Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 66 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 66/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - मरुतः छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    अ॒ने॒नो वो॑ मरुतो॒ यामो॑ अस्त्वन॒श्वश्चि॒द्यमज॒त्यर॑थीः। अ॒न॒व॒सो अ॑नभी॒शू र॑ज॒स्तूर्वि रोद॑सी प॒थ्या॑ याति॒ साध॑न् ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ने॒नः । वः॒ । म॒रु॒तः॒ । यामः॑ । अ॒स्तु॒ । अ॒न॒श्वः । चि॒त् । यम् । अज॑ति । अर॑थीः । अ॒न॒व॒सः । अ॒न॒भी॒शुः । र॒जः॒ऽतूः । वि । रोद॑सी॒ इति॑ । प॒थ्याः॑ । या॒ति॒ । साध॑न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनेनो वो मरुतो यामो अस्त्वनश्वश्चिद्यमजत्यरथीः। अनवसो अनभीशू रजस्तूर्वि रोदसी पथ्या याति साधन् ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनेनः। वः। मरुतः। यामः। अस्तु। अनश्वः। चित्। यम्। अजति। अरथीः। अनवसः। अनभीशुः। रजःऽतूः। वि। रोदसी इति। पथ्याः। याति। साधन् ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 66; मन्त्र » 7
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मरुतो ! वोऽनेनोऽस्तु यो याम इवाऽनश्वोऽरथीरनवसोऽनभीशू रजस्तूश्चिद्यमजति रोदसी साधन् पथ्या वि याति तं यूयं स्वीकुरुत ॥७॥

    पदार्थः

    (अनेनः) अविद्यमानमेनः पापं यस्मिँस्तत् (वः) युष्माकम् (मरुतः) मनुष्याः (यामः) यान्ति यस्मिन्त्स यामः प्रहरः (अस्तु) (अनश्वः) अविद्यमाना अश्वा यस्य सः (चित्) अपि (यम्) (अजति) प्रक्षिपति (अरथीः) अविद्यमानरथः (अनवसः) अविद्यमानमवोऽन्नं यस्य सः। अव इत्यन्ननाम। (निघं०२.७) (अनभीशुः) अविद्यमानावभीशू बलयुक्तौ बाहू यस्य सः। अभीशू इति बहुनाम। (निघं०२.४) (रजस्तूः) यो रज उदकं तौति वर्धयति सः (वि) (रोदसी) द्यावापृथिव्योः (पथ्याः) पथिषु साध्वीर्गतीः (याति) गच्छति (साधन्) साध्नुवन् ॥७॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यूयं पक्षपाताख्यं पापं विहाय निर्बलान् सततं रक्षित्वा भूगर्भविद्यां विद्युद्विद्यां च संसाध्य भूम्युदकान्तरिक्षस्थान् मार्गानुत्तमैर्यानैर्गत्वाऽऽगच्छत ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मरुतः) मनुष्यो ! (वः) तुम्हारा चलन (अनेनः) निष्पाप (अस्तु) हो और (यामः) जिसमें जाते हैं उस प्रहर के समान जो (अनश्वः) ऐसा है कि जिसके घोड़े नहीं हैं (अरथीः) रथ नहीं हैं (अनवसः) अन्न जिसके नहीं है और (अनभीशुः) बलयुक्त बाहू नहीं है तथा जो (रजस्तूः) जल को बढ़ाता है वह (चित्) निश्चय के साथ (यम्) जिसको (अजति) प्रक्षिप्त करता फेंकता है वा (रोदसी) आकाश और पृथिवी के बीच निरन्तर (साधन्) साधता हुआ (पथ्याः) मार्गों में उत्तम गतियों को (वि, याति) विशेषता से जाता है, उसको तुम स्वीकार करो ॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम पक्षपातरूपी पाप को छोड़ के निर्बलों की निरन्तर रक्षा कर भूगर्भविद्या और विद्युद्विद्या को अच्छे प्रकार सिद्ध कर भूमि और उदक तथा अन्तरिक्ष के मार्गों को उत्तम यानों से जाकर आओ ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    बिना पैट्रोल का यान

    शब्दार्थ

    (मरुतः) हे मरुतो ! वीर सैनिको ! (व:) तुम्हारा (याम:) यान, जहाज (अन् एन:) निर्विघ्न गतिकारी (अस्तु) हो । तुम्हारा वह यान (रज: तूः) अणुशक्ति से चालित हो (यम्) जो (अन् अश्व:) बिना घोड़ों के (अरथी:) बिना सारथि के (अनवस:) बिना अन्न, बिना लकड़ी, कोयला या पैट्रोल के (अन् अभीशू:) बिना रासों के, बिना लगाम के (चित्) ही (रोदसी) भूमि पर और आकाश में (अजति) चल सके, जा सके (पथ्या साधन्) गतियों को साधता हुआ (वि याति) विशेष रूप से और विविध प्रकार से गति कर सके ।

    भावार्थ

    मन्त्र में अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में अणुशक्ति से चालित यान का वर्णन है। देश के सैनिकों के पास इस प्रकार के यान होने चाहिए जो बिना ईंधन, लकड़ी और पैट्रोल के ही गति कर सकें। कैसे हों वे यान ? १. वे यान अणु-शक्ति से चालित होने चाहिएँ । २. उनमें घोड़े जोतने की आवश्यकता न हो । ३. उनमें लकड़ी, कोयला, हवा, पानी, पैट्रोल की आवश्यकता भी न हो । ४. उनमें लगाम, रास अथवा संचालक साधन की आवश्यकता न हो । वे स्वचालित हों । ५. वे भूमि पर भी चल सकें और आकाश में भी गति कर सकें। ६. वे विभिन्न प्रकार की गतियाँ करने में समर्थ हों ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वायुओं द्वारा विना अश्वादि के रथ के समान जीवन का निष्पाप मार्ग ।

    भावार्थ

    हे ( मरुतः ) विद्वान् लोगो ! जिस प्रकार वायु-बल से जाने वाला यान ( अनश्वः चित् ) विना अश्व के होता है और (यम्) जिसको ( अरथी: ) विना रथि वा सारथी के एक ही आदमी ( अजति ) चला सकता है, ( अतवसः अनभीषुः ) जिसमें न कोई गति देने वाला, और न कोई लगाम हो, तो भी (रजस्तू:) जल और पृथ्वी दोनों लोकों में चले, वह भूमि और पृथ्वीपर बेरोक चले । उसी प्रकार हे ( मरुतः ) विद्वान् लोगो ! ( वः यामः ) तुम्हारा जीवन का सत्-मार्ग (अनेनाः ) निष्पाप ( अस्तु ) हो । और वह ( अनश्वः अरथी: ) अश्व और रथ आदि नाना साधनों से रहित भी ( यम् अजति ) जिसको चला सके वा जिस तक पहुंच सके । वह ( अनवसः ) सच्चरित्रता का मार्ग जिसपर अन्नादि भोग्य पदार्थों से रहित, ( अनभीशुः ) अंगुलि, बाहु आदि विशेष बल शक्ति से रहित ( रजस्तूः ) रजो गुण को दूर करने वाला पुरुष भी (पथ्या साधन् ) पथ्य, हिताचरण करता हुआ (वि याति) विशेष रूप से चलता है। निष्पाप धर्म के मार्ग पर अमीर गरीब सब कोई समान रूप से चल सकता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ११ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। मरुतो देवताः ।। छन्दः – १,९ ,११ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ५ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ४ निचृत् पंक्तिः ।। ६, ७, १० भुरिक् पंक्तिः । ८ स्वराट् पंक्तिः । एकादशर्चं सूक्तम् ।।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    रजस्तू: रथ

    पदार्थ

    [१] हे (मरुतः) = प्राणसाधक पुरुषो! (वः) = तुम्हारा (यामः) यह शरीर-रथ (अनेनः अस्तु) = निष्पाप हो । (अनश्वः चित्) = इसमें सामान्य रथ की तरह कोई घोड़े जुते नहीं हैं। यहाँ शरीर की अंगभूत इन्द्रियाँ ही घोड़े हैं। (यम्) = जिस शरीर-रथ को (अरथी:) = असारथि ही (अजति) = प्रेरित करता है । इसमें कोई पृथक् सारथि नहीं है, बुद्धि ही सारथि है। [२] (अनवस:) = पथ्यदन [पाथेय] रहित यह रथ है। इसमें मार्ग के भोजन की आवश्यकता नहीं है। (अनभीशूः) = इसी प्रकार यह लगाम रहित है, मन ही इसमें लगाम का काम करता है। यह रथ (रजस्तू:) = रजोगुण रूप धूलि को हिंसित करनेवाला है। दूसरा रथ धूल को उड़ाता है, यह शान्त करता है। यह रथ (साधन्) = इष्ट कामनाओं को सिद्ध करता हुआ (रोदसी) = द्यावापृथिवी में (पथ्या:) = मार्गों को (याति) = आक्रान्त करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु ने यह उत्तम शरीर-रथ बनाया है। यह धूल को, राजस-भावों को शान्त करता हुआ मार्ग पर आगे बढ़ता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही भेदभाव सोडून निर्बलाचे सतत रक्षण करा. भूगर्भ विद्या व विद्युत विद्या चांगल्या प्रकारे जाणून भूमी, जल व अंतरिक्ष मार्गात उत्तम यानाने जाणे-येणे करा. ॥ ७ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Maruts, vibrant powers of nature and humanity, let your course and chariot be free from sin and error. Let it be powered without horses and let it be driven without the driver. Let it be protected without external forces, moving without food and fuel, without reins, dispelling waves, clouds and the dust of earth and space, and let it go by paths of heaven and earth, fulfilling the ambitions of humanity.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O brave men ! let your path be free from all sin, where there is no sin, no horses, no charioteer, no food, no arms, which is the promoter and of water, is thrower of the heaven and earth and has good balancing movements. You should accept that.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men ! having given up sin of partiality always protecting the weak, and accomplishing the science of electricity and geology, move by the aircrafts and other vehicles, which can go on the earth, seas, firmament and water.

    Foot Notes

    (अनेन ) अविद्यमानमेनः पापं यस्मिंस्तत् । = Sinless (अनवसः) अविद्यमानमवोऽअनं यस्य सः । अवः इत्यन्ननाम (N G 2, 7)। = Free `from food. (अनभीशु:) अविद्यमानावभीशू बलयुक्तौ बाहू यस्य सः । अभीशू इति बाहुनाम (NG 2, 4)। = Free from powerful arms.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top