ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 25/ मन्त्र 3
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - विराडुष्निक्
स्वरः - ऋषभः
ता मा॒ता वि॒श्ववे॑दसासु॒र्या॑य॒ प्रम॑हसा । म॒ही ज॑जा॒नादि॑तिॠ॒ताव॑री ॥
स्वर सहित पद पाठता । मा॒ता । वि॒श्वऽवे॑दसा । अ॒सु॒र्या॑य । प्रऽम॑हसा । म॒ही । ज॒जा॒न॒ । अदि॑तिः । ऋ॒तऽव॑री ॥
स्वर रहित मन्त्र
ता माता विश्ववेदसासुर्याय प्रमहसा । मही जजानादितिॠतावरी ॥
स्वर रहित पद पाठता । माता । विश्वऽवेदसा । असुर्याय । प्रऽमहसा । मही । जजान । अदितिः । ऋतऽवरी ॥ ८.२५.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 25; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Great mother Aditi, inviolable Nature, concrete embodiment of infinite divinity and divine law operative in existence, brought forth these two mighty refulgent pioneers of life, knowing and commanding the world for the realisation of their innate vision and power.
मराठी (1)
भावार्थ
या जगात प्रसिद्ध व विद्वान करोडोमध्ये दोन-चार असू शकतात, परंतु जर प्रारंभीपासून बालक बालिकांना सुशिक्षित केल्यास ते याप्रमाणे बनू शकतात. ॥३॥
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तौ वर्ण्येते ।
पदार्थः
ता=तादृशौ पुत्रौ । मही=महती । ऋतावरी=सत्यवती । अदितिः=अखण्डनीया माता । जजान=जनयति । पुनः कीदृशौ । विश्ववेदसा=सर्वज्ञानौ । प्रमहसा=प्रकृष्टतेजस्कौ । कस्मै प्रयोजनाय । असुर्य्याय=बलाय=शक्तिप्रदर्शनाय ॥३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
पुनः उन दोनों का ही वर्णन है ।
पदार्थ
(ता) वैसे पुत्रों को (मही) महती (ऋतावरी) सत्यवती (अदितिः) माता (जजान) उत्पन्न करती है, जो पुत्र (विश्ववेदसा) सर्व प्रकार ज्ञानसम्पन्न होते (प्र+महसा) बड़े तेजस्वी और (असुर्य्याय) बल दिखलाने के लिये सर्वदा उद्यत रहते हैं ॥३ ॥
भावार्थ
जो संसार में विख्यात और विद्वान् हों, वैसे कोटियों में दो चार होते हैं । किन्तु प्रारम्भ से यदि बालक-बालिका सुशिक्षित हों, तो वे वैसे हो सकते हैं ॥३ ॥
विषय
उत्तम माता पिता से रक्षा की प्रार्थना ।
भावार्थ
( प्र महसा ) अति उत्तम तेजस्वी ( विश्व-वेदसा ) समस्त ज्ञानों और धनों के स्वामी (ता) उन दोनों ( माता ) उत्पन्न करने वाली ( ऋतावरी ) सत्य व्रत का वरण करने वाली, ( अदितिः ) अखण्ड व्रतपालिनी ( मही) पूज्या ( माता ) जननी ही ( असुर्याय ) बल पराक्रम के लिये ( जजान ) पैदा करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वमना वैयश्व ऋषिः॥ १—९, १३—२४ मित्रावरुणौ। १०—१२ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, २, ५—९, १९ निचृदुष्णिक्। ३, १०, १३—१६, २०—२२ विराडष्णिक्। ४, ११, १२, २४ उष्णिक्। २३ आर्ची उष्णिक्। १७, १० पादनिचृदुष्णिक्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
अक्षिति माता से मित्रावरुणौ का जन्म
पदार्थ
[१] (ता) = उन मित्र और वरुण को (ऋतावरी) = ऋत का रक्षण करनेवाली (मही) = महनीय (अदितिः माता) = अदीना देवमाता, स्वास्थ्य की देवता [ अ+दिति = अखण्डन, स्वास्थ्य का न टूटना] (जजान) = उत्पन्न करती है। स्वस्थ मनुष्य ही स्नेह व निर्देषता के भावों का धारण करनेवाला होता है । अस्वास्थ्य मनुष्य को चिड़चिड़ा बना देता है। [२] ये मित्र और वरुण (विश्ववेदसा) = सम्पूर्ण आन्तर धनों को प्राप्त करानेवाले हैं और (प्रमहसा) = प्रकृष्ट तेजवाले हैं। स्नेह व निर्देषता के होने पर सब दिव्यगुण, सारी दैवी सम्पत्ति प्राप्त होती है और हम तेजस्विता का अपने में रक्षण करनेवाले होते हैं। अदिति माता इसलिए मित्रावरुणौ को जन्म देती है कि (असुर्याय) = आसुर भावों का विनाशक बल हमें प्राप्त हो।
भावार्थ
भावार्थ- स्वास्थ्य हमारे जीवनों में स्नेह व निर्देषता के भावों को जन्म देता है। इन स्नेह व निर्देषता के भावों से सम्पूर्ण दैवी सम्पत्ति प्राप्त होती है और प्रकृष्ट तेज प्राप्त होता है। ये मित्रावरुण सब आसुर भावों के विनाशक बल को प्राप्त कराते हैं।
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