ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 72/ मन्त्र 4
वि चेदु॒च्छन्त्य॑श्विना उ॒षास॒: प्र वां॒ ब्रह्मा॑णि का॒रवो॑ भरन्ते । ऊ॒र्ध्वं भा॒नुं स॑वि॒ता दे॒वो अ॑श्रेद्बृ॒हद॒ग्नय॑: स॒मिधा॑ जरन्ते ॥
स्वर सहित पद पाठवि । च॒ । इत् । उ॒च्छन्ति॑ । अ॒श्वि॒नौ॒ । उ॒षसः॑ । प्र । वा॒म् । ब्रह्मा॑णि । का॒रवः॑ । भ॒र॒न्ते॒ । ऊ॒र्ध्वम् । भा॒नुम् । स॒वि॒ता । दे॒वः । अ॒श्रे॒त् । बृ॒हत् । अ॒ग्नयः॑ । स॒म्ऽइधा॑ । ज॒र॒न्ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वि चेदुच्छन्त्यश्विना उषास: प्र वां ब्रह्माणि कारवो भरन्ते । ऊर्ध्वं भानुं सविता देवो अश्रेद्बृहदग्नय: समिधा जरन्ते ॥
स्वर रहित पद पाठवि । च । इत् । उच्छन्ति । अश्विनौ । उषसः । प्र । वाम् । ब्रह्माणि । कारवः । भरन्ते । ऊर्ध्वम् । भानुम् । सविता । देवः । अश्रेत् । बृहत् । अग्नयः । सम्ऽइधा । जरन्ते ॥ ७.७२.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 72; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथोपदेशसमय उपदिश्यते।
पदार्थः
(अश्विनौ) हे अध्यापकाः तथोपदेशकाः ! (चेत्) यदा (सविता देवः) सर्वोत्पादकः परमात्मा (भानुम्) सूर्य्यम् (ऊर्ध्वम् अश्रेत्) उपरिष्टाद् उदयं कारयति यदा (उषसः उच्छन्ति) उषसः प्रकाशो भवति, यस्मिन्काले (बृहत् अग्नयः) महान्तोऽग्नयः (समिधा जरन्ते) समिद्भिः दीप्यन्ते अथ च यदा (कारवः) स्तोतारः (ब्रह्माणि) वेदान् (प्रभरन्ते) पठन्ति तदा (वाम्) यूयं ब्रह्मज्ञानम् उपदिशत ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब अध्यापक तथा उपदेशकों के लिये उपदेश का काल कथन करते हैं।
पदार्थ
(अश्विनौ) हे अध्यापक तथा उपदेशको ! (चेत्) जब (वि) विशेषतया (सविता देवः) परमात्म देव (भानुं) सूर्य्य को (ऊर्ध्वम् अश्रेत्) ऊपर को आश्रय=उदय करता (उच्छन्ति उषसः) जब उषःकाल का विकास होता, जब (बृहत् अग्नयः) बड़ी अग्नि (समिधा जरन्ते) समिधाओं द्वारा प्रज्वलित की जाती और जब (कारवः) स्तोता लोग (ब्रह्माणि) वेद को (प्र भरन्ते) भले प्रकार धारण करते हैं, उस काल में (वां) आप लोग ब्रह्मज्ञान का उपदेश करें ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मदेव उपदेश करते हैं कि हे विद्वान् उपदेशको ! आपका कर्तव्य यह है कि आप प्रातः सूर्य्योदयकाल में जब प्रजाजन अग्निहोत्र करते तथा स्तोता लोग वेद का पाठ करते हैं, उस काल में अज्ञान का मार्जन करके जिज्ञासुओं को सत्योपदेश करो, जिससे वे विद्याध्यन तथा वेदोक्त कर्तव्यपालन में सदा तत्पर रहें। इस मन्त्र में परमात्मा ने ब्रह्मविद्याध्यन का सूर्य्योदयकाल ही बतलाया है अर्थात् यह उपदेश किया है कि प्रजाजन उषःकाल में निद्रा से निवृत्त होकर शरीर को शुद्ध करके सन्ध्या अग्निहोत्र के पश्चात् ब्रह्मविद्या के अध्ययन तथा उपदेशश्रवण में तत्पर हों ॥४॥
विषय
विद्वान् स्त्री-पुरुषों के कर्तव्य ।
भावार्थ
हे (अश्विना ) विद्वान् स्त्री पुरुषो ! ( चेत् ) जिस प्रकार ( उषासः ) प्रभात वेलाएं (वि उच्छन्ति) विशेष रूप से प्रकाश करें तब ( कारवः ) स्तुतियों के करने वाले विद्वान् जन ( ब्रह्माणि ) उत्तम २ स्तुति मन्त्रों का ( प्र भरन्ते) उच्चारण करते हैं और जब ( सविता देवः ) प्रकाशमान सूर्य ( ऊर्ध्वं ) ऊपर ( भानुम् अश्रेत् ) कान्ति धारण करे तो ( अग्नयः ) यज्ञाग्नियें ( समिधा ) उत्तम समिधा सहित होकर ( बृहत् ) अच्छी प्रकार ( जरन्ते ) स्तुति को प्राप्त होते हैं, यज्ञ किये जाते हैं उसी प्रकार जब ( उषसः ) कमनीय कान्ति से एवं गृहस्थ कामना से युक्त विदुषी स्त्रियें और प्रजाएं ( वि उच्छन्ति ) विविध प्रकार की अभिलाषाएं प्रकट करती हैं तब ( कारवः ) विद्वान् पुरुष और उत्तम शिल्पी जन ( वां ) वर वधू एवं राजा रानी दोनों का लक्ष्य कर ( ब्रह्माणि ) वेद मन्त्रों और नाना ऐश्वर्यों को ( प्र जरन्ते ) प्रकट करें । ( देवः सविता ) उन दोनों में से दानशील, ऐश्वर्यवान् पुरुष ही ( ऊर्ध्वंभानुं ) सर्वोपरि कान्ति को ( अश्रेत् ) धारण करता है और ( अग्नयः ) तेजस्वी अग्निवत् विद्वान् जन ( समिधा ) अति तेज से ( बृहत् ) वृद्धिकारी, आशीर्वाद आदि वचन का ( जरते ) उपदेश करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, २, ३, ४ निचृत् त्रिष्टुप् । ५ विराट् त्रिष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
विषय
वैदिक आचरण
पदार्थ
पदार्थ- हे (अश्विना) = विद्वान् स्त्री-पुरुषो ! (चेत्) = जैसे (उषासः) = प्रभात वेलाएँ (वि उच्छन्ति) = विशेष रूप से प्रकाश करें तब (कारवः) = स्तोता विद्वान् (ब्रह्माणि) = स्तुति - मन्त्र (प्र भरन्ते) = उच्चारण करते हैं और जब (सविता देव:) = प्रकाशमान् सूर्य (ऊर्ध्वं) = ऊपर (भानुम् अश्रेत्) = कान्ति धारण करे तो (अग्नयः) = यज्ञाग्नियें (समिधा) = उत्तम समिधा सहित होकर (बृहत्) = अच्छी प्रकार (जरन्ते) = स्तुति को प्राप्त होते हैं, अर्थात् यज्ञ किये जाते हैं, वैसे ही जब (उषसः) = कमनीय कान्ति से युक्त विदुषी स्त्रियें और प्रजाएँ (वि उच्छन्ति) = विविध अभिलाषाएँ प्रकट करती हैं तब (कारवः) = विद्वान् पुरुष (वां) = वर-वधू एवं राजा-रानी दोनों को लक्ष्य कर (ब्रह्माणि) = वेद-मन्त्रों और नाना ऐश्वर्यों को (प्र जरन्ते) = प्रकट करें। (देवः सविता) = ऐश्वर्यवान् पुरुष ही (ऊर्ध्वं भानुं) = सर्वोपरि कान्ति को (अश्रेत्) = धारण करता है और (अग्नयः) = विद्वान् (समिधा) = अति तेज से (बृहत्) = वृद्धिकारी, आशीर्वादका वचन का (जरन्ते) = उपदेश करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- स्त्री पुरुषों को योग्य है कि प्रातः उषाकाल में ईश्वर की स्तुति मन्त्रों द्वारा करें तथा सूर्योदय होने पर वेद मन्त्रों से यज्ञ करें। इससे जीवन तेजस्वी, कान्तियुक्त तथा ऐश्वर्य सम्पन्न बनता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, harbingers of light, wisdom and wealth of life, when the dawns arise and shine, poets and priests sing hymns of praise in your honour, the lord creator Savita in the glory of self-refulgence sends up the orb of sun for the day, and the fires of yajna fed on holy fuel rise in flames to glorify the light of Divinity.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमात्मा उपदेश करतो, की हे विद्वान उपदेशकांनो! तुमचे हे कर्तव्य आहे की तुम्ही प्रात:काळी सूर्योदयाच्या वेळी जेव्हा प्रजाजन अग्निहोत्र करतात व स्तोता लोक वेदाचा पाठ करतात. त्याकाळी अज्ञानाचे मार्जन करून जिज्ञासूंना सत्योपदेश करा, ज्यामुळे ते विद्याध्ययन व वेदोक्त कर्तव्य पालनात सदैव तत्पर असावेत. या मंत्रात परमात्म्याने ब्रह्मविद्याध्ययनासाठी सूर्योदयाचा काळच सांगितलेला आहे. अर्थात, हा उपदेश केलेला आहे, की प्रजा उष:काळी निद्रेतून जागृत होऊन, शरीर शुद्ध करून, संध्या अग्निहोत्रानंतर ब्रह्मविद्येचे अध्ययन व उपदेश श्रवण करण्यात तत्पर असावी. ॥४॥
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