ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 70/ मन्त्र 4
च॒नि॒ष्टं दे॑वा॒ ओष॑धीष्व॒प्सु यद्यो॒ग्या अ॒श्नवै॑थे॒ ऋषी॑णाम् । पु॒रूणि॒ रत्ना॒ दध॑तौ॒ न्य१॒॑स्मे अनु॒ पूर्वा॑णि चख्यथुर्यु॒गानि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठच॒नि॒ष्टम् । दे॒वौ॒ । ओष॑धीषु । अ॒प्ऽसु । यत् । यो॒ग्याः । अ॒श्नवै॑थे॒ इति॑ । ऋषी॑णाम् । पु॒रूणि॑ । रत्ना॑ । दध॑तौ । नि । अ॒स्मे इति॑ । अनु॑ । पूर्वा॑णि । च॒ख्य॒थुः॒ । यु॒गानि॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
चनिष्टं देवा ओषधीष्वप्सु यद्योग्या अश्नवैथे ऋषीणाम् । पुरूणि रत्ना दधतौ न्य१स्मे अनु पूर्वाणि चख्यथुर्युगानि ॥
स्वर रहित पद पाठचनिष्टम् । देवौ । ओषधीषु । अप्ऽसु । यत् । योग्याः । अश्नवैथे इति । ऋषीणाम् । पुरूणि । रत्ना । दधतौ । नि । अस्मे इति । अनु । पूर्वाणि । चख्यथुः । युगानि ॥ ७.७०.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 70; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(चनिष्टम्, देवा) हे योग्यविद्वांसः ! यूयं (ओषधीषु, अप्सु) ओषधीषु जलेषु च (ऋषीणाम्) मुनीनां (यत्) यानि तात्पर्य्यानि (अश्नवैथे) ज्ञायध्वे, तानि (नि) निश्चयेन अस्मान्प्रति कथयेत, यतो यूयं (योग्या) योग्याः स्थ, (अस्मे) मह्यं (पुरूणि, रत्ना) अमूल्यानि रत्नानि (दधतौ) धारयत, यानि रत्नानि (अनु, पूर्वाणि, युगानि) पूर्वकालिकाः सर्वे विद्वांसः (चख्यथुः) अचकथन् ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(चनिष्टम्, देवा) हे योग्य विद्वान् पुरुषो ! (ओषधीषु, अप्सु) ओषधियों तथा जलों में (ऋषीणां) ऋषियों के तात्पर्य्य को (यत्) जो (अश्नवैथे) जानते हो, वह (नि) निश्चय करके हमारे प्रति कहो, क्योंकि आप (योग्याः) सब प्रकार से योग्य हैं। (अस्मे) हमारे लिए (पुरूणि, रत्ना) अनेक प्रकार के रत्न (दधतौ) धारण कराओ, जिनको (अनु, पूर्वाणि, युगानि) पूर्वकालिक सब विद्वानों ने (चख्यथुः) कथन किया है ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे याज्ञिक लोगो ! तुम उन ज्ञानी तथा विज्ञानी विद्वानों से यह प्रार्थना करो कि आप सब प्रकार की विद्याओं में कुशल हो, इसलिए ओषधियों तथा जलीय विद्यासम्बन्धी ऋषियों के अभिप्राय को हमारे प्रति कहो और जो प्राचीन रसायनविद्यावेत्ता विद्वानों ने रत्नादि निधियों को निकाला है, उनका ज्ञान भी हमें कराओ अर्थात् पदार्थविद्या के जाननेवाले ऋषियों के तात्पर्य्य को समझकर हमें निधिपति बनाओ ॥४॥
विषय
वर-वधू दोनों को उत्तम उपदेश।
भावार्थ
हे ( देवा ) विद्वान् व्यवहारज्ञ, एवं परस्पर के इच्छुक तेजस्वी स्त्री पुरुषो ! ( ओषधीषु ) ओषधियों में और ( अप्सु ) जलों में भी ( यत् ) जो ओषधियां और जलवत् द्रव पदार्थ, ( ऋषीणां योग्या ) मन्त्रद्रष्टा ऋषियों के वा प्राणों के पोषण योग्य हों उनकी ही आप दोनों ( चनिष्टं ) कामना किया करो और उनको ही ( अश्नवैथे ) प्राप्त कर खाया पिया करो। आप दोनों ( पुरूणि रत्ना) बहुत से रत्न और रम्य गुणों को ( दधतौ ) धारण करते हुए ( अस्मे ) हमारे आगे ( पूर्वाणि ) पूर्व के प्रसिद्ध ( युगानि ) पति पत्नी के अनुकरणीय जोड़े का ( अनु ) अनुकरण करके ( नि चख्यथुः ) आदर्श रूप से होकर बतलाओ ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः— १, ३, ४, ६ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ५, ७ विराट् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
नव दम्पति को उपदेश
पदार्थ
पदार्थ- हे (देवा) = तेजस्वी स्त्री-पुरुषो! (ओषधीषु) = ओषधियों में और (अप्सु) = जलों में (यत्) = जो औषधियाँ और (जलवत्) = द्रव पदार्थ, (ऋषीणां योग्या) = मन्त्रद्रष्टा ऋषियों वा प्राणों के पोषण योग्य हों उनकी ही आप दोनों (चनिष्टं) = कामना करो और उनको ही (अश्नवैथे) = खाया-पिया करो। आप दोनों (रुरूणि रत्ना) = बहुत से रत्न और रम्य गुणों को (दधतौ) = धारण करते हुए (अस्मे) = हमारे आगे (पूर्वाणि) = पूर्व के प्रसिद्ध (युगानि) = पति-पत्नी के अनुकरणीय जोड़े का (अनु) = अनुकरण (नि चख्यथुः) = आदर्श रूप होकर बतलाओ।
भावार्थ
भावार्थ- गृहस्थाश्रम में प्रवेश करनेवाले नवदम्पति उत्तम औषध सेवन के द्वारा स्वस्थ व पुष्ट रहें। ऋषियों, तपस्वियों को घर में बुलाकर उनसे गृहस्थ धर्म की शिक्षा लेवें तथा पूर्व गृहस्थों के समान आदर्श गृहस्थ बनें ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Divine Ashvins, life giving powers of natural and human complementarities, whatever appropriate gifts of food and energy worthy of the sages you radiate and vest into herbs and waters, bearing jewels of eternal value, give us too in continuance at the present time as you have been doing for ages immemorial, as you yourself have revealed.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे याज्ञिक पुरुषांनो! तुम्ही त्या ज्ञानी-विज्ञानी विद्वानांची प्रार्थना करा, की तुम्ही सर्व प्रकारच्या विद्येमध्ये कुशल आहात. त्यासाठी औषधी व जलीय विद्यासंबंधी ऋषींचे मत आम्हाला सांगा. प्राचीन रसायन विद्यावेत्त्या विद्वानांनी रत्नादि निधी शोधले आहेत. त्यांचे ज्ञान आम्हाला द्या. अर्थात्, पदार्थविद्या जाणणाऱ्या ऋषींचे तात्पर्य समजावून आम्हाला निधिपती बनवा. ॥४॥
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