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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 49/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - आपः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यासां॒ राजा॒ वरु॑णो॒ याति॒ मध्ये॑ सत्यानृ॒ते अ॑व॒पश्य॒ञ्जना॑नाम्। म॒धु॒श्चुतः॒ शुच॑यो॒ याः पा॑व॒कास्ता आपो॑ दे॒वीरि॒ह माम॑वन्तु ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यासा॑म् । राजा॑ । वरु॑णः । याति॑ । मध्ये॑ । स॒त्या॒नृ॒ते इति॑ । अ॒व॒ऽपश्य॑न् । जना॑नाम् । म॒धु॒ऽश्चुतः॑ । शुच॑यः । याः । पा॒व॒काः । ताः । आपः॑ । दे॒वीः । इ॒ह । माम् । अ॒व॒न्तु॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यासां राजा वरुणो याति मध्ये सत्यानृते अवपश्यञ्जनानाम्। मधुश्चुतः शुचयो याः पावकास्ता आपो देवीरिह मामवन्तु ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यासाम्। राजा। वरुणः। याति। मध्ये। सत्यानृते इति। अवऽपश्यन्। जनानाम्। मधुऽश्चुतः। शुचयः। याः। पावकाः। ताः। आपः। देवीः। इह। माम्। अवन्तु ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 49; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स जगदीश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यासां मध्ये वरुणो राजा जनानां सत्यानृत आचरणे अवपश्यन् याति या मधुश्चुतः शुचयः पावकास्सन्ति ता देवीराप इह मामवन्तु ॥३॥

    पदार्थः

    (यासाम्) अपाम् (राजा) प्रकाशमानः (वरुणः) सर्वोत्कृष्ट ईश्वरः (याति) प्राप्नोति (मध्ये) (सत्यानृते) सत्यं चानृतं च ते (अवपश्यन्) यथार्थं विजानन् (जनानाम्) जीवानाम् (मधुश्चुतः) मधुरादिगुणैर्निष्पन्नाः (शुचयः) पवित्राः (याः) (पावकाः) पवित्रकराः (ताः) (आपः) (देवीः) देदीप्यमानाः (इह) अस्मिन् संसारे (माम्) (अवन्तु) ॥३॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यो जगदीश्वरः प्राणादिष्वभिव्याप्तस्सर्वेषां जीवानां धर्माधर्मौ पश्यन् फलेन योजयन् सर्वं रक्षति स एव सर्वैः सततं ध्येयोऽस्ति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह जगदीश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यासाम्) जिन जलों के (मध्ये) बीच (वरुणः) सब से उत्तम (राजा) प्रकाशमान ईश्वर (जनानाम्) मनुष्यों के (सत्यानृते) सत्य और झूँठ आचरणों को (अव, पश्यन्) यथार्थ जानता हुआ (याति) प्राप्त होता है वा (याः) जो (मधुश्चुतः) मधुरादि गुणों से उत्पन्न हुए (शुचयः) पवित्र (पावकाः) और पवित्र करनेवाले हैं (ताः) वे (देवीः) देदीप्यमान (आपः) जल (इह) इस संसार में (माम्) मेरी (अवन्तु) रक्षा करें ॥३॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो जगदीश्वर प्राणादिकों में अभिव्याप्त सब जीवों के धर्म-अधर्म को देखता और फल से युक्त करता हुआ सब की रक्षा करता है, वही सब को निरन्तर ध्यान करने योग्य है ॥३॥

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    विषय

    सत्यानृत विवेकी वरुण का आश्रय प्रजाएं ।

    भावार्थ

    ( यासां मध्ये ) जिन जलों या प्रजाजनों के बीच में अभिषिक्त होकर ( वरुणः ) सर्वश्रेष्ठ, प्रजा द्वारा स्वयंवृत राजा ( जनानाम् ) सब मनुष्यों के ( सत्यानृते ) सत्य और झूठ दोनों का ( अवपश्यन् ) विवेक करता हुआ ( याति ) प्राप्त होता है । वे ( मधुश्चुतः ) मधुर गुणों से युक्त, ( शुचयः ) शुद्ध और (याः ) जो ( पावकाः ) पवित्र करने वाली हैं ( ताः देवीः आपः ) वे उत्तम गुणयुक्त जलधाराएं और विद्वान् प्रजाएं ( माम् अवन्तु ) मुझ राजा वा प्रजाजन का पालन करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः। आपो देवताः॥ छन्दः–१ निचृत्त्रिष्टुप्। २, ३ त्रिष्टुप्। ४ विराट् त्रिष्टुप्॥

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    विषय

    राज्य व्यवस्था

    पदार्थ

    पदार्थ- (यासां मध्ये) = जिन प्रजाजनों के बीच अभिषिक्त होकर (वरुणः) = प्रजा द्वारा स्वयंवृत राजा (जनानाम्) = सब मनुष्यों के (सत्यानृते) = सत्य और झूठ का (अवपश्यन्) = विवेक करता हुआ (याति) = प्राप्त होता है। वे (मधुश्चुतः) = मधुर गुणों से युक्त, (शुचय:) = शुद्ध और (या:) = जो (पावका:) = पवित्र करनेवाली हैं (ताः देवी: आपः) = वे जलधाराएं और विद्वान् (प्रजाएं माम् अवन्तु) = मुझ राजा का पालन करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा को प्रजा स्वयं वरण करके अभिषिक्त करती है। वह चुना हुआ राजा लोगों के सत्य और झूठ दोनों का विवेक रखनेवाला होकर राज्य की प्रबन्ध व्यवस्था करे जिससे प्रजापालन उत्तम रीति से होवे।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! जो जगदीश्वर प्राण इत्यादीमध्ये अभिव्याप्त असून सर्व जीवांच्या धर्म-अधर्माला पाहतो व फळ देतो आणि सर्वांचे रक्षण करतो त्याचेच सर्वांनी ध्यान करणे योग्य आहे. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Those liquid streams of waters and divine energy in the currents of which the cosmic ruler of universal law, Varuna, vibrates with universal judgement and omnipotence, watching the truth and untruth of the people’s actions within the rules of divine law, the streams which are replete with the honey sweets of life’s joy, pure and purifying, may all these streams of divinity protect, inspire and promote me here in this world of action.

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