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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 96/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - सरस्वान् छन्दः - आर्षीगायत्री स्वरः - षड्जः

    पी॒पि॒वांसं॒ सर॑स्वत॒: स्तनं॒ यो वि॒श्वद॑र्शतः । भ॒क्षी॒महि॑ प्र॒जामिष॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पी॒पि॒ऽवांस॑म् । सर॑स्वतः । स्तन॑म् । यः । वि॒श्वऽद॑र्शतः । भ॒क्षी॒महि॑ । प्र॒ऽजाम् । इष॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पीपिवांसं सरस्वत: स्तनं यो विश्वदर्शतः । भक्षीमहि प्रजामिषम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पीपिऽवांसम् । सरस्वतः । स्तनम् । यः । विश्वऽदर्शतः । भक्षीमहि । प्रऽजाम् । इषम् ॥ ७.९६.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 96; मन्त्र » 6
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 6
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे परमात्मन् ! (सरस्वतः) ब्रह्मविद्यायाः (स्तनम्) तं पयोधरं (पीपिवांसम्) यो हि अमृतेन पूर्णः पीनः (यः) यश्च (विश्वदर्शतः) सर्वविधज्ञानदाता तं पीत्वा (प्रजाम्, इषम्) प्रजामन्नादिकं च (भक्षीमहि) श्रयेम ॥६॥ इति षण्णवतितमं सूक्तं विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! (सरस्वतः) ब्रह्मविद्या के (स्तनम्) उस स्तन को (पीपिवांसम्) जो कि अमृत से भरा हुआ है और (यः) जो (विश्वदर्शतः) सब प्रकार के ज्ञानों को देनेवाला है अर्थात् जिसको पीकर सब प्रकार की आँखें खुलती हैं, उसको पीकर (प्रजाम् इषम्) प्रजा के सब ऐश्वर्य को (भक्षीमहि) हम भोगें ॥६॥

    भावार्थ

    जीव प्रार्थना करता है कि हे परमात्मन् ! मैं ब्रह्मविद्या के स्तन का पान करूँ, जिस अमृत को पीकर पुरुष दिव्यदृष्टि हो जाता है और संसार के सब ऐश्वर्यों के भोगने योग्य बनता है ॥६॥ यह ९६वाँ सूक्त और २०वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    ज्ञानवान् प्रभु सरस्वान् से प्रार्थना ।

    भावार्थ

    (यः) जो (विश्व-दर्शतः ) समस्त जीवों के दर्शन करने योग्य, सूर्य के समान तेजस्वी है। उस ( सरस्वतः ) उत्तम ज्ञानवान्, शक्तिमान् प्रभु के ( पीपिवांसं ) सब के परिपोषक, ( स्तनं ) स्तन के समान सबको बालकवत् पोषण करने वाले, या मेघवत् सब के प्रति वेदोपदेश देने वाले वेदमय शब्द वा प्रभु का हम ( भक्षीमहि ) भजन, सेवन करें और उसी की दी ( प्रजाम् ,इषम् ) प्रजा, उत्तम सन्तान अन्न तथा प्रेरणा और सदिच्छा का सेवन करे। अथवा उस सर्वशक्तिमान् प्रभु की उत्तम सूर्यादि उत्पादक प्रकृति 'प्रजा' है, और उसका सञ्चालक शक्ति 'इष्' है, हम उसका भजन सेवन कर सुखी हों। इति विंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ १—३ सरस्वती। ४—६ सरस्वान् देवता॥ छन्द:—१ आर्ची भुरिग् बृहती। ३ निचृत् पंक्तिः। ४, ५ निचृद्गायत्री। ६ आर्षी गायत्री॥

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    विषय

    दर्शनीय प्रभु

    पदार्थ

    पदार्थ- (यः) = जो (विश्व दर्शतः) = समस्त जीवों के लिए दर्शनीय सूर्य समान तेजस्वी है, उस (सरस्वतः) = ज्ञानवान् प्रभु के (पीपिवांसं) = सबके पोषक, (स्तनं) = बालक का स्तन के समान पुष्टिदाता प्रभु का हम (भक्षीमहि) = सेवन करें और उसी की दी हुई (प्रजाम्, इषम्) = सन्तान, अन्न आदि का सेवन करे।

    भावार्थ

    भावार्थ- परमेश्वर समस्त जीवों के हित के लिए सृष्टि में सब पदार्थों की रचना करता है। वह सन्तान, अन्न तथा सभी पुष्टिकारक पदार्थों को बनाकर जीवों को सुखी करता है। आगामी सूक्त का ऋषि वसिष्ठ व देवता इन्द्र, इन्द्राब्रह्मणस्पती तथा बृहस्पति हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord, let us live and enjoy life with food, energy, knowledge and enlightenment unto the ultimate freedom, drinking the divine nectar at the overflowing ocean source of eternal life, the sovereign who watches and governs everyone, everything, of the universe.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो पुरुष अमृत पिऊन दिव्य दृष्टी प्राप्त करतो व जगातील सर्व ऐश्वर्य भोगण्यायोग्य बनतो त्या ब्रह्मविद्येचे मी स्तनपान करावे, अशी प्रार्थना जीव परमेश्वराला करतो. ॥६॥

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