप (आरात्) = दूर से दूर तथा समीप से समीप (श्रुतः) = सुने जाते हैं । 'तद्दूरे तद्वन्तिके' [दूरात् सुदूरे तदिहन्तिके च] । वे सर्वव्यापक प्रभु इस प्राणसाधना के द्वारा हमें इन्द्रियों को वश में करने की शक्ति प्राप्त करायें। ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमें उस प्राणों के गण को प्राप्त करायें जो इन्द्रियों को अन्दर प्रेरित करता है और इस प्रकार हमें शक्ति व ज्ञान को प्राप्त कराता है।
मराठी (1)
भावार्थ
हे विद्वानांनो ! जसे तुम्ही विद्वानांच्या गुणांनी युक्त आहात तसे आम्हालाही विद्वान करा. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And this body of thought and speech of our socio-economic plan, pray, lead to completion and success. O lord, you are renowned far and wide as giver of success and onward progress for the achievement of wealth and honour.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should an enlightened man do—is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O nourisher ! as you are well known far and near, for proper distribution of work of division of labor, urge upon this band of men to use proper or suitable sweet and true speech.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O enlightened person! as you are "endowed with. all the virtues of an absolutely truthful reliable adept, therefore, make all our men highly learned.
Foot Notes
(सातये) संविभागाय। = For proper distribution of work or division of labor. (गवेषणम्) गवां वाचादीनामीषणं येन तम् । षण-संभक्तौ (भ्वा.) ईष-गतिहिंसादर्शनेषु (भ्वा.) अत्र गत्यर्थः गतेस्त्रिष्वर्थेष्वव गमनं प्र ेरणं वा गृसेत । = Who uses the words properly.
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