ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 66/ मन्त्र 9
ते स्या॑म देव वरुण॒ ते मि॑त्र सू॒रिभि॑: स॒ह । इष॒ स्व॑श्च धीमहि ॥
स्वर सहित पद पाठते । स्या॒म॒ । दे॒व॒ । व॒रु॒ण॒ । ते । मि॒त्र॒ । सू॒रिऽभिः॑ । स॒ह । इष॑म् । स्वरिति॑ स्वः॑ । च॒ । धी॒म॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ते स्याम देव वरुण ते मित्र सूरिभि: सह । इष स्वश्च धीमहि ॥
स्वर रहित पद पाठते । स्याम । देव । वरुण । ते । मित्र । सूरिऽभिः । सह । इषम् । स्व१रिति स्वः । च । धीमहि ॥ ७.६६.९
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 66; मन्त्र » 9
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वरुण) हे सर्वभजनीय (देव) दिव्यशक्तिमन् परमात्मन् ! (मित्र) हे सर्वप्रिय ! (ते) तवोपासका वयम् (स्याम) ऐश्वर्ययुक्ता भवेम। न केवलं वयमेव ऐश्वर्ययुक्ता भवेम किन्तु (ते) तव (सूरिभिः) तेजस्विविद्वद्भिः सह (इषं) ऐश्वर्यं (स्वश्च) सुखञ्च (धीमहि) धारयाम ॥९॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(वरुण) हे सब के पूजनीय (मित्र) परमप्रिय (देव) दिव्यस्वरूप भगवन् ! (ते) तुम्हारे उपासक (स्याम) ऐश्वर्य्ययुक्त हों, न केवल हम ऐश्वर्य्ययुक्त हों, किन्तु (ते) तुम्हारे (सूरिभिः) तेजस्वी विद्वानों के (सह) साथ (इषं) ऐश्वर्य्य (स्वश्च) और सुख को (धीमहि) धारण करें ॥९॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि यजमान लोगों ! तुम इस प्रकार प्रार्थना करो कि हे परमात्मदेव ! हम लोग सब प्रकार के ऐश्वर्य्य को प्राप्त हों, न केवल हम किन्तु ऋत्विगादि सब विद्वानों के साथ हम आनन्दलाभ करें ॥ इस मन्त्र में ऐश्वर्य्य तथा आनन्द इन दो पदार्थों की प्रार्थना है, परन्तु कई एक टीकाकारों ने इन उच्चभावों से भरे हुए अर्थों को छोड़कर “इष” के अर्थ अन्न “स्व” के अर्थ जल किये हैं, जिसका भाव यह है कि हे ईश्वर ! तू हमें अन्न जल दे। हमारे विचार में इन टीकाकारों ने वेद के उच्चभाव को नीचा कर दिया है। “स्व:” शब्द सर्वत्र आनन्द के अर्थों में आता है, उसके अर्थ यहाँ केवल जल करना वेद के विस्तृतभाव को संकुचित करना है, अस्तु, भाव यह है कि इस मन्त्र में परमात्मा से सब प्रकार के ऐश्वर्य्य और आध्यात्मिक आनन्द की प्रार्थना की गई है, जो सर्वथा सङ्गत है ॥९॥
पदार्थ
पदार्थ = हे ( वरुण देव ) = अति श्रेष्ठ स्वीकरणीय देव! ( ते स्याम ) = हम आपके ही होवें ( मित्र ) = हे सबसे प्रेम करनेवाले मित्र ! ( सूरिभिः सह ) = विद्वानों के साथ आपके उपासक होवें ( इषम् ) = अभिलषित धन धान्य ( स्वः च ) = प्रकाश और नित्य सुख को ( धीमहि ) = प्राप्त होवें ।
भावार्थ
भावार्थ = हे परमात्म देव ! हम पर कृपा करें कि हम आपके ही प्रेमी भक्त स्तुतिगायक और माननेवाले होवें । केवल हम ही नहीं किन्तु, विद्वानों और बान्धव मित्रों के साथ, हम आपके प्रेमी भक्त होवें । भगवन् ! आपकी कृपा से हम, धन धान्य और ज्ञान को प्राप्त होकर नित्य सुख को भी प्राप्त करें ।
विषय
सूर्यवत् तेजस्वी पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( देव वरुण ) सुखदाता, जगत्प्रकाशक ! सर्व दुःखवारक ! हे ( मित्र ) सर्वप्रिय ! हम ( ते स्याम ) तेरे ही होकर रहें । ( सूरिभिः सह ) वे विद्वानों के साथ मिलकर ( ते ) तेरी ( इषं ) इच्छा और ( स्वः च ) तेरे ज्ञान, प्रकाश, आनन्द और सुख को भी ( धीमहि ) धारण करें और उसी का ध्यान करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १—३, १७—१९ मित्रावरुणौ। ४—१३ आदित्याः। १४—१६ सूर्यो देवता। छन्दः—१, २, ४, ६ निचृद्गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ५, ६, ७, १८, १९ आर्षी गायत्री । १७ पादनिचृद् गायत्री । ८ स्वराड् गायत्री । १० निचृद् बृहती । ११ स्वराड् बृहती । १३, १५ आर्षी भुरिग् बृहती । १४ आ आर्षीविराड् बृहती । १६ पुर उष्णिक् ॥
विषय
सुखदाता परमेश्वर
पदार्थ
पदार्थ- हे (देव वरुण) = सुखदाता सर्व दुःखवारक! हे (मित्र) = सर्वप्रिय ! हम (ते स्याम) = तेरे होकर रहें। (सूरिभिः सह) = विद्वानों के साथ (ते) = तेरी (इषं) = इच्छा और (स्वः च) = ज्ञान, आनन्द को (धीमहि) = धारण करें।
भावार्थ
भावार्थ- मनुष्य लोगों को चाहिए कि वे उत्तम विद्वानों की संगति किया करें जिससे सकल सुखदाता परमेश्वर की अनुभूति करके अपनी इच्छानुसार ज्ञान तथा आनन्द की प्राप्ति कर सकें।
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord self-refulgent Varuna, lord of justice, Mitra, just friend of humanity, give us the will and wisdom that with all our wise and brave we be dear and dedicated to you and we meditate to achieve the strength and bliss of Divinity.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे यजमानांनो! तुम्ही अशी प्रार्थना करा, की हे परमात्मदेव! आम्हाला सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य मिळू दे. एवढेच नव्हे तर ऋत्विज इत्यादी सर्व विद्वानांसोबत आम्ही आनंदाचा लाभ घ्यावा. ॥९॥
बंगाली (1)
পদার্থ
তে স্যাম দেব বরুণ তে মিত্র সূরিভিঃ সহ।
ইষং স্বশ্চ ধীমহি ।।৯৮।।
(ঋগ্বেদ ৭।৬৬।৯)
পদার্থঃ হে (বরুণ দেব) বরণীয় পরমাত্মা! (তে স্যাম) আমরা তোমারই হব। (মিত্র) সর্বাধিক প্রেমকারী মিত্র! (সূরিভিঃ সহ তে) বিদ্বানগণের সহিত আমরা তোমার উপাসক হব। (ইষম্) অভিলাষকৃত ধন-ধান্য (স্বঃ চ) জ্ঞান ও নিত্য সুখকে (ধীমহি) প্রাপ্ত হব।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে পরমাত্ম দেব! আমাদের ওপর কৃপা করো যেন আমরা তোমার প্রেমময় ভক্ত, স্তুতিগায়ক ও মান্যকারী হই। কেবল আমরাই নই, বিদ্বান এবং বান্ধব মিত্রদের সাথে আমরা সকলে মিলে যেন তোমার প্রেমী ভক্ত হই। হে ভগবান! তোমার কৃপা হতে আমরা ধন-ধান্য আর জ্ঞানকে প্রাপ্ত হয়ে নিত্য সুখকেও প্রাপ্ত করব।।৯৮।।
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