ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 75/ मन्त्र 8
नू नो॒ गोम॑द्वी॒रव॑द्धेहि॒ रत्न॒मुषो॒ अश्वा॑वत्पुरु॒भोजो॑ अ॒स्मे । मा नो॑ ब॒र्हिः पु॑रु॒षता॑ नि॒दे क॑र्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठनु । नः॒ । गोऽम॑त् । वी॒रऽव॑त् । धे॒हि॒ । रत्न॑म् । उषः॑ । अश्व॑ऽवत् । पु॒रु॒ऽभोजः॑ । अ॒स्मे इति॑ । मा । नः॒ । ब॒र्हिः । पु॒रु॒षता॑ । नि॒दे । कः॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नू नो गोमद्वीरवद्धेहि रत्नमुषो अश्वावत्पुरुभोजो अस्मे । मा नो बर्हिः पुरुषता निदे कर्यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥
स्वर रहित पद पाठनु । नः । गोऽमत् । वीरऽवत् । धेहि । रत्नम् । उषः । अश्वऽवत् । पुरुऽभोजः । अस्मे इति । मा । नः । बर्हिः । पुरुषता । निदे । कः । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.७५.८
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 75; मन्त्र » 8
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 8
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 8
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (अस्मे) अस्मभ्यं (अश्वावत्) बहुवेगयुक्तं (गोमत्) प्रकाशयुक्तं (वीरवत्) वीरतायुक्तं (पुरुभोजः) भोगप्रदं (रत्नम्) रत्नयुक्तं (नु) निश्चयेन (नः) अस्मान् (धेहि) देहि (नः बर्हिः) अस्मद्यज्ञं (कः) कोऽपि पुरुषो (मा) (निदे) निन्दा मा कार्षीः, निन्दा मा कुर्वित्यर्थः (पुरुषता) जनतायां कदापि निन्दां न (कः) कुर्यादित्यर्थः (यूयम्) भवान् (पात) रक्षतु (सदा) सदैव (नः) अस्मान् इति वयं प्रार्थयामहे ॥८॥ इति पञ्चसप्ततितमं सूक्तम् ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उषःकाल में प्रार्थना का विधान कथन करते हैं।
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (अस्मे) हमारे लिए (अश्वावत्) अश्वोंवाले यान दें, (पुरुभोजः) अनेक प्रकार के भोग प्रदान करें, (नु) निश्चय करके (नः) हमको (गोमत् वीरवत्) पुष्ट इन्द्रियोंवाले वीर पुरुष और (रत्नं) रत्न तथा ऐश्वर्य्य (धेहि) प्रदान करें और (पुरुषता) पुरुषसमूह में (नः) हमारे (बर्हिः) यज्ञ की (निदे) निन्दा (मा) मत (कः) हो और (नः) हमको (यूयं) आप (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाचनों से (सदा) सदा (पात) पवित्र करें ॥८॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे याज्ञिक तथा विद्वान् पुरुषो ! तुम सदा उषःकाल में यह प्रार्थना करो कि हे भगवन् ! आप हमें विविध प्रकार के यानादि पदार्थ और दृढ इन्द्रियोंवाली पुत्र-पौत्रादि सन्तति प्रदान करें। हमारे यज्ञ की कोई निन्दा न करे, प्रत्युत सब अनुष्ठानी बन कर हमारे सहकारी हों। हम निन्दित कर्मों के अपयश से सदैव भयभीत रहें। आप ऐसी कृपा करें कि हम आपसे प्रार्थना करते हुए सदा अपना कल्याण ही देखें। यह उपासक की प्रार्थना करने का प्रकार है ॥८॥ यह ७५वाँ सूक्त समाप्त हुआ ॥
विषय
स्त्रियों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( उषः ) कान्तिमति, प्रिय, कामना वाली ज्ञानवती विदुषि ! वधू ! तू ( नः ) हमारे ( गोमत् ) गौओं से युक्त, ( वीरवत् ) वीर पुत्रों से युक्त ( रत्नं ) उत्तम धन, उत्तम रम्य व्यवहार, पतिसंगादि गृहस्थोचित कर्म, पुत्र आदि (धेहि ) धारण कर । तू (अस्मे ) हमारे हितार्थ , ( अश्वा वत् ) अश्वों से युक्त और ( पुरु-भोज: ) बहुतों को पालने और बहुतों से भोगने योग्य ऐश्वर्य को भी ( धेहि ) धारण कर। ( नः बर्हिः ) हमारा यज्ञ और वृद्धिशील राष्ट्र, पद ( Position ) आदि (पुरुषता ) पुरुषों में ( निदे मा कः ) निन्दा करने योग्य मत बना । हे विद्वान् पुरुषो ! आप लोग ( नः सदा स्वस्तिभिः पात ) हमें सदा उत्तम साधनों से पालन करो। उषा सूक्तों के प्रायः सब मन्त्र राजशक्ति और विशोका प्रज्ञा, तथा परमेश्वरी शक्ति युक्त पदार्थों में भी लगते हैं । इति द्वाविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, ८ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ४, ५ विराट् त्रिष्टुप् । ३ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप् । ६, ७ आर्षी त्रिष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
स्त्रियों का कर्त्तव्य
पदार्थ
पदार्थ- हे (उषः) = कान्तिमति, कामनावाली, विदुषि वधू! तू (नः) = हमारे (गोमत्) = गौओं से युक्त, (वीरवत्) = वीर पुत्रों से युक्त (रत्नं) = उत्तम धन, व्यवहार, पतिसंगादि गृहस्थोचित कर्म (धेहि) = धारण कर। तू (अस्मे) = हमारे हितार्थ, (अश्वावत्) = अन्नों से युक्त और (पुरु-भोज:) बहुतों से भोगने योग्य ऐश्वर्य को भी (धेहि) = धारण कर। (नः बर्हिः) = हमारा यज्ञ और वृद्धिशील राष्ट्र, पद (Position ) आदि (पुरुषता) = पुरुषों में (निदे मा कः) = निन्दा- योग्य मत बना। हे विद्वान् पुरुषो! आप (नः सदा स्वस्तिभिः पात) = हमारा सदा उत्तम साधनों से पालन करो। उषा-सूक्तों के प्रायः सब मन्त्र राजशक्ति और विशोका प्रज्ञा, तथा परमेश्वरी शक्ति युक्त पदार्थों में भी लगते हैं।
भावार्थ
भावार्थ-विदुषी स्त्री गृहस्थ धर्म को धारण करनेवाली होवे। वीर पुत्र को उत्पन्न करे, घर के व्यय आदि का सन्तुलित बजट बनावे, अपने व्यवहार से परिवार को जोड़कर रखे तथा नित्य घर में यज्ञ करे। इस प्रकार अपने घर की प्रतिष्ठा को बढ़ावे । अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ और देवता उषा ही है।
इंग्लिश (1)
Meaning
O light divine, give us jewels of the wealth of lands and cows and brilliance of speech and knowledge, swiftness of transport and achievement, food and prosperity for all, and a heroic line of descendants. Let none malign our manliness and house of yajna. O saints and sages, protect and promote us all ways all time with all happiness and well being.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे याज्ञिक व विद्वान पुरुषांनो! तुम्ही सदैव उष:काली ही प्रार्थना करा, की हे भगवान! तू आम्हाला विविध प्रकारची याने इत्यादी पदार्थ व दृढ इंद्रिये असणारे पुत्र, पौत्र इत्यादी संतती प्रदान कर. आमच्या यज्ञाची कुणी निंदा करता कामा नये, तर सर्व जण अनुष्ठानी बनून आमचे सहकारी व्हावेत. आम्ही सदैव वाईट कर्माला भ्यावे. तुझी प्रार्थना करीत सदैव आपले कल्याण व्हावे, ही इच्छा धरावी, अशी कृपा कर. उपासकांनी अशा प्रकारची प्रार्थना करावी. ॥८॥
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