ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 99/ मन्त्र 3
इरा॑वती धेनु॒मती॒ हि भू॒तं सू॑यव॒सिनी॒ मनु॑षे दश॒स्या । व्य॑स्तभ्ना॒ रोद॑सी विष्णवे॒ते दा॒धर्थ॑ पृथि॒वीम॒भितो॑ म॒यूखै॑: ॥
स्वर सहित पद पाठइरा॑वती॒ इतीरा॑ऽवती । धे॒नु॒मती॒ इति॑ धे॒नु॒ऽमती॑ । हि । भू॒तम् । सु॒य॒व॒सिनी॒ इति॑ सु॒ऽय॒व॒सिनी॑ । मनु॑षे । द॒श॒स्या । वि । अ॒स्त॒भ्नाः॒ । रोद॑सी॒ इति॑ । वि॒ष्णो॒ इति॑ । ए॒ते इति॑ । दा॒धर्थ॑ । पृ॒थि॒वीम् । अ॒भितः॑ । म॒यूखैः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इरावती धेनुमती हि भूतं सूयवसिनी मनुषे दशस्या । व्यस्तभ्ना रोदसी विष्णवेते दाधर्थ पृथिवीमभितो मयूखै: ॥
स्वर रहित पद पाठइरावती इतीराऽवती । धेनुमती इति धेनुऽमती । हि । भूतम् । सुयवसिनी इति सुऽयवसिनी । मनुषे । दशस्या । वि । अस्तभ्नाः । रोदसी इति । विष्णो इति । एते इति । दाधर्थ । पृथिवीम् । अभितः । मयूखैः ॥ ७.९९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 99; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(विष्णो) हे विभो ! (पृथिवीम्, अभितः) पृथिव्याः सर्वतः (मयूखैः) स्वतेजोमयकिरणैः (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (दाधर्थ) धृतवानसि, यौ चोभौ लोकौ (इरावती) ऐश्वर्यसम्पन्नौ (धेनुमती) सर्वमनोरथसाधकौ (सूयवसिनी) सर्वस्मात्सुन्दरौ (मनुषे) मनुष्याय ऐश्वर्यं दातुम् (दशस्या) उत्पादितौ भवता (वि, अस्तभ्नाः) तौ च स्वशक्त्या धारयसि ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(विष्णो) हे व्यापक परमात्मन् ! (पृथिवीमभितः) पृथिवी के चारों ओर से (मयूखैः) अपने तेजरूप किरणों से (रोदसी) द्युलोक और पृथिवीलोक को (दाधर्थ) आपने धारण किया हुआ है, जो दोनों लोक (इरावती) ऐश्वर्य्यवाले (धेनुमती) सब प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करनेवाले (सूयवसिनी) सर्वोपरि सुन्दर (मनुषे) मनुष्य के लिये ऐश्वर्य (दशस्या) देने के लिये आपने उत्पन्न किये हैं ॥३॥
भावार्थ
यहाँ द्युलोक और पृथिवीलोक दोनों उपलक्षणमात्र हैं। वास्तव में परमात्मा ने सब लोक-लोकान्तरों को ऐश्वर्य्य के लिये उत्पन्न किया है और इस ऐश्वर्य्य के अधिकारी सत्कर्म्मी पुरुष हैं। जो लोग कर्म्मयोगी हैं, उनके लिये द्युलोक तथा पृथिवीलोक के सब मार्ग खुले हुए हैं। परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे अधिकारी जनों ! आपके लिये यह विस्तृत ब्रह्माण्डक्षेत्र खुला है। आप इस में कर्म्मयोगद्वारा अव्याहतगति अर्थात् बिना रोक–टोक के सर्वत्र विचरें ॥३॥
विषय
सर्वव्यापी प्रभु की महिमा का वर्णन ।
भावार्थ
हे ( द्यावापृथिव्यौ ) आकाश और भूमि वा सूर्य और भूमि ! तुम दोनों (इरा-वती) जलों, अन्नों से युक्त तथा (धेनुमती) रस पान कराने वाली, गौ, वाणी तथा किरणों से युक्त, और ( मनुषे ) मनुष्य के लिये ( सु-यवसनी ) उत्तम अन्न वाली और ( दशस्या ) नाना सुख भोग देने वाली ( भूतम् ) होवो । हे ( विष्णो ) व्यापक प्रभो ! तू ( एते रोदसी ) इन दोनों पृथ्वी और आकाश को ( वि अस्तभ्नाः ) विशेष प्रकार से थामे है । और तू ( पृथिवीम् ) पृथिवी को ( अभितः ) सब ओर से ( मयूखैः ) किरणों से वा चारों ओर लगी खूटियों से जैसे, ( दाधर्थ ) धारण किये हुए है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ १—३, ७ विष्णुः। ४—६ इन्द्राविष्णु देवते॥ छन्दः—१, ६ विराट् त्रिष्टुप्। २, ३ त्रिष्टुप्। ४, ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
विषय
जगद्धारक परमेश्वर
पदार्थ
पदार्थ- हे (द्यावापृथिव्यौ) = आकाश और भूमि, सूर्य और भूमि! तुम दोनों (इरावती) = जलों, अन्नों से युक्त तथा (धेनुमती) = रसपान करानेवाली, गौ, वाणी तथा किरणों से युक्त और (मनुषे) = मनुष्य के लिये (सु-यवसिनी) = उत्तम अन्नवाली और (दशस्या) = सुख देनेवाली (भूतम्) = होवो। हे (विष्णो) = प्रभो ! तू (एते रोदसी) = इन पृथ्वी और आकाश को (वि अस्तभ्नाः) = विशेष रूप से थामे है, तू (पृथिवीम्) = पृथिवी को (अभितः) = सब ओर से (मयूखै:) = किरणों से (दाधर्थ) = धारण किये है।
भावार्थ
भावार्थ- सूर्य, आकाश व भूमि ही अन्नों, जलों व रसों को उत्पन्न करते हैं। इनसे ही ऊर्जा प्राप्त करके समस्त प्राणी जीवन धारण करते हैं। वह व्यापक परमेश्वर इन सूर्य, आकाश व भूमि को भी धारण करता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
O heaven and earth full of food and energy, milk and honey, herbs and rejuvenation, givers of food, energy and light of knowledge, both of you are generous for humanity. Vishnu, omnipresent and omnipotent, upholds these heaven and earth worlds and stabilises the earth all round by solar radiations of cosmic energy.
मराठी (1)
भावार्थ
येथे द्युलोक व पृथ्वीलोक दोन्ही उपलक्षणमात्र आहेत. वास्तविक परमात्म्याने सर्व लोकलोकांतरांना ऐश्वर्यासाठी उत्पन्न केलेले आहे व या ऐश्वर्याचे अधिकारी सत्कर्मी पुरुष आहेत. जे लोक कर्मयोगी आहेत त्यांच्यासाठी द्युलोक व पृथ्वीलोकाचे सर्व मार्ग मुक्त आहेत.
टिप्पणी
परमात्मा उपदेश करतो, की हे अधिकारी लोकांनो! तुमच्यासाठी ब्रह्मांडक्षेत्र खुले आहे. तुम्ही त्यात कर्मयोगाद्वारे अन्याहत गतीने अर्थात अडथळा न येता सर्वत्र विहार करा. ॥३॥
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