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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 94 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 94/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - आर्षीगायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्रे॑ अ॒ग्ना नमो॑ बृ॒हत्सु॑वृ॒क्तिमेर॑यामहे । धि॒या धेना॑ अव॒स्यव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रे॑ । अ॒ग्ना । नमः॑ । बृ॒हत् । सु॒ऽवृ॒क्तिम् । आ । ई॒र॒या॒म॒हे॒ । धि॒या । धेनाः॑ । अ॒व॒स्यवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रे अग्ना नमो बृहत्सुवृक्तिमेरयामहे । धिया धेना अवस्यव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रे । अग्ना । नमः । बृहत् । सुऽवृक्तिम् । आ । ईरयामहे । धिया । धेनाः । अवस्यवः ॥ ७.९४.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 94; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्द्रे) वयं कर्मयोगिनं (अग्ना) ज्ञानयोगिनं च (नमः) नमस्कुर्याम तथा (बृहत्सुवृक्तिमेरयामहे) ताभ्यां सह नम्रीभूय समाचरेम (धिया, धेनाः) अनुष्ठानरूपवाण्या (अवस्यवः) रक्षायै तौ याचेमहि च ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हम (इन्द्रे) कर्मयोगी (अग्ना) और ज्ञानयोगी के लिए (नमः) नमस्कार करें और (बृहत्सुवृक्तिमेरयामहे) हम उनके साथ बड़ी नम्रतापूर्वक बर्ताव करें। (धिया धेनाः) अनुष्ठानरूप वाणी से हम उनसे (अवस्यवः) रक्षा की याचना करें ॥४॥

    भावार्थ

    जो लोग विद्वानों के साथ रह कर अपनी वाणी को अनुष्ठानमयी बनाते हैं अर्थात् कर्मयोगी बन कर उक्त विद्वानों की सङ्गति करते हैं, वे संसार में सदैव सुरक्षित होते हैं ॥४॥

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    विषय

    नायक नायिका जनों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हम लोग ( अवस्यवः ) ज्ञान, रक्षा, प्राणतृप्ति, ऐश्वर्यादि की कामना करते हुए (इन्द्रे अग्नौ ) अपने बीच विद्यमान, ऐश्वर्यवान्, शत्रुहन्ता और अग्निवत् तेजस्वी, ज्ञानी पुरुष वर्गों में ( बृहत् नमः ) बड़ाभारी आदर, और शस्त्र बल और ( सु-वृक्तिम् ) शुभ वर्त्ताव, उत्तम स्तुति और शत्रु पापादि को वर्जन करने का बल, और ( घिया ) बुद्धि और कर्म के द्वारा ( घेनाः ) वाणियों को (आ ईरयामहे) प्रेरित करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः—१, ३, ८, १० आर्षी निचृद् गायत्री । २, ४, ५, ६, ७, ९ , ११ आर्षी गायत्री । १२ आर्षी निचृदनुष्टुप् ॥ द्वादर्शं सूक्तम्॥

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    विषय

    शुभ प्रेरणा

    पदार्थ

    पदार्थ- हम लोग (अवस्यवः) = ऐश्वर्यादि चाहते हुए, (इन्द्रे अग्नौ) = शत्रुहन्ता और अग्निवत् तेजस्वी वर्गों में (बृहत् नमः) = बड़ा आदर, बल और (सु-वृक्तिम्) = शुभ वर्ताव, शत्रु, पापादि को वर्जने का बल और (धिया) = बुद्धि और कर्म के द्वारा (धेनाः) = वाणियों को (आ ईरयामहे) = प्रेरित करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- मनुष्य अपनी बुद्धि एवं कर्मों तथा वचनों के द्वारा अन्यों को बड़ों का आदर, शुभ व्यवहार, पाप कर्मों से बचने तथा बल व पराक्रम प्राप्त करने की प्रेरणा किया करे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Salutations and high honour to Indra and Agni, leading lights of action and advancement with enlightenment. Let us offer them high praise and gratitude in the best of words with the best of thoughts. We need protection, and they are protectors and guides in our course of progress.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक विद्वानांबरोबर राहून आपली वाणी अनुष्ठानयुक्त बनवितात अर्थात कर्मयोगी बनून वरील विद्वानांची संगती करतात ते जगात सदैव सुरक्षित असतात. ॥४॥

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