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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 41 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 41/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - भगः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    भग॒ प्रणे॑त॒र्भग॒ सत्य॑राधो॒ भगे॒मां धिय॒मुद॑वा॒ दद॑न्नः। भग॒ प्र णो॑ जनय॒ गोभि॒रश्वै॒र्भग॒ प्र नृभि॑र्नृ॒वन्तः॑ स्याम ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भग॑ । प्रऽने॑त॒रिति॒ प्रऽने॑तः । भग॑ । सत्य॑ऽराधः । भग॑ । इ॒माम् । धिय॑म् । उत् । अ॒व॒ । दद॑त् । नः॒ । भग॑ । प्र । नः॒ । ज॒न॒य॒ । गोभिः॑ । अश्वैः॑ । भग॑ । प्र । नृऽभिः॑ । नृ॒ऽवन्तः॑ । स्या॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवा ददन्नः। भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्नृवन्तः स्याम ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भग। प्रऽनेतरिति प्रऽनेतः। भग। सत्यऽराधः। भग। इमाम्। धियम्। उत्। अव। ददत्। नः। भग। प्र। नः। जनय। गोभिः। अश्वैः। भग। प्र। नृऽभिः। नृऽवन्तः। स्याम ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 41; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैरीश्वरः किमर्थं प्रार्थनीय इत्याह ॥

    अन्वयः

    हे भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेश्वर ! त्वं कृपया न इमां धियं दददस्मानुदव हे भग ! नो गोभिरश्वैः प्र जनय, हे भग ! त्वमस्मान्नृभिः प्र जनय यतो वयं नृवन्तस्स्याम ॥३॥

    पदार्थः

    (भग) सकलैश्वर्ययुक्त (प्रणेतः) प्रकर्षेण प्रापक (भग) सेवनीयतम (सत्यराधः) सत्यं राधः प्रकृत्याख्यं धनं यस्य तत्सम्बुद्धौ (भग) सकलैश्वर्यप्रद (इमाम्) वर्तमानां प्रशस्ताम् (धियम्) प्रज्ञाम् (उत्) (अव) रक्ष वर्धय वा। अत्र द्व्यचो॰ इति दीर्घः। (ददत्) प्रयच्छन् (नः) अस्मभ्यम् (भग) सर्वसामग्रीप्रद (प्र) (नः) अस्मभ्यम् (जनय) (गोभिः) धेनुभिः पृथिव्यादिभिर्वा (अश्वैः) तुरङ्गैर्महद्भिर्विद्युदादिभिर्वा (भग) सकलैश्वर्ययुक्त (प्र) (नृभिः) नायकैः श्रेष्ठैर्मनुष्यैः (नृवन्तः) बहूत्तममनुष्ययुक्ताः (स्याम) भवेम ॥३॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या ईश्वराज्ञाप्रार्थनाध्यानोपासनानुष्ठानपुरःसरं पुरुषार्थं कुर्वन्ति ते धर्मात्मानो भूत्वा सुसहायास्सन्तः सकलैश्वर्यं लभन्ते ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को ईश्वर की प्रार्थना क्यों करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (भग) सकलैश्वर्य्ययुक्त (प्रणेतः) उत्तमता से प्राप्ति करानेवाले (भग, सत्यराधः) अत्यन्त सेवा करने योग्य प्रकृतिरूप धनयुक्त (भग) सकल ऐश्वर्य देनेवाले ईश्वर ! आप कृपा कर (नः) हम लोगों के लिये (इमाम्) इस प्रशंसायुक्त (धियम्) उत्तम बुद्धि को (ददत्) देते हुए हम लोगों की (उत्, अव) उत्तमता से रक्षा कीजिये, हे (भग) सर्वसामग्री युक्त ! (नः) हम लोगों के लिये (गोभिः) गौवें वा पृथिवी आदि से (अश्वैः) वा शीघ्रगामी घोड़ा वा पवन वा बिजुली आदि से (प्र, जनय) उत्तमता से उत्पत्ति दीजिये, हे (भग) सकलैश्वर्य्य युक्त ! आप हम लोगों को (नृभिः) नायक श्रेष्ठ मनुष्यों से (प्र) उत्तम उत्पत्ति दीजिये जिस से हम लोग (नृवन्तः) बहुत उत्तम मनुष्य युक्त (स्याम) हों ॥३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य ईश्वर की आज्ञा, प्रार्थना, ध्यान और उपासना का आचरण पहिले करके पुरुषार्थ करते हैं, वे धर्मात्मा होकर अच्छे सहायवान् हुए सकल ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥३॥

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    विषय

    भगवान् से नाना प्रार्थनाएं।

    भावार्थ

    हे (भग ) ऐश्वर्यवन् ! हे ( प्रणेतः ) उत्तम मार्ग में लेजाने हारे ! हे (भग ) सेवन योग्य, हे ( सत्य-राधः ) सत् पदार्थों में विद्यमान कारणरूप प्रकृति और सत्यज्ञान वेद के धनी, उसको वश करने हारे, हे ( भग ) ऐश्वर्य-सुखदातः ! आप (नः) हमारी ( इमां ) इस (धियम्) बुद्धि को (उत् अव) ऊपर की ओर ले चलो, उन्नत करो । ( नः ददत् ) हमें दान करते हुए हे (भग ) ऐश्वर्यवन् ! ( नः ) हमें ( गोभिः अश्वैः) गौओं, वाणियों इन्द्रियगणों और अश्वों से ( प्र जनय ) उत्तम बनाइये ! जिससे हे ( भग ) ऐश्वर्य के स्वामिन् ! हम ( नृभिः ) उत्तम पुरुषों के साथ मिलकर ( नृवन्तः ) उत्तम मनुष्यों के सहयोगी होकर ( प्र स्याम ) उत्तम बनें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १ लिङ्गोक्ताः । २—६ भगः । ७ उषा देवता ॥ छन्दः—१ निचृज्जगती। २, ३, ५, ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ६ त्रिष्टुप् । ४ पंक्तिः॥ सप्तर्चं सूकम्॥

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    विषय

    प्रभु से विनय

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (भग) = ऐश्वर्यवन्! हे (प्रणेतः) = उत्तम मार्ग में ले जाने हारे! हे (भग) = सेवन-योग्य, हे (सत्य-राधः) = सत्यज्ञान वेद के धनी ! हे (भग) = सुखदात:! आप (नः) = हमारी (इमां) = इस (धियम्) = बुद्धि को (उत् अव) = ऊपर ले चलो। (नः ददत्) = हमें दान करते हुए, हे (भग) = ऐश्वर्यवन् ! (गोभिः अश्वैः) = गौओं, वाणियों और अश्वों से (प्र जनय) = उत्तम बनाइये। जिससे हे (भग) = ऐश्वर्य-स्वामिन् ! हम (नृभिः) = उत्तम पुरुषों से मिलकर (नृवन्तः) = उत्तम मनुष्यों के सहयोगी होकर प्र स्याम उत्तम बनें।

    भावार्थ

    भावार्थ- सब मनुष्य अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए ऐश्वर्यवान् प्रभु से प्रातःकाल में विनय किया करें कि हे सब पदार्थों, विद्यमान सत्यज्ञान वेद के प्रकाशक प्रभो! आप हमारी बुद्धियों को उन्नत बनावें। फिर अपनी श्रेष्ठ बुद्धि का उपयोग ऐसे उत्तम कार्यों में करें जिससे अश्व-गौ आदि पशुओं से श्रेष्ठ बनें तथा उत्तम मनुष्यों के सहयोगी बनें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे ईश्वराची आज्ञा, प्रार्थना, ध्यान व उपासना प्रथम करून नंतर पुरुषार्थ करतात ती धर्मात्मा बनून साह्यकर्ती होतात व संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Bhaga, lord of power and glory, you are the leader. Lord of light, you are the giver of victory in the field of truth. Lord omniscient, protect and promote this wisdom and intelligence of ours, giving us more and ever more of it. Lord of universal prosperity, promote us with lands, cows and the light of knowledge and with speed and success in the field of transport, communication and achievement. O lord of life and humanity, let us be blest with leaders and manpower of exceptional order.

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