ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 69/ मन्त्र 5
आ हर॑यः ससृज्रि॒रेऽरु॑षी॒रधि॑ ब॒र्हिषि॑ । यत्रा॒भि सं॒नवा॑महे ॥
स्वर सहित पद पाठआ । हर॑यः । स॒सृ॒ज्रि॒रे॒ । अरु॑षीः । अधि॑ । ब॒र्हिषि॑ । यत्र॑ । अ॒भि । स॒म्ऽनवा॑महे ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ हरयः ससृज्रिरेऽरुषीरधि बर्हिषि । यत्राभि संनवामहे ॥
स्वर रहित पद पाठआ । हरयः । ससृज्रिरे । अरुषीः । अधि । बर्हिषि । यत्र । अभि । सम्ऽनवामहे ॥ ८.६९.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 69; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Let the vibrations of divinity, like crimson rays of dawn which bring the sun to the earth, bring Indra on to our sacred grass where we humans meet and pray and celebrate the lord in song together.
मराठी (1)
भावार्थ
बर्हिष् हे आकाशाचे नाव आहे (निघण्टु १।३) यात ईश्वराची महान शक्ती दाखविलेली आहे. ॥५॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
तेनेन्द्रेण । अधि+बर्हिषि=आकाशे निराधारे स्थाने । अरुषीः=आरोचमानाः । इमे । हरयः=परस्परहरणशीलाः पृथिव्यादिलोकाः । आ+ससृज्रिरे=आसृष्टाः । यत्र लोकेषु । वयमुपासकाः । अभि+संनवामहे=सर्वतो निवसामः ॥५ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
उस इन्द्रवाच्य परमात्मा ने (अधि+बर्हिषि) इस निराधार आकाश में (अरुषीः) प्रकाशमान इन (हरयः) परस्पर हरणशील पृथिव्यादि लोकों को (ससृज्रिरे) बनाया है, (यत्र) जहाँ हम लोग (संनवामहे) निवास करते हैं ॥५ ॥
भावार्थ
बर्हिष् यह आकाश का नाम है, निघण्टु १ । ३ । इससे ईश्वर की महती शक्ति दिखलाई गई है ॥५ ॥
विषय
प्रजाओं द्वारा उत्तम शासक की स्थापना।
भावार्थ
( यत्र ) जहाँ हम सब ( अभि सं-नवामहे ) ऐश्वर्यवान् की साक्षात् स्तुति करें, उस ( बर्हिषि अधि ) राष्ट्र, प्रजा वा उत्तमासन पर स्थित ( हरयः ) उत्तम विद्वान् गण ( अरुषीः ) उत्तम २ वाणियां ( आ ससज्रिरे ) कहें। इति पञ्चमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रियमेध ऋषिः॥ देवताः—१—१०, १३—१८ इन्द्रः। ११ विश्वेदेवाः। ११, १२ वरुणः। छन्दः—१, ३, १८ विराडनुष्टुप्। ७, ९, १२, १३, १५ निचूदनुष्टुप्। ८ पादनिचृदनुष्टुप्। १४ अनुष्टुप्। २ निचृदुष्णिक्। ४, ५ निचृद् गायत्री। ६ गायत्री। ११ पंक्तिः। १६ निचृत् पंक्तिः। १७ बृहती। १८ विराड् बृहती॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
अरुषी: हरयः
पदार्थ
(यत्र) = जहाँ (बर्हिषि अधि) = हृदयक्षेत्र में स्थित हुए हुए (अभिसन्नवामहे) = प्रातः-सायं [अभि- दिन के दोनों ओर] प्रभु का स्मरण करते हैं तो (हरयः) = इन्द्रियाश्व (आ अरुषीः) = समन्तात् आरोचमान-निर्मल (ससृज्रिरे) = बनाए जाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभुस्मरण हमारी इन्द्रियों को आरोचमान व निर्मल बनाता है।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal