ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 78/ मन्त्र 4
अचे॑ति दि॒वो दु॑हि॒ता म॒घोनी॒ विश्वे॑ पश्यन्त्यु॒षसं॑ विभा॒तीम् । आस्था॒द्रथं॑ स्व॒धया॑ यु॒ज्यमा॑न॒मा यमश्वा॑सः सु॒युजो॒ वह॑न्ति ॥
स्वर सहित पद पाठअचे॑ति । दि॒वः । दु॒हि॒ता । म॒घोनी॑ । विश्वे॑ । प॒श्य॒न्ति॒ । उ॒षस॑म् । वि॒ऽभा॒तीम् । आ । अ॒स्था॒त् । रथ॑म् । स्व॒धया॑ । यु॒ज्यमा॑नम् । आ । यम् । अश्वा॑सः । सु॒ऽयुजः॑ । वह॑न्ति ॥
स्वर रहित मन्त्र
अचेति दिवो दुहिता मघोनी विश्वे पश्यन्त्युषसं विभातीम् । आस्थाद्रथं स्वधया युज्यमानमा यमश्वासः सुयुजो वहन्ति ॥
स्वर रहित पद पाठअचेति । दिवः । दुहिता । मघोनी । विश्वे । पश्यन्ति । उषसम् । विऽभातीम् । आ । अस्थात् । रथम् । स्वधया । युज्यमानम् । आ । यम् । अश्वासः । सुऽयुजः । वहन्ति ॥ ७.७८.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 78; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुयुजः) सुष्ठुदीप्तिमत्यः परमात्मशक्तयः (अश्वासः) तीक्ष्णगत्या (यम् रथम्) यं स्यन्दनं (आ) सम्यक् (वहन्ति) गमयन्ति, ताभिः (युज्यमानम्) सम्मिलितां (दिवः दुहिता) द्युलोकस्य दुहितरं (उषसम्) उषसं (विश्वे पश्यन्ति) सर्वेऽवलोकन्ते, या (अचेति) दिव्यज्योतिःसम्पन्ना (मघोनी) ऐश्वर्ययुक्ता (विभातीम्) प्रकाशमाना (स्वधया) अन्नादिविविधपदार्थसम्पन्ना तथा या (आ) सम्यक् (अस्थात्) दृढतया तिष्ठति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुयुजः) सुन्दर दीप्तिवाली परमात्मशक्तियें (अश्वासः) शीघ्र गतिद्वारा (यं रथं) जिस रथ को (आ) भले प्रकार (वहन्ति) चलाती हैं, उससे (युज्यमानं) जुड़ी हुई (दिवः दुहिता) द्युलोक की दुहिता (उषसं) उषा को (विश्वे पश्यन्ति) सब लोग देखते हैं जो (अचेति) दिव्यज्योतिसम्पन्न (मघोनी) ऐश्वर्य्यवाली (विभातीं) प्रकाशयुक्त (स्वधया) अन्नादि पदार्थों से सम्पन्न और जो (आ) भले प्रकार (अस्थात्) दृढ़तावाली है ॥४॥
भावार्थ
मन्त्र का आशय यह है कि इस ब्रह्माण्डरूपी रथ को परमात्मा की दिव्यशक्तियें चलाती हैं। उसी रथ में जुड़ी हुई द्युलोक की दुहिता उषा को विज्ञानी लोग देखते हैं, जो अन्नादि ऐश्वर्य्यसम्पन्न बड़ी दृढ़तावाली है। इस शक्ति को देखकर विज्ञानी महात्मा इस ब्रह्माण्ड में सर्वत्र परिपूर्ण परमात्मा का अनुभव करते हुए उसी की उपासना में प्रवृत्त होकर अपने जीवन को सफल करते और परमात्मा की अचिन्त्यशक्तियों को विचारते हुए उसी में संग्लन होकर अमृतभाव को प्राप्त होते हैं ॥४॥
विषय
सौभाग्यवती का वर्णन ।
भावार्थ
( दिवः दुहिता ) सूर्य की पुत्री के समान कान्तिमती (मघोनी) बड़ी ऐश्वर्य की स्वामिनी, सौभाग्यवती, सुभगा (अचेति) जानी जाती है। उसको (विभातीम् ) विविध प्रकार से चमकती ( उषसम् ) प्रभात वेला के समान ही अनुरागवती को ( विश्वे पश्यन्ति ) सब देखते हैं। (यम् ) जिसको ( अश्वासः ) बहुत विद्याओं में निष्णात जन अश्वों के समान उत्तम सहयोगी होकर सन्मार्ग पर लेजाते हैं उस (रथम्) रथवत् सुदृढ़ शरीर वाले, और ( स्वधया ) अपने आपको वा अपने सर्वस्व को धारण करने वाली स्त्री के साथ ( युज्यमानम् ) योग प्राप्त करने वाले ( रथम् ) रमणकारी, पति को ( आ अस्थात् ) प्राप्त करे अपना आश्रय बनावे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषि: ॥ उषा देवता ॥ छन्दः – १, २ त्रिष्टुप् । ३, ४ निचृत् त्रिष्टुप् । ५ विराट् त्रिष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूकम् ॥
विषय
पति-पत्नी का समर्पण
पदार्थ
पदार्थ - (दिवः दुहिता) = सूर्य पुत्री के समान कान्तिमती (मघोनी) = ऐश्वर्य-स्वामिनी, सौभाग्यवती, सुभगा (अचेति) = जानी जाती है। उस (विभातीम्) = विविध प्रकार से भासित (उषसम्) = प्रभात वेला के तुल्य ही अनुरागवती को (विश्वे पश्यन्ति) = सब देखते हैं। (यम्) = जिसको (अश्वासः) = विद्यानिष्णात जन अश्वों के तुल्य सहयोगी होकर सन्मार्ग पर ले जाते हैं उस (रथम्) = रथवत् सुदृढ़ शरीरवाले और (स्वधया) = अपने सर्वस्व को धारण करनेवाले, स्त्री के साथ (युज्यमानम्) = योग प्राप्त करनेवाले (रथम्) = रमणकारी पति को (आ अस्थात्) = प्राप्त करे ।
भावार्थ
भावार्थ- कान्तिमती स्त्री अपने विद्वान् पति के प्रति अनुरागवाली होकर रहे तथा पति-पत्नी दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव से रहकर सुखी जीवन व्यतीत करें। इससे विद्वानों में इनकी प्रशंसा होगी।
इंग्लिश (1)
Meaning
The resplendent and munificent dawn, child of heaven, is perceived rising on the horizon, riding her chariot efficient in service, powered by her own energy and drawn by efficient, well trained and well directed horses. All people of the world see this brilliant dawn and feel blest.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्राचा आशय असा, की या ब्रह्मांडरूपी रथाला परमेश्वराच्या दिव्यशक्ती चालवितात. त्याच रथाला जोडलेली द्युलोकाची कन्या उषा असून, तिला विज्ञानी लोक जाणतात. जी अन्न इत्यादींनी ऐश्वर्यसंपन्न व दृढ आहे. या शक्तीला पाहून विज्ञानी महात्मा या ब्रह्मांडात सर्वत्र परिपूर्ण परमात्म्याची अनुभूती जाणून घेऊन उपासना करतात. त्याच्या अचिंत्य शक्तीचा विचार करून आपले जीवन सफल करतात व त्याच्याशी संलग्न होऊन अमृतभाव प्राप्त करतात. ॥४॥
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