ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 72/ मन्त्र 3
उदु॒ स्तोमा॑सो अ॒श्विनो॑रबुध्रञ्जा॒मि ब्रह्मा॑ण्यु॒षस॑श्च दे॒वीः । आ॒विवा॑स॒न्रोद॑सी॒ धिष्ण्ये॒मे अच्छा॒ विप्रो॒ नास॑त्या विवक्ति ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । ऊँ॒ इति॑ । स्तोमा॑सः । अ॒श्विनोः॑ । अ॒बु॒ध्र॒न् । जा॒मि । ब्रह्मा॑णि । उ॒षसः॑ । च॒ । दे॒वीः । आ॒ऽविवा॑सन् । रोद॑सी॒ इति॑ । धिष्ण्ये॒ इति॑ । इ॒मे इति॑ । अच्छ॑ । विप्रः॑ । नास॑त्या । वि॒व॒क्ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उदु स्तोमासो अश्विनोरबुध्रञ्जामि ब्रह्माण्युषसश्च देवीः । आविवासन्रोदसी धिष्ण्येमे अच्छा विप्रो नासत्या विवक्ति ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । ऊँ इति । स्तोमासः । अश्विनोः । अबुध्रन् । जामि । ब्रह्माणि । उषसः । च । देवीः । आऽविवासन् । रोदसी इति । धिष्ण्ये इति । इमे इति । अच्छ । विप्रः । नासत्या । विवक्ति ॥ ७.७२.३
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 72; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
इदानीं तेषां सत्यवादिनां विदुषामुपदेशमाह।
पदार्थः
(अश्विनोः) अध्यापकास्तथोपदेशकाः (अबुध्रन्) सर्वान् बोधयन्ति यत् (जामि) हे सम्बन्धिनो जनाः ! यूयं (उषसः) उषःकाले (ब्रह्माणि देवीः) वेदवाणीः (आविवासन्) समभ्यस्यत (उत) अन्यच्च (इमे) इमानि (स्तोमासः) वैदिकस्तोत्राणि (अच्छ) सम्यक् (रोदसी) द्युलोकपृथिव्योर्मध्ये (धिष्ण्ये) विस्तारयत (च) तथा च विप्रः मेधावी पुरुषः (नासत्या) सत्यवादिनो जनान् (विवक्ति) उपदिशति (ऊँ) इति पादपूरणार्थः ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उन सत्यवादी विद्वानों का उपदेश कथन करते हैं।
पदार्थ
(अश्विनोः) अध्यापक तथा उपदेशक (अबुध्रन्) बोधन करते हैं कि (जामि) हे सम्बन्धिजनो ! तुम लोग (उषसः) उषःकाल में (ब्रह्माणि देवीः) वेद की दिव्यवाणी का (आविवासन्) अभ्यास करो (उत) और (इमे) इन (स्तोमासः) वेद के स्तोत्रों को (अच्छ) भली-भाँति (रोदसी) द्युलोक तथा पृथिवीलोक के मध्य (धिष्ण्ये) फैलाओ (च) और (विप्रः) मेधावी पुरुष (नासत्या विवक्ति) सत्यवादी विद्वानों को उपदेश करें ॥३॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे विद्वज्जनों ! तुम लोग ब्रह्ममुहूर्त्त में वेद की पवित्र वाणी का अभ्यास करते हुए वैदिक स्तोत्रों का उच्च स्वर से पाठ करो और वेद के ज्ञाता पुरुषों को उचित है कि वे विद्वानों को इस वेदवाणी का उपदेश करें, ताकि अज्ञान का नाश होकर ज्ञान की वृद्धि हो ॥३॥
विषय
विद्वान् स्त्री-पुरुषों के कर्तव्य ।
भावार्थ
( स्तोमासः ) वेद के सूक्त और ( अश्विनोः स्तोमासः ) विद्वान् स्त्रियों पुरुषों वा अध्यापक उपदेशकों के स्तुत्य उपदेश और ( ब्रह्माणि ) वेद के मन्त्रगण ( जामि ) बन्धुवत् ( उषसः) उत्तम ज्योति या प्रकाश से युक्त ( देवी: ) दानशील, विद्याभिलाषी प्रजाओं का भी ( उत्-अबुध्रन् ) उत्तम रूप से प्रबुद्ध करें, सबको ज्ञान युक्त करें । ( विप्रः ) विद्वान् पुरुष ( नासत्या अच्छ ) प्रमुख, सदा सत्याश्रयी स्त्री पुरुषों की ( आविवासन् ) सेवा करता हुआ (इमे ) इन दोनों को ( रोदसी ) सूर्य चन्द्रवत् , माता पितावत् ( विवक्ति ) बतलाता है और इनको ही वह ( धिष्ण्ये ) उत्तम बुद्धि युक्त, स्तुत्य और पूज्य आसन के योग्य भी (विवक्ति) कहता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, २, ३, ४ निचृत् त्रिष्टुप् । ५ विराट् त्रिष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
विषय
वेदोपदेश
पदार्थ
पदार्थ- (स्तोमासः) = वेद के सूक्त और (अश्विनोः स्तोमासः) = विद्वान् स्त्रियों, पुरुषों, उपदेशकों के उपदेश और (ब्रह्माणि) = वेद के मन्त्र (जामि) = बन्धुवत् (उषस:) = उत्तम प्रकाश - युक्त (देवी:) = दानशील, विद्याभिलाषी प्रजाओं को (उत्-अबुधन्) = ज्ञानयुक्त करें। (विप्रः) = विद्वान् पुरुष (नासत्या अच्छ) = सत्याश्रयी स्त्री-पुरुषों की (आविवासन्) = सेवा करता हुआ (इमे) = इन दोनों को (रोदसी) = सूर्यचन्द्रवत्, माता-पितावत् (जिष्ण्ये) = उत्तमबुद्धि-युक्त, और योग्य भी विवक्ति कहता है।
भावार्थ
भावार्थ- विद्वान् स्त्री-पुरुष वेद के मन्त्रों द्वारा ज्ञान का उपदेश करके प्रजा जनों को ज्ञान से युक्त करें कि जिससे वे विद्वानों, तपस्वियों तथा माता-पिता की श्रद्धापूर्वक सेवा-शुश्रूषा करें।
इंग्लिश (1)
Meaning
And the songs of praise in honour of the Ashvins and the hymns of adoration in honour of their sister dawn awake, inspire and arouse all, and they reverberate and fill the vast heaven and earth. O brilliant Ashvins, the vibrant devotee chants these well in faith with love for the brilliant lights of truth.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे विद्वानांनो! तुम्ही ब्रह्ममुर्हूताच्या वेळी वेदाच्या पवित्र वाणीचा अभ्यास करीत वैदिक स्तोत्रांचा उच्च स्वराने पाठ करा. वेदाच्या ज्ञात्या पुरुषांनी विद्वानांना या वेदवाणीचा उपदेश करावा. त्यामुळे अज्ञानाचा नाश होऊन ज्ञानाची वृद्धी व्हावी. ॥३॥
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