ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 86/ मन्त्र 2
ऋषिः - कृष्णो विश्वको वा कार्ष्णिः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
क॒था नू॒नं वां॒ विम॑ना॒ उप॑ स्तवद्यु॒वं धियं॑ ददथु॒र्वस्य॑इष्टये । ता वां॒ विश्व॑को हवते तनूकृ॒थे मा नो॒ वि यौ॑ष्टं स॒ख्या मु॒मोच॑तम् ॥
स्वर सहित पद पाठक॒था । नू॒नम् । वा॒म् । विऽम॑नाः । उप॑ । स्त॒व॒त् । यु॒वम् । धिय॑म् । द॒द॒थुः॒ । वस्यः॑ऽइष्टये । ता । वा॒म् । विश्व॑कः । ह॒व॒ते॒ । त॒नू॒ऽकृ॒थे । मा । नः॒ । वि । यौ॒ष्ट॒म् । स॒ख्या । मु॒मोच॑तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
कथा नूनं वां विमना उप स्तवद्युवं धियं ददथुर्वस्यइष्टये । ता वां विश्वको हवते तनूकृथे मा नो वि यौष्टं सख्या मुमोचतम् ॥
स्वर रहित पद पाठकथा । नूनम् । वाम् । विऽमनाः । उप । स्तवत् । युवम् । धियम् । ददथुः । वस्यःऽइष्टये । ता । वाम् । विश्वकः । हवते । तनूऽकृथे । मा । नः । वि । यौष्टम् । सख्या । मुमोचतम् ॥ ८.८६.२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 86; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
How can a person disturbed in the mind study and honour you for the control of complementary pranic energies of prana and apana? When the pranic energies are controlled in meditation, you give the practitioner the intelligential capacity to achieve the desired concentration for peace and power of the mind. Ashvins, the universal lover of health invokes you for the system’s efficacy. Pray forsake us not, deprive us not of your natural friendship.
मराठी (1)
भावार्थ
प्राण व अपानची गती नियंत्रित करून एकाग्र होण्याची शक्ती प्राप्त होते व एकाग्रतेशिवाय कोणीही व्यक्ती आपल्या या दोन क्रियांवर नियंत्रण ठेवू शकत नाही. यांच्यावर नियंत्रण ठेवल्याशिवाय स्वास्थ्यही प्राप्त होऊ शकत नाही. ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(नूनम्) निश्चय ही (वाम्) दोनों, प्राण तथा अपान की, (विमनाः) चेतनाशून्य, अनेकाग्र, असमाहितचित्त, व्यक्ति (कथा) किस तरह (उप स्तवत्) स्तुति, गुणकीर्तन कर सकेगा? (युवम्) तुम दोनों (वस्य इष्टये) विपुल मात्रा में ऐश्वर्य का संगम कराने हेतु (धियम्) ध्यान शक्ति को (ददथुः) देते हो। (तां वाम्) उन तुम दोनों की, (विश्वकः) सब पर कृपा करने वाला विद्वान् (भिषक् तनू कृथे) देह की रक्षा हेतु (हवते) वन्दना करता है--तुम्हारे गुणों का वर्णन करता हुआ उनका अध्ययन करता है। (नः मा वियौष्टम्) तुम दोनों हमसे अलग न होवो; (सख्या) अपनी मित्रता से हमें (मा मुमोचतम्) मुक्त न करो॥२॥
भावार्थ
प्राण एवं अपान की गति को नियन्त्रित कर एकग्रचित्त होने की शक्ति मिलती है और एकाग्रता के बिना कोई अपनी इन दोनों क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता; इन पर नियंत्रण रखे बिना स्वस्थ भी नहीं रह सकता॥२॥
विषय
उत्तम स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
( नूनं ) निश्चय ही ( वि-मनाः ) विपरीत चित्त वा ज्ञान वाला वा अज्ञानी मनुष्य ( वां ) तुम दोनों की ( कथा उपस्तुवत् ) कैसे गुण स्तुति कर सकता है ? ( युवम् ) तुम दोनों ( इष्टये ) इच्छा पूर्ति के लिये ( धियं वस्यः ददथुः ) उत्तम बुद्धि और उत्तम धन प्रदान करते हो। ( ता वां ) उन आप दोनों की ( तनू-कृथे विश्वकः हवते ) अपने देह के सुखार्थ सभी बुलाते हैं। तुम दोनों ( नः सख्या मा वि यौष्टं ) हमें मित्र भाव से पृथक् मत करो और ( वि मुमोचतम् ) विविध दुःखों से छुड़ाओ वा सखित्व से हमें ( मा वि मुमोचतम् ) मत त्याग करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कृष्णो विश्वको वा कार्ष्णिऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ३ विराड् जगती। २, ४, ५ निचृज्जगती॥
विषय
धियं, वस्यः
पदार्थ
[१] (विमनाः) = विविध दिशाओं में भागनेवाले मनवाला यह 'विमनाः' के लिये प्राणसाधना कठिन हो जाती है। सो हम मन को एकाग्र करने के लिये इस प्राणसाधना में प्रवृत्त हों। हे प्राणापानो ! (युवम्) = आप ही (इष्टये) = इष्ट प्राप्ति के लिये (धियम्) = बुद्धि को तथा (वस्य:) = प्रशस्त धन को (ददथुः) = देते हो। [२] (ता वाम्) = उन आप दोनों को (विश्वकः) = यह पूर्ण उन्नति को अपनानेवाला (तनूकृथे) = शत्रुओं को क्षीण करने के निमित्त (हवते) = पुकारता है। हे प्राणापानो! (नः) = हमें (मावि यौष्टम्) = छोड़ मत जाओ । (सख्या) = मित्रताओं को नष्ट मत कर दो। आप अवश्य ही (मुमोचतम्) = हमें रोगों व वासनारूप शत्रुओं से मुक्त करो।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से मनोवृत्ति एकाग्र होती है। इससे उत्तम बुद्धि व प्रशस्त धन प्राप्त होता है।
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